देश के विभिन्न अभ्यारण्यों के भीतर और बाहर पिछले एक दशक में 335 से अधिक बाघों की मौत हुई। सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में यह जानकारी दी गई। जवाब में बताया गया, ‘‘पिछले दस साल में अन्य कारणों के अलावा शिकार, संघषर्, दुर्घटना और अधिक उम्र की वजह से कुल 335 बाघों की मौत हुई। इनमें सबसे अधिक 58 बाघ 2009 में मृत पाए गए। 2011 में 56 और 2007 व 2002 में 28-28 बाघ मृत पाए गए। प्रेस ट्रस्ट द्वारा मांगी गई जानकारी पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार (एनटीसीए) ने बताया कि 2005 में शावकों सहित कुल 17 बाघ मृत पाए गए। 2003 और इस वर्ष जनवरी से मार्च के बीच 16-16 बाघ मृत पाए गए। जबकि 2006 में 14 बाघ मृत पाए गए। आंकड़ों के अनुसार 68 बाघ इस अवधि के दौरान अवैध शिकार के कारण मारे गए। अवैध शिकार के कारण वर्ष 2010 में सबसे ज्यादा 14 बाघों की मौत हुई। 2009 में इनकी संख्या 13, 2011 में 11, 2002 में नौ, 2007 और 2008 में छह- छह, 2006 में पांच, इस वर्ष जनवरी से मार्च तक तीन और 2004 में एक बाघ की मौत अवैध शिकार की वजह से हुई। इनके अलावा अन्य की मौत अधिक उम्र, भुखमरी, सड़क और रेल दुर्घटनाएं, करंट लगने और कमजोरी जैसे कारणों से हुई। दिलचस्प बात यह है कि तकरीबन बारह मामलों में बाघ के मरने की वजह मालूम नहीं हो सकी। 2003 में मारे गए दो बाघों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आज तक नहीं मिल पाई इसलिए इनकी मौत की वजह मालूम नहीं हो सकी। एनटीसीए से कहा गया था कि वह वर्ष 2002 से 2012 के बीच के दशक में विभिन्न अभ्यारण्यों में मारे गए बाघों की संख्या और उनकी मौत के कारणों की जानकारी मुहैया कराए। पर्यावरण और वन मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार किसी भी बाघ के मरने पर उसके अवशेषों को तब तक डीप फ्रीजर में सुरक्षित रखा जाता है, जब तक कि स्वतंत्र दल उसकी मौत के कारणों का विश्लेषण न कर ले। प्रत्येक बाघ की मौत की घटना की गहन जांच की जाती है।
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