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Thursday, March 17, 2011

कितने सुरक्षित है हमारे संयंत्र


जापान दहल रहा है। अभी तक धधकती हुई ज्वालाओं के अवशेष चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। ऊंची-ऊंची लहरों में कई जिंदगियाँ समा गई। मानवता को भी रोना आ रहा है। बहुतों ने देखा अपने पास से मौत को गुजरते हुए। भूकंप, सुनामी के बाद परमाणु विकिरण और अब ज्वालामुखी का दहकता लावा! समझ में नहीं आता कि इतनी सारी विपदाएं केवल जापान में ही क्यों? ऐसी बात नहीं है, विपदाएं कभी भी कहीं भी आ सकती हैं। कुछ लोग तो काम ही ऐसा करते हैं कि विपदाएं उनका पीछा नहीं छोड़तीं। हमारे देश की दहलीज पर आपदाएं दस्तक दे रही हैं। हमारे देश की परमाणु भट्ठियां कभी भी परमाणु बम का काम कर सकती हैं। हमारे देश में काम करने वाली परमाणु भट्ठियों में से एक भी ऐसी नहीं है, जो रिक्टर स्केल पर 9 की तीव्रता वाले भूकंप और सुनामी के सामने टिक सके। हम सब काल के मुहाने पर बैठे हैं। कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। हमारे देश में अमेरिकन कंपनियों की सहायता से 20 एटमिक पॉवर प्लांट तैयार किए गए हैं। भारत का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र मुंबई के करीब तारापुर में तैयार किया गया। गुजरात के काकरापार में भी परमाणु बिजली संयंत्र है। यदि अरब सागर में सुनामी की लहरें उठती हैं तो तारापुर परमाणु संयंत्र की हालत भी फुकुशिमा जैसी हो सकती है। मुंबई के लाखों लोग विकिरण का शिकार हो सकते हैं। जब भारत के दक्षिण समुद्री किनारे पर सुनामी की लहरें उठीं, तब चेन्नई के पास स्थित कलपक्कम परमाणु संयंत्र में पानी भर गया था। यह तो हमारा सौभाग्य था कि कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई। अभी हमारे देश में जिस तरह से समुद्री तट असुरक्षित होने लगे हैं और उसके आसपास गगनचुंबी इमारतें बनने लगी हैं, वे चाहे कितनी भी भूकंपरोधी और सुनामीरोधी हों, एक न एक दिन जमींदोज होनी ही हैं। यह सोचना बिलकुल गलत है कि जापान में जो कुछ हुआ, वह भारत में नहीं हो सकता। प्रकृति के कोप से आज तक कोई बच पाया है क्या? महाराष्ट्र के जैतापुर स्थित परमाणु बिजली संयंत्र के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने इन आंदोलनकारियों को आश्वासन दिया है कि यह संयंत्र इतना मजबूत है कि इस पर विमान भी टकरा जाए तो भी इससे विकिरण नहीं फैलेगा। उनकी इस घोषणा के बाद ही जापान का परमाणु संयंत्र सुनामी की चपेट में आ गया। 20 किलोमीटर का क्षेत्र खाली करवा दिया गया। यह सब कुछ उस जापान में हो रहा है, जो अब तक इस तरह की कई त्रासदियां झेल चुका है। इतना अधिक विकसित देश होने के बाद भी वह प्रकृति के आगे नतमस्तक हो गया। विज्ञान के मामले में वह भारत से कहीं अधिक उन्नत और प्रगतिशील है। जब वह आज लाचार है तो सोचिए, भारत पर ऐसी विपदा आएगी तो क्या होगा? दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु संयंत्र जापान के काशीवाजाकी कैरवा नामक प्रदेश में स्थित है। वर्ष 2007 में इस प्रदेश में 6.6 की तीव्रता का भूकंप आया था। तब संयंत्र से विकिरण का रिसाव हुआ था। यह संयंत्र इस झटके को सह पाने के काबिल नहीं था। यह बात सरकार ने लोगों से छिपा रखी थी। भूकंप के कारण इस संयंत्र को पूरे 21 महीने तक बंद रखा गया था। इस तरह से जापान ने एक दुर्घटना की खबर को पूरी तरह से छिपा ही लिया था। फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में यूरेनियम की सलाखों को ठंडा करने के लिए लाइट वॉटर का उपयोग किया जाता है। भारत में जो परमाणु संयंत्र हैं, उसमें हैवी वॉटर का इस्तेमाल किया जाता है। रिएक्टर में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया के कारण खूब गर्मी पैदा होती है। इस गर्मी के कारण भाप उत्पन्न होती है। यही भाप टर्बाइन को चलाती है। इससे बिजली उत्पन्न होती है। यदि रिएक्टर को ठंडे पानी की आपूर्ति बंद हो जाए तो इमरजेंसी कूलिंग सिस्टम चालू हो जाता है। इसमें बोरोन मिश्रित पानी रिएक्टर में छोड़ा जाता है। जापान में जब सुनामी आई तो परमाणु बिजली संयंत्र में संग्रहित बेरोनयुक्त पानी समुद्र में बह गया, इससे इमरजेंसी कूलिंग सिस्टम भी नकारा साबित हो गया। भूकंप के कारण बिजली बंद हो गई तो पानी के पंपों ने काम करना बंद कर दिया। इससे रिएक्टर में गर्मी एकदम से बढ़ गई। परमाणु विकिरण फैलने का यही कारण था। 1960 के दशक में जब इस संयंत्र का निर्माण किया गया, तब अमेरिकन कंपनी ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि सुनामी जैसी कोई आफत भी होती है।