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Wednesday, May 4, 2011

जैतापुर की आशंका जायज


जापान में फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद कई देशों ने आणविक बिजली के विस्तार के अपने कार्यक्रमों को स्थगित करने की घोषणा की है, मगर भारत सरकार ने विवादास्पद जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को हरी झंडी दे दी है। केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र में प्रत्येक रिएक्टर के डिजाइन में स्वचालित सुरक्षा प्रणाली लगाई जाएगी। ऐसे दो परमाणु रिएक्टर 2019 तक काम करने लगेंगे और एक स्वायत्त परमाणु नियामक निकाय गठित करने के लिए एक विधेयक पेश किया जाएगा। सरकार का दावा है कि देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में पूर्ण पारदर्शिता रहेगी और जैतापुर के स्थानीय समुदाय को संयंत्र से जोड़ने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे। इसकेलिए जल्द ही एक नया मुआवजा पैकेज घोषित किया जाएगा।

जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को छह हिस्से में फ्रांसीसी कंपनी अरेवा पूरा करेगी। योजना के अनुसार, पहले चरण में प्रस्तावित छह इकाइयों में 1650-1650 मेगावाट वाली दो इकाइयों का काम पूरा होगा। ये दोनों इकाइयां रत्नागिरि जिले के माड़वन में होंगी। योजना के अनुसार इस परियोजना केपहले चरण को 2013-14 तक पूरा होना है और बची चार इकाइयों का काम भी 2018 तक पूरा कर लिया जाना है। वर्तमान में हमारे कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की भागीदारी 2.90 प्रतिशत की है। देश में इसे 2020 तक बढ़ाकर छह प्रतिशत तक ले जाने की योजना है और 2030 तक इसे 13 प्रतिशत की भागीदारी में बदल दिया जाएगा। इसकेलिए माड़वन जैतापुर की तरह कई परियोजनाओं की देश को जरूरत होगी। माड़वन (जैतापुर) में पांच गांव माड़वन, मीठागवाने, करेल, वारिलवाडा और नीवेली की 938 हेक्टेयर जमीन जानी है, लेकिन चर्चा में माड़वन (जैतापुर) गांव ही है, क्योंकि छह इकाइयों में पूरी होने वाली इस परियोजना की पहली दो इकाइयों का काम माड़वन में ही पूरा होना है। इसकेअलावा इस परियोजना में जानेवाली कुल 938 हेक्टेयर जमीन में से 669 हेक्टेयर जमीन अकेले माड़वन की है।

परमाणु ऊर्जा परियोजना केलिए चुनी गई यह जमीन पर्यावरण केलिहाज से अति संवेदनशील है। यहां समुद्र का किनारा, 150 किस्म के पक्षी और 300 किस्म की वनस्पतियां हैं। खास बात यह है कि इनमें कई वनस्पतियों और पक्षियों की किस्म दुलर्भ है। समुद्र के इस तटीय क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक परमाणु ऊर्जा संबंधी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। जबकि रत्नागिरि को महाराष्ट्र सरकार ने औोगिकी हॉटिकल्चर जिला घोषित किया है और इसका पड़ोसी जिला सिंधदुर्गा गोवा से भी लगा हुआ होने केकारण पर्यटकों की खास पसंद रहा है। बड़ी संख्या में गोवा घूमने आनेवाले पर्यटक सिंधदुर्गा का रुख भी करते हैं। पर्यावरणविद इसी बात को लेकर अचंभित हैं कि जिस रत्नागिरि को दुनियाभर में जैव विविधता के हॉट स्पॉट के तौर पर देखा जाता है, उसे परमाणु ऊर्जा परियोजना केलिए क्यों चुना गया है।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, परमाणु ऊर्जा परियोजना के लिए सरकार ने जो स्थान तय किया है, वह बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। यह रिपोर्ट महेश कांबले ने इस इलाके के 120 गांवों में जाकर लोगों से मिलकर तैयार की है। कांबले के अनुसार, इस परियोजना का स्थानीय और पर्यावरणीय परिवेश पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट यह भी कहती है कि सरकार तथ्य को तोड़-मरोड़ रही है और माड़वन की उपजाऊ जमीन को बंजर बनाकर पेश कर रही है। जैतापुर के जिस 626.52 हेक्टेयर जमीन को अनुपजाऊ बताया जा रहा है, किसान उस पर धान, फल, सब्जी उगाते रहे हैं। वर्ष 2007 में बाढ़ में सरकार ने राजापुर के किसानों को आम की फसल खराब होने पर एक करोड़ 37 लाख सात हजार रुपए का मुआवजा भी दिया था। अर्थक्रेक हजार्ड जोनिंग ऑफ इंडिया के अनुसार, जैतापुर जोन-3 में आता है। जो भूकंप के लिहाज से रिस्क जोन माना जाएगा। ऐसे इलाके में परमाण से जुड़ी किसी परियोजना को शुरू करना कम खतरे की बात नहीं है। 

गौरतलब है कि प्रारंभ में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 9900 मेगावाट के प्रस्तावित विुत उत्पादन क्षमता के इस कारखाने को स्थापित करने के लिए 35 शर्तो के साथ मंजूरी दी है। परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत आनेवाली एनपीसीआईएल और फ्रांस की कंपनी अरेवा मिलकर इस संयंत्र की स्थापना कर रही हैं। परियोजना पर एक लाख करोड़ का निवेश होगा और यह देश की पहली ऐसी परमाणु परियोजना है, जहां इतने बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन होगा। इस परियोजना में 1650 मेगावाट की छह इकाइयां लगाई जाएंगी, जिनसे कुल मिलाकर दस हजार मेगावाट विुत उत्पादन होगा। लेकिन जापान में फुकुशिमा के तीन रिएक्टरों में विस्फोटों ने एक बार फिर परमाणु ऊर्जा के विनाशकारी पक्ष को सामने ला खड़ा किया है, जिससे परमाणु उोग के वैश्विक आकर्षण में काफी गिरावट आई है। यूरोप समेत जर्मनी जैसे विकसित देश इससे फिलहाल किनारा कर रहे हैं। फुकुशिमा ने भारत द्वारा परमाणु रिएक्टरों के आयात के सौदों और इस काम के लिए हो रहे जबरन भूमि अधिग्रहण पर बहस को फिर से जिंदा कर दिया है।