Monday, April 23, 2012

यमुना की सफाई की सभी योजनाएं फेल


सरकार के गले की हड्डी बनी सीएजी ने अबकी बार यमुना सफाई की परियोजनाओं में सरकार को फेल घोषित कर दिया है। भारत के नियंत्रक व महा लेखा परीक्षक यानी सीएजी ने बड़े ही साफ शब्दों में सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में प्रदूषण रोकने के लिए चलाई जा रही सभी परियोजनाएं नाकाम हैं। वे नदी में प्रदूषण नियंत्रण काउद्देश्य पूरा नहीं कर रही हैं। इसके जवाब में केंद्र सरकार ने यमुना सफाई के लिए 19 वर्षों से की जा रही कवायद और 1306 करोड़ के खर्च का ब्योरा देते हुए कहा है कि जून 2012 तक यमुना एक्शन प्लान का दूसरा चरण भी पूरा हो जाएगा। हालांकि परियोजनाओं को लागू करने और नदी को प्रदूषण मुक्त करने की सारी जिम्मेदारी केंद्र ने राज्यों और स्थानीय एजेंसियों के सिर डाल दी है। यानि 19 साल, 13 सौ करोड़ और नतीजा शून्य। सीएजी और केंद्र सरकार ने ये बात यमुना सफाई पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने ताजा हलफनामे में कही हैं। कोर्ट के गत 27 फरवरी के आदेश का पालन करते हुए केंद्र सरकार, सीएजी और कुछ राज्य सरकारों ने हलफनामे दाखिल किये हैं। सुप्रीम कोर्ट पिछले 18 वर्षों से यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की निगरानी कर रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार का हलफनामा तो परियोजनाओं की अप टू डेट रिपोर्ट पेश करता है। जबकि सीएजी ने उन्हें नाकाम बताया है। सीएजी ने अपनी वर्ष 2000 की रिपोर्ट से लेकर 2011 -12 की भारत में जल प्रदूषण की रिपोर्ट तक का ब्योरा दिया है जो बताता है कि कुछ भी ठीक नहीं है। हलफनामे के साथ रिपोर्ट के अंश संलग्न किए गये हैं। सीएजी ने कहा है कि 2011-12 में जल प्रदूषण के परफार्मेंस आडिट (प्रदर्शन आंकलन) के मुताबिक दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में चल रही परियोजनाएं यमुना में प्रदूषण रोकने के उद्देश्य को पूरा नहीं कर रही हैं। इससे पहले वर्ष 2000 में गंगा एक्शन प्लान के आडिट में सीएजी ने यमुना एक्शन प्लान की परियोजनाओं का भी आकलन किया था उस समय भी तीनों राज्यों की यही स्थिति थी। 2004 में सीएजी ने दिल्ली में यमुना की स्थिति का आंकलन किया। इस रिपोर्ट में यमुना की हालत गंभीर बताई गयी थी। 2011-12 की रिपोर्ट में सीएजी ने उत्तर प्रदेश में कानपुर, गाजियाबाद और लखनऊ की परियोजनाओं को फेल बताया है और गोमती, गंगा व हिंडन के पानी को बीमारियों का घर कहा है।

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