भूजल में भारी धातुओं का पाया जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन पंजाब के मामले में यह खतरनाक स्तर की ओर जा रहा है। राज्य में कई जगहों पर यह जरूरत से अधिक है। यह रिपोर्ट खुद पंजाब सरकार के जलापूर्ति एवं सेनिटेशन विभाग की है। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब के सात जिलों के भूजल में भारी धातुओं की मात्रा अधिक है। यहां पानी में जो भारी धातुएं पाई जा रही हैं, उनमें आयरन और मैगनीशियम के अलावा एल्यूमिनियम भी शामिल है। यह स्थिति अकेले पंजाब की हो, ऐसा भी नहीं है। अगर ठीक से सर्वेक्षण करवाया जाए और प्रयोगशालाओं में परीक्षण के बाद आकलन किया जाए तो शायद यह पाया जाएगा कि देश के अधिकतर क्षेत्रों में पेयजल की स्थिति काफी गंभीर है। देखने में यह जरूर लगता है कि भारत में पानी बहुत है, लेकिन सच्चाई यह है कि पानी की इस उपलब्ध मात्रा में से पीने लायक पानी बहुत कम है। इस तरह पेयजल के हिसाब से अगर देखें तो हमारे पूरे देश में पानी की उपलब्धता कम जगहों पर है। यह अलग बात है कि जानकारी और सुविधा के अभाव में लोग वही पानी पीने के लिए मजबूर हैं, जो सरलता से उपलब्ध है। पानी की कमी की यह समस्या केवल गांवों में ही हो, ऐसा भी नहीं है। यह समस्या गांवों से लेकर शहरों तक हर जगह है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के ही कई क्षेत्रों में पीने लायक पानी नहीं पाया जाता है। जहां पाया जाता है वहां भी उसका आधार पानी की पोषक गुणवत्ता नहीं, बल्कि केवल स्वाद को माना जाता है। यह दशा पूरे देश की है। अगर पानी का स्वाद खारा नहीं है तो उसे पीने लायक मान लिया जाता है। ऐसा केवल अशिक्षित और ग्रामीण लोग ही नहीं, शिक्षित और शहरी लोग भी करते हैं। यह सिर्फ अज्ञानता के कारण नहीं, कई तरह की मजबूरियों के भी कारण होता है। कहीं उपलब्धता नहीं है तो कहीं उसे किसी और तरह से प्राप्त कर पाने की क्षमता नहीं है। हर परिवार के बस की बात यह नहीं है कि वह खरीद कर पानी पी सके या खारे या अस्वास्थ्यकर पानी को पेयजल बनाने वाले उपकरण अपने घर में लगा सके। नतीजा यह है कि अधिकतर लोगों को अपनी क्षमता के अनुसार पानी पीना पड़ रहा है। संकट यह है कि जिन जगहों पर स्वास्थ्यकर पेयजल उपलब्ध है, वहां भी इसकी उपलब्धता बहुत दिनों तक ऐसी बनी रहने वाली नहीं है, क्योंकि खनिज तत्वों के अलावा बहुत भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्व भी हमारे भूमिगत जल में मिल रहे हैं। प्रदूषण धीरे-धीरे पूरे भारत में मनुष्यता के लिए खतरा बनता जा रहा है। प्रदूषण की मात्रा बढ़ाने के लिए केवल छोटे-बड़े उद्योग ही नहीं, देश का आदमी खुद भी जिम्मेदार है। रोक लगाए जाने के बावजूद पॉलीथिन का प्रयोग पूरे देश में बेहिसाब हो रहा है। दुनिया भर का कूड़ा-कचरा नदियों में डाला जा रहा है। औद्योगिक कचरा नदियों में डाले जाने के पहले मानकों के अनुसार शोधित भी नहीं किया जा रहा है। पानी को प्राकृतिक रूप से शोधित करने के जो साधन हैं, उनमें से अधिकतर खत्म होते जा रहे हैं। वन क्षेत्र लगातार घट रहा है। विभिन्न कारणों से लकड़ी के लिए पेड़ काटने की प्रक्रिया निरंतर चल रही है और नए पेड़ लोग उतनी संख्यो में लगा नहीं रहे हैं। सरकारी स्तर पर भी नए पेड़ या तो लगाए ही नहीं जा रहे हैं या फिर लगाने के बाद उनकी ठीक से देखभाल नहीं हो पा रही है। जो पेड़ लगाए जा रहे हैं, वे भी हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल नहीं हैं। हम बिना सोचे-समझे विदेशी पौधे अपने देश में लगाते जा रहे हैं, जो हमारे लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। इस तरह, अधिकतर क्षेत्रों में पानी के शोधन के प्राकृतिक उपाय नष्ट होते जा रहे हैं और देश का ज्यादातर उपलब्ध जल पीने के लिहाज से असुरक्षित होता जा रहा है। खुद विश्व बैंक की रिपोर्ट यह कहती है कि जलजनित रोगों में 88 प्रतिशत केवल असुरक्षित पानी पीने के चलते हो रहे हैं। पंजाब के कुछ सीमावर्ती इलाकों में यह समस्या काफी गंभीर है। जलजनित रोगों के मामले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है। दिल्ली में पानी की बढ़ती आवश्यकता को सरकारी तंत्र द्वारा पूरी न किए जा पाने का ही नतीजा है कि यहां पानी माफिया तक बन चुके हैं। ये राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कई जगहों से भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं और उसे बेच रहे हैं। नतीजा यह हो रहा है कि यहां भूगर्भ जलस्तर नीचे गिरता जा रहा है। इस लिहाज से पूरे भारत की स्थिति ठीक नहीं है। भूजल स्तर का नीचे गिरना अपने आपमें खतरे की एक घंटी है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार जल संकट की एक बड़ी वजह जनसंख्या में हुई बढ़ोतरी भी है। जनसंख्या बढ़ने के नाते पूरे विश्र्व में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो बेहिसाब हो रहा है, लेकिन उन्हें नए सिरे से विकसित करने की दिशा में कुछ भी नहीं किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में जल संकट का महत्वपूर्ण कारण कुप्रबंधन को बताया गया है। वे इसके लिए भ्रष्टाचार, नौकरशाही की अक्षमता, निवेश की कमी और बुनियादी ढांचे के अभाव को भी जिम्मेदार ठहराते हैं। खासकर भारत में तो स्थिति यह है कि अभी भी कई जगहों पर आम लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में तो इस मामले में कई जगह लोग अभी खुद ही जागरूक नहीं हैं। यह स्थिति बड़ी संख्या में जलजनित रोगों का कारण बन रही है। इन हालात से उबरने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। सच तो यह है कि अगर केवल स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित पेयजल की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके तो पूरे देश में आए दिन होने वाले रोगों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इसके लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करने होंगे। शासन और प्रशासन से जुड़े लोगों को चाहिए कि सबसे पहले पूरे देश में उपलब्ध जल का समुचित प्रबंधन करने की व्यवस्था बनाएं। अगर केवल इसका समुचित प्रबंधन किया जा सके तो यही काफी हद तक हमारी समस्या का समाधान कर देगा। कुप्रबंधन का ही नतीजा है कि बहुत भारी मात्रा में पेयजल हमारे देश में बर्बाद हो जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह लीकेज है, जो कई तरह से हो रही है। इस पर काबू पाने की व्यवस्था तुरंत बनाई जानी चाहिए। साथ ही प्रदूषण की समस्या के प्रभावी समाधान की भी व्यवस्था जल्द से जल्द बनाई जानी चाहिए। जो जल पीने लायक नहीं है, उसके शोधन की भी व्यवस्था प्राथमिकता के साथ की जानी चाहिए। अगर ये काम कर लिए जाएं तो देशवासियों के स्वास्थ्य से जुड़ी एक बड़ी समस्या पर काबू पाया जा सकेगा। ध्यान रहे, यह लक्ष्य केवल सरकार के भरोसे किसी भी देश में नहीं हासिल किया जा सकता। नागरिकों का सहयोग इसके लिए अनिवार्य है और वह हमें करना ही होगा। (लेखक दैनिक जागरण हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं)
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