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Monday, March 21, 2011

जयराम ने परमाणु संयंत्रों की निष्पक्ष जांच की मांग उठाई


जापान में नाभिकीय त्रासदी के बीच उठी बहस में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने जैतापुर में 10 हजार मेगावाट क्षमता स्थापित करने के फैसले पर सवाल उठाए हैं। साथ ही जयराम ने हिफाजत के पुख्ता इंतजामों की निष्पक्ष जांच पर जोर देते हुए इसके लिए परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड (एईआरबी) को परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) से बाहर लाने का भी समर्थन किया। वहीं, पूर्व एईआरबी अध्यक्ष ए. गोपालकृष्णन ने आरोप लगाया कि बोर्ड स्वतंत्र नहीं है और उसे पीएमओ के इशारे पर काम करना पड़ता है। हालांकि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने नाभिकीय ऊर्जा के विकल्प को खारिज किए जाने की कोशिशों को सिरे से नकारा। राजधानी में एक कार्यक्रम के दौरान सवालों का जवाब दे रहे जयराम ने कहा कि एक हादसे के चलते भारत के लिए परमाणु ऊर्जा की जरूरत को नकारना ठीक नहीं है। लेकिन जापान में हुए हादसे के मद्देनजर भारतीय नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम में सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा करने की जरूरत है। वहीं, जापान हादसे के बाद नाभिकीय ऊर्जा पर जारी उहापोह पर बोलते हुए पूर्व एईआरबी अध्यक्ष ए. गोपालकृष्णन ने फ्रैंच कंपनी अरेवा के रिएक्टर डिजाइन पर सवाल उठाते हुए कहा कि जैतापुर को परीक्षण ग्राउंड नहीं बनाया जा सकता और इसकी पूरी समीक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने सरकार की 650 रिएक्टर बनाने वाली विस्तार नीति को भी कठघरे में खड़ा किया। इससे पहले जयराम ने कहा कि जैतापुर परियोजना केवल एक संयंत्र नहीं, बल्कि नाभिकीय ऊर्जा पार्क है। लिहाजा फुकुशिमा त्रासदी को देखते हुए यह सोचना होगा कि क्या वाकई हम एक ही स्थान पर 10 हजार मेगावाट क्षमता चाहते हैं, अथवा भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम की पुरानी नीति के अनुसार कई स्थानों पर छोटी-छोटी क्षमता के संयंत्र लगाना मुनासिब होगा। पर्यावरण मंत्री ने नाभिकीय संरक्षा इंतजामों की समीक्षा करने वाले परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड को भी रेलवे सेफ्टी कमीशन की तर्ज पर संबंधित विभाग से बाहर लाने की वकालत की। उल्लेखनीय है कि रेल हादसों की जांच करने वाला कमीशन नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत काम करता है|