Monday, October 24, 2011

तेजी से पिघल रहे तिब्बत के ग्लेशियर


चीन के शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि दक्षिण-पश्चिम चीन के किंघाई-तिब्बत पठार क्षेत्र के ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के चलते इतनी तेजी से पिघल रहे हैं, जितने अब तक कभी नहीं पिघले थे। इस क्षेत्र से चीन और भारतीय उपमहाद्वीप में कई नदियां निकलती हैं। विशेषज्ञ 2005 के बाद से चीन के किंघाई प्रांत की यांग्त्जे, येलो और लान्सांग नदियों में पानी, भूगर्भ, ग्लेशियर और दलदलीय भूमि के विषय पर शोध कर रहे हैं। इस शोध में तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी पर संभावित प्रभाव का जिक्र नहीं किया गया है। शोध के परिणामों से पता चला है कि 2,400 वर्ग किमी के इस क्षेत्र में ग्लेशियरों का बहुत बड़ा हिस्सा पिघल चुका है। ग्लेशियर धरती पर ताजे पानी का सबसे बड़ा स्रेत है। यह जलवायु परिवर्तन के भी विसनीय सूचक हैं और वैज्ञानिक इन पर आसानी से नजर रख सकते हैं। प्रांत के सव्रेक्षण और मैपिंग ब्यूरो के एक वरिष्ठ अभियंता चेंग हेनिंग ने बताया कि यांग्त्जे मुख्यालय के ग्लेशियरों के लगभग पांच फीसदी पिछले तीन दशक में पिघल चुके हैं। चेंग ने कहा, ग्लेशियरों के पिघलने और जलवायु परिवर्तन में बहुत करीबी संबंध है। उन्होंने बताया कि पिछले 50 साल में तीन मौसम केंद्रों से जो आंकड़े मिले हैं, उनसे स्पष्ट पता चलता है कि तीनों नदियों में औसत तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है। प्रांत के जलवायु केंद्र के मुताबिक, 2009 की सर्दियां पिछले 15 साल में सबसे गर्म रहीं हैं। शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के अलावा मानवीय गतिविधियां और जरूरत से ज्यादा दोहन भी ग्लेशियरों के पिघलने का बड़ा कारण है।

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