पर्यावरण पर मंडराते संकट को दूर करने के लिए हरियाली बढ़ाने की सरकारी कोशिशों के वांछित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। यह विडंबना ही है कि विगत वर्षो में पौधरोपण के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के बावजूद सूबे में हरियाली का दायरा सिकुड़ा है। विकास की भेंट चढ़ी हरियाली की भरपाई को राज्य के 550 करोड़ रुपये केंद्र के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के पास जमा हैं लेकिन कभी कानूनी बंदिशों तो कभी नीतिगत अड़चनों से इसका समुचित इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। कानूनी बंदिशें व नीतिगत अड़चनें : राजमार्गो को चौड़ा करने व अन्य विकास कार्यो के नाम पर बीते दस वर्षो में सूबे में लाखों पेड़ों पर आरी चला दी गई लेकिन उजाड़ी गई हरियाली की भरपाई की मुहिम कानूनी और नीतिगत पेचीदगियों में उलझकर रह गई है। विकास परियोजनाओं के लिए विकासकर्ता विभाग वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से वन भूमि हस्तांतरण की अनुमति लेता है। उसे जमीन की वर्तमान कीमत के साथ दोगुने क्षेत्रफल पर पौधरोपण और उसके रखरखाव का खर्च अदा करना पड़ता है। वर्ष 2002 से विकास परियोजनाओं के लिए ली गई वन भूमि के एवज में विकासकर्ता विभागों द्वारा जमीन और पौधरोपण के लिए दी गई धनराशि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा गठित क्षतिपूरक वृक्षारोपण प्रबंध एवं योजना संस्था (कैम्पा) के पास जमा की जा रही थी। कैम्पा के खाते में यूपी के करीब 550 करोड़ रुपये जमा हैं लेकिन हरियाली की भरपाई के लिए इस धन का इस्तेमाल नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर वर्ष 2009 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह राज्यों की धनराशि वापस कर दें। धन के इस्तेमाल के लिए राज्यों में कैम्पा का गठन किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुपालन में 12 अगस्त 2010 को सोसायटी के रूप में यूपी क्षतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंध एवं नियोजन प्राधिकरण (यूपी कैम्पा) का पंजीकरण हुआ। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने यूपी कैम्पा को 2009-10 के लिए 47 करोड़ रुपये और 2010-11 के लिए 35 करोड़ रुपये जारी किए। कैम्पा के गठन में राज्य सरकार की लापरवाही के कारण यह राशि भी एक साल बाद मिली। राज्य सरकार इसका इस्तेमाल भी नहीं कर पाई थी कि 25 जनवरी 2012 को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयंती नटराजन की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला हुआ कि यूपी में कैम्पा का गठन प्राधिकरण के रूप में किया जाए तभी आगे की किस्तें जारी की जाएंगी। तब से अब तक वन विभाग यूपी कैम्पा को प्राधिकरण बनाने की औपचारिकता पूरी नहीं कर पाया है। उधर केंद्र सरकार ने भी आगे की किस्तें जारी करने से हाथ खींच लिए हैं। कम हुआ हरियाली का दायरा : सूबे में 2001-02 से 2011-12 तक 5,75,657 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर 215.13 करोड़ पौधे रोपे जा चुके थे। इतने वृहद स्तर पर पौधरोपण के बावजूद प्रदेश में हरियाली कम हुई है। भारतीय वन सर्वेक्षण की वर्ष 2001 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद यूपी के 8.8 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्रफल पर वृक्षावरण और वनावरण था। 2005 के दौरान यह बढ़कर 9.26 फीसदी हो गया लेकिन नई रिपोर्ट के मुताबिक 2011 में यह घटकर 9.01 प्रतिशत ही रह गया। पौधों की सुरक्षा भगवान भरोसे : प्रमुख वन संरक्षक जेएस अस्थाना के मुताबिक पौधरोपण के बाद दो वर्ष बाद तक तो पौधों की सुरक्षा की जाती है, मृत पौधों की जगह नए पौधे रोपे जाते हैं, इसके बाद संसाधनों के अभाव में उनका रखरखाव नहीं हो पाता। इससे रोपी गई हरियाली का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है।
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