Thursday, December 8, 2011

खतरे में हैं गढ़वाल हिमालय के ताल


गढ़वाल हिमालय की खूबसूरती में सदियों से चार चांद लगा रहे कई तालों (झील) के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान में रहस्यमयी इतिहास को समेटे विश्र्व प्रसिद्ध रूपकुंड हो या फिर देवरिया ताल व नचिकेता ताल। इनके संरक्षण व संव‌र्द्धन की दिशा में जल्द ठोस कदम न उठाए गए, तो ऊंची चोटियों पर स्थित ये प्राकृतिक झीलें एक सुनहरा अतीत बनकर रह जाएंगी। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन पिछले 23 साल से चल रहे एक अध्ययन के बाद हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने खूबसूरत तालों के प्रति यह गहरी चिंता जताई है। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय वाले भाग को यूं तो नदियों के उद्वगम स्थल के रूप में जाना जाता है, लेकिन इसी भू-भाग में 64 प्राकृतिक ताल (झील) भी मौजूद हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन गढ़वाल विवि का पर्यावरण विज्ञान विभाग पिछले 23 साल से इन झीलों की स्थिति का अध्ययन कर रहा है। 1988 में डा. महावीर सिंह रावत ने अध्ययन की शुरुआत की और 1998 में डा. किशोर कुमार ने इसे आगे बढ़ाया। 1993-94 तक गढ़वाल हिमालय में सिर्फ 54 झीलों की जानकारी थी, लेकिन वर्तमान में 65 छोटी-बड़ी झीलों का ब्योरा उपलब्ध है। रूपकुंड, देवरिया ताल व नचिकेता ताल के संरक्षण के लिए यदि जल्द प्रयास न हुए, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इनके अलावा वेदनी कुंड, डोडीताल, मासर ताल समेत कई अन्य तालों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। हिमालय क्षेत्र में बढ़ती आवाजाही, पर्यावरणीय बदलाव व संरक्षण न होने के कारण से इन झीलों पर खतरा मंडराने लगा है। किनारे से लगातार मिट्टी के क्षरण, सफाई न होने से झीलें उथली हो रही हैं और उनके पानी व क्षेत्रफल में कमी आ रही है।

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