Saturday, June 23, 2012

यूपी में सीवेज का जहर पीने को अभिशप्त नदियां


सभ्यता की पालनहार नदियों को प्रदेश में सीवेज रूपी गरल अरसे तक पीना पड़ेगा। वजह, सूबे की नदियों में गिरने वाले कुल सीवेज लोड के 40 फीसदी को ही शोधित करने की क्षमता फिलहाल उपलब्ध है। सीवेज शोधन संयंत्रों (एसटीपी) के निर्माण और सीवर लाइन बिछाने के भारी-भरकम खर्च से निपटने में संसाधनों की कमी आड़े आ रही है। कुछ स्थानों पर एसटीपी निर्माण के लिए जमीन का बंदोबस्त कर पाना प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। जो एसटीपी चालू हैं वे भी विभिन्न तकनीकी कारणों से अपनी क्षमता के अनुरूप सीवेज का शोधन नहीं कर पा रहे हैं। प्रदेश में नदियों के किनारे 54 नगर बसे हैं। इनमें 26 नगर गंगा, नौ यमुना, सात काली, तीन गोमती, दो-दो रामगंगा, घाघरा व सई तथा एक-एक ईसन, कोसी और राप्ती के किनारे हैं। इन 54 नगरों से 2934.92 एमएलडी सीवेज निकलता है। वहीं नदियों को प्रदूषणमुक्त करने के मकसद से प्रदेश में गंगा कार्य योजना के पहले और दूसरे चरण के तहत बनाए गए 33 एसटीपी की कुल सीवेज शोधन क्षमता सिर्फ 1193.85 एमएलडी है। यह नगरों से निकलने वाले कुल सीवेज लोड का सिर्फ 40 प्रतिशत है। नगरों का 60 फीसदी सीवेज लोड नदियों में यूं ही बहाया जा रहा है। प्रदेश में निर्माणाधीन 39 एसटीपी की कुल शोधन क्षमता भी 1370.05 एमएलडी ही है। इन 39 एसटीपी के बनकर चालू हो जाने पर भी प्रदेश में कुल सीवेज शोधन क्षमता 2563.9 एमएलडी ही रहेगी जो कि मौजूदा सीवेज लोड से भी कम है। जब तक नए एसटीपी बनकर तैयार होंगे तब तक सीवेज लोड और बढ़ जाएगा। जल निगम का आकलन है कि सन् 2025 तक इन नगरों का कुल सीवेज लोड 4264.27 एमएलडी हो जाएगा। सूबे के 630 नगरों में से 575 में सीवेज निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं है। सिर्फ 55 नगर ही ऐसे हैं जिनमें सीवेज निस्तारण की आंशिक व्यवस्था है। सीवर सिस्टम न होने के कारण ज्यादातर नगरों में सीवेज को एसटीपी तक पहुंचाने में बरसाती पानी को बहाने के लिए बनाए गए नाले, नालियों का इस्तेमाल करना पड़ता है। इन नालियों की ढाल कम होती है जिससे कि सीवेज बहने पर यह अक्सर जाम हो जाते हैं। जल निगम का आकलन है कि प्रदेश के सभी नगरों में सीवेज निस्तारण की मुकम्मल व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए 350 अरब रुपये की दरकार है। इसके विपरीत अब तक महज 40 अरब की परियोजनाएं ही मंजूर जा सकी हैं। एसटीपी के निर्माण के लिए प्रदेश में कई स्थानों पर जमीन मिलने में भी दिक्कतें आ रही हैं। मसलन, वाराणसी में सथवा में 120 एमएलडी व 140 एमएलडी के दो एसटीपी के लिए तीन साल से जमीन नहीं मिल पा रही है, जबकि सीवेज को एसटीपी तक ले जाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर सीवर लाइन बिछाई जा चुकी है। वाराणसी के रमना क्षेत्र में प्रस्तावित 37 एमएलडी के एसटीपी का निर्माण कई वर्षों से प्रशासनिक गतिरोध का शिकार है। बलिया में भी जमीन न मिल पाने के कारण दो एसटीपी का निर्माण तीन वर्षों से अटका पड़ा है। यह स्थिति तब है जब वाराणसी और बलिया में प्रस्तावित एसटीपी के लिए जिलाधिकारी को प्रतिकर की धनराशि उपलब्ध कराई जा चुकी है। मुरादाबाद में एसटीपी के लिए चिन्हित जमीन को लेकर एक साल से विवाद चल रहा है। बिजनौर में एक और कन्नौज में दो एसटीपी बनाने के लिए जमीन का बंदोबस्त करने में प्रशासन को पसीने छूट रहे हैं। प्रदेश में अभी 33 एसटीपी संचालित हैं जिनकी उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नियमित तौर पर निगरानी करता है। इनमें से ज्यादातर विभिन्न कारणों से क्षमता के अनुसार सीवेज का शोधन नहीं कर पा रहे हैं। बोर्ड द्वारा हाल ही में किए गए परीक्षण में 22 एसटीपी के शुद्धीकृत सीवेज नमूनों में प्रदूषणकारी प्रचालक मानकों से अधिक पाए गए। उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक ज्यादातर एसटीपी के शुद्धीकृत उत्प्रवाह में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से काफी ज्यादा पाई जाती है। यह कई जल जनित रोगों के लिए जिम्मेदार है। प्रदेश में 21 एसटीपी के संचालन का दायित्व जल निगम और 12 की स्थानीय निकायों के हाथ में है।

No comments:

Post a Comment