Wednesday, September 28, 2011

शहरों की फिजा बिगड़ी


भारत में वाहनों की तेजी से बढ़ती संख्या के चलते यहां के शहरों में लोगों को सांस से संबंधित बीमारियां हो रही हैं। वातावरण में कार्बन उत्सर्जन व धुएं के चलते लोग फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे हैं। भारत के समृद्ध पड़ोसी चीन का हाल भी कुछ ऐसा ही है। डब्लूएचओ का अनुमान है कि वर्ष 2008 में श्वसन संबंधी बीमारियों और कैंसर से हुई लगभग 13 लाख 40 हजार लोगों की समय से पहले हुई मौत की वजह प्रदूषित हवा है। डब्लूएचओ में लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण की निदेशक मारिया नीरा ने कहा, अगर डब्लूएचओ के दिशानिर्देशों का वैश्विक स्तर पर पालन किया गया होता, तो वर्ष 2008 में लगभग 10 लाख नौ हजार लोगों की मौत को टाला जा सकता था। संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था का कहना है कि भारतीय शहरों में मध्यमवर्ग के लोगों में प्रतिष्ठा का प्रतीक बन रहे नए-नए एसयूवी वाहन, कारें और दोपहिया वाहन लोगों के लिए प्राणघातक साबित हो रहे हैं। संस्था के अनुसार भारत और चीन के अलावा अन्य विकासशील देशों में शहरों का तेज औद्योगीकरण फेफड़े की बीमारियों की वजह है। अपनी हालिया रिपोर्ट में संस्था ने 91 देशों के 1100 शहरों से हवा की गुणवत्ता संबंधी आंकड़े इक्कठा किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि तेजी से विकास और औद्योगिकरण वाले देशों विशेष तौर पर चीन और भारत में प्रदूषित हवा के कारण सबसे अधिक स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा हो रही हैं। नीरा का कहना है, भारत और चीन के शहर हवा के प्रदूषण को झेल रहे हैं, जिससे लोगों के स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो रहा है। इन देशों में साफ हवा के अभाव में सांस से संबंधित तीक्ष्ण और स्थाई समस्याएं बढ़ रही हैं।उन्होंने बताया कि उनकी रिपोर्ट में शामिल अधिकांश शहरों ने हवा की गुणवत्ता से जुड़े डब्लूएचओ के दिशानिर्देशों पीएम 10 का पालन नहीं किया है, जिसके तहत औसत रूप से 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सालाना की अनुमति है। पीएम 10 वैसे कण हैं जिनका आकार 10 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है और यह फेफड़ों और खून के प्रवाह में दाखिल हो कर हृदय, फेफड़े, सांस से संबंधित बीमारियों का कारण बनते हैं। इस मामले में लोगों में जागरुकता बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि स्वास्थ्य पर्यावरण के उपायों के लिए डब्लूएचओ के समन्वयक कार्लोस डोरा ने कहा कि भारत और चीन में इस समस्या के प्रति जागरुकता बढ़ रही है।

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