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Thursday, December 30, 2010

औने-पौने दामों में बिक रहीं उत्तराखंड की पहाडि़यां

कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल) अगर आपसे कहा जाए कि उत्तराखंड में पहाडि़यां बिक रही हैं तो क्या आप विश्वास करेंगे। खासकर तब जब पलायन के कारण खाली होते पहाड़ी इलाके सरकार के लिए चिंता का सबब हैं। पौड़ी गढ़वाल में ब्रिटिश हुकूमत की ओर से बसाई गई पर्यटन नगरी लैंसडौन के आसपास सड़क किनारे की जमीनें इन दिनों धनाड्यों के निशाने पर हैं, जो इन्हें मिट्टी के मोल खरीद रहे हैं। पिछले दो वर्षो के दौरान लैंसडौन तहसील में दर्ज किए गए इस तरह के चार दर्जन मामले इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल में वर्ष 2008 से लेकर अब तक, लैंसडौन-गुमखाल, लैंसडौन-दुगड्डा और दुगड्डा-रथुवाढाब मोटर मार्गो के इर्द-गिर्द 49 लोगों के जमीन खरीदने के आंकड़े राजस्व महकमे के पास उपलब्ध हैं। लैंसडौन में ही 4.67 हेक्टेयर जमीन के दाखिल खारिज किए जा चुके हैं। जमीन खरीदने वालों में कुछ बड़े नेता और कई व्यापारी शामिल हैं। इसकी शुरुआत हुई 2005 में, जब लैंसडौन के निकट डेरियाखाल क्षेत्र में सड़क से सटे पहाड़ के एक टुकड़े को खरीदकर एक शानदार रिजार्ट का निर्माण किया गया। इससे अन्य लोगों का ध्यान भी इस क्षेत्र की जमीन की अहमियत की ओर गया। इसके बाद तो लैंसडौन के नजदीकी गांव डेरियाखाल से लेकर कोटद्वार मार्ग पर स्थित दुगड्डा तक सड़क किनारे की जमीनों की खरीद-फरोख्त में खासी तेजी आ गई। आलम यह है कि लैंसडौन को जोड़ने वाली सड़कों के किनारे जमीन उपलब्ध नहीं है। राजस्व महकमे के मुताबिक डेरियाखाल में रिजार्ट निर्माण के बाद 15 बीघा, समीपवर्ती गांव पालकोट में 25 बीघा, लैंसडौन-गुमखाल मोटर मार्ग पर 45 बीघा और कोटद्वार-रथुवाढाब मार्ग पर लगभग 47 बीघा जमीन विभिन्न लोगों ने खरीदी है। अधिकारियों की मानें तो धनाड्यों को निवेश का यह सुरक्षित जरिया नजर आ रहा है। पौड़ी के जिलाधिकारी दिलीप जावलकर का कहना है कि कानूनी रूप से तो जमीनों की खरीद-फरोख्त नहीं रोकी जा सकती। अगर कहीं काश्तकार को धोखे में रखकर उसकी जमीन खरीदने का मामला सामने आता है तो जिला प्रशासन जांच के बाद जमीन के दाखिल खारिज को निरस्त कर देता है। रथुवाढाब क्षेत्र में इस तरह के दो-तीन मामलों में भूमि का दाखिल-खारिज निरस्त भी किया गया है।