दिल्ली की हवा फिर से जहरीली हो चली है। प्रदूषण का जहर, शहर की हवा में तेजी से घुल रहा है। इसकी वजह से राजधानी में हर साल करीब तीन हजार मौतें हो रही हैं। शहर की हवा में पांव पसारता प्रदूषण का जहर कैंसर, हार्ट अटैक, सांस की बीमारियों सहित सेहत के लिए कई अन्य मुसीबतें खड़ी कर रहा है। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव बच्चों पर हो रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि शहर की 55 फीसदी आबादी इस वायु प्रदूषण की चपेट में है क्योंकि आबादी का यह हिस्सा मुख्य सड़कों के आसपास बसा हुआ है। दिल्ली सरकार को पेश की गई सेंटर फॉर साइंस एंड एनविरोनमेंट की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट में अमेरिका के हेल्थ इफेक्टस इंस्टीटयूट द्वारा टेरी के साथ मिलकर किए गए एक सर्वे के हवाले से बताया गया है कि दिल्ली में प्रतिवर्ष करीब एक लाख मौतें होती हैं जिनमें से तीन हजार मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। सर्वे की यह रिपोर्ट वर्ष 2011 में प्रकाशित हुई थी। दस साल पहले दिल्ली सरकार ने डीजल के कारण बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए शहर में सीएनजी की शुरुआत की। तमाम बसें सीएनजी से चलाई जाने लगी। यहां कोयला से चलने वाले तीनों बिजली संयंत्र बंद कर दिए गए। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को शहर से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बावजूद वायु प्रदूषण में वृद्धि की वजह पूछने पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनविरोनमेंट की अनुमिता राय चौधरी बताती हैं कि असली वजह यहां लगातार बढ़ रहे हैं वाहन हैं। इन्हीं की वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। उनका कहना है कि वाहनों पर लगाम लगाए बगैर वायु प्रदूषण को कम करना संभव नहीं होगा। दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग में तैनात आला अधिकारियों की राय में स्पोर्ट्स यूटिलिटी वैहकिल (एसयूवी) प्रदूषण को नए सिरे से हवा दे रहे हैं। इन बड़ी-बड़ी गाडि़यों से राजधानी की सेहत को खतरा हो रहा है। खुद मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी यह स्वीकार किया है कि वाहनों की बढ़ती संख्या दिल्ली के लिए मुसीबत साबित हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की हवा में पार्टिकुलेट मैटर सबसे ज्यादा हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि चैन्नई, कोलकाता, मुंबई आदि शहरों में इसकी मात्रा में कमी आ रही है जबकि दिल्ली में यह बढ़ रहा है। एनओएक्स, एनओ2 तथा टीनियर पार्टिकल्स की मात्रा भी दिल्ली में बढ़ रही है। इन जहरीले पदार्थो की मात्रा आईटीओ चौराहा, पीतमपुरा, सिरी फोर्ट, शाहदरा तथा शाहजादा बाग में खतरनाक मात्रा में पाई गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि शहर में कार्बन मानोक्साइड की मात्रा में कमी आई है लेकिन सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (पीएम10) समय पूर्व मौतों की प्रमुख वजह साबित हो रहा है। आर के पुरम तथा सिविल लाइन इलाके में पीएम 2.5 की मात्रा तय मानकों से कई गुना ज्यादा पाई गई है। बता दें कि दिल्ली में इस वक्त वाहनों की कुल संख्या 70 से 75 लाख के बीच है और प्रतिदिन यहां पर एक हजार से 1200 नए वाहन पंजीकृत होते हैं।
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