भारत के कई इलाकों में पाया जाने वाला छोटा-सा जीव चींटीखोर यानी पेंगोलिन चीनी सेहत के लिए अपनी जान गंवा रहा है। चीनी बाजार में दवाओं के लिए बढ़ रही मांग के चलते यह संरक्षित जीव अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। पूर्वोत्तर भारत से म्यांमार के रास्ते चीन और दक्षिणपरू्व एशियाई मुल्कों को हो रही हजारों किलो पेंगोलिन शल्क (त्वचा के ऊपर पाई जाने वाली चिकनी परत) की तस्करी ने भारतीय वन्य जीव संरक्षकों की नींद उड़ा दी है। चीन, थाइलैंड, वियतनाम, मलेशिया समेत कई मुल्कों में पारंपरिक दवाओं में पेंगोलिन शल्कों के इस्तेमाल की खातिर भारत में हर साल हजारों पेंगोलिन मारे जा रहे हैं। बीते एक माह के दौरान भारत में चेन्नई से लेकर इम्फाल में धर पकड़ और पेंगोलिन शल्क बरामदगी के आंकड़े यह बताने को काफी हैं कि इस काले कारोबार का दायरा कितना बड़ा है। इस दौरान म्यांमार से सटी मोरे सीमा, गुवाहाटी व कोलकाता हवाई अड्डों जैसे अनेक स्थानों पर दो सौ किलो से ज्यादा पेंगोलिन शल्क बरामद किए गए हैं। यह सब भी तब जबकि पेंगोलिन भारतीय वन्य जीव संरक्षण कानून की पहली अनुसूची के तहत संरक्षित जीव है। साथ ही इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजरवेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) की रेड लिस्ट और वन्य जीव अंगों का अवैध व्यापार रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय संधि साइटीज के तहत संरक्षित है। वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की अतिरिक्त महानिदेशक रीना मित्रा कहती हैं कि इसे रोकने की कोशिशों के दौरान तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, बंगाल और उत्तर पूर्व राज्यों में पेंगोलिन शल्क तस्करी के चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी मित्रा बताती हैं कि इसकी तस्करी के लिए शिकारी रेलवे मेल, विमान कार्गो, कूरियर जैसे रास्तों का भी इस्तेमाल भी कर रहे हैं। लिहाजा इन्हें बंद करने के लिए व्यापक तौर पर इसकी सुरक्षा व निगरानी स्टाफ को प्रशिक्षित किया जा रहा है। बढ़ी दबिश का ही नतीजा है कि कोलकाता हवाई अड्डे पर कार्गो में 80 किलो शल्क बरामद किए गए। वहीं चेन्नइ में पेंगोलिन तस्करों के एक गैंग का भी भंडाफोड़ किया गया। हालांकि मित्रा स्वीकार करती हैं कि बरामदगी से कहीं बड़ी मात्रा लगातार देश से बाहर जा रही है और अब भी देश में कई गैंग सक्रिय हैं, जो इस जीव की जान ले रहे हैं। भारत में पेंगोलिन की घटती आबादी को देखते हुए सेंट्रल जू अथॉरिटी ने 70 संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए चलाए जा रहे संरक्षण कार्यक्रम में पेंगोलिन को भी शामिल किया है। महंगा पेंगोलिन : जानकारों के मुताबिक एक पेंगोलिन से करीब दो किलो शल्क प्राप्त होते हैं और वन्यजीव अंगों के बाजार में इसकी कीमत 70 हजार रुपये प्रति किलो तक आसानी से मिल जाती है। हालांकि पेंगोलिन भारत ही नहीं चीन में भी संरक्षित प्रजाति है। लेकिन चीन में इसकी मांग का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल चीनी सीमा शुल्क अधिकारियों ने एक नौका से दस टन मृत पेंगोलिन और पेंगोलिन शल्क बरामद किए थे। दरअसल, चीन में यह धारणा है कि पेंगोलिन शल्कों से बनी दवाएं जोड़ों की बीमारी, चर्मरोगों का इलाज करने के साथ रक्त संचार व्यवस्थित कर सकती है। चिकित्सा विज्ञान के किसी शोध में पेंगोलिन शल्कों के किसी चिकित्सक गुण की पुष्टि न होने के बावजूद चीन में पारंपरिक दवाओं के लिए इसका इस्तेमाल जारी है।
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