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Monday, April 18, 2011

मानव ने वनमानुषों को बनाया अपनों का हत्यारा


मानव का लालच वनमानुषों को अपनों का ही हत्यारा बना रहा है। लगातार कटते पेड़, सिमटते जंगल, स्वेच्छाचारी मानुष के आगे वनमानुष विवश है। मेघालय के गारो हिल्स में हूलॉक गिब्बन (वनमानुष) अपनी ममता का गला घोंट रहे हैं। नए सदस्य के जन्म लेते ही पिता दिल पर पत्थर रख उसे जमीन पर पटक देता है। वनमानुषों के व्यवहार में आया यह हैरतअंगेज बदलाव उनमें मनुष्यों के लालच से उपजी कुंठा का नतीजा है। सिमटते जंगल और घटते भोजन पर नई पीढ़ी कैसे जिंदा रहेगी? वनमानुषों ने इसी सवाल का यह निर्मम हल निकाला है। साल दर साल अस्तित्व की लड़ाई हार रहे वनमानुषों की संख्या पिछले 25 वर्ष में 90 फीसदी कम हो गई है। औलाद से अजीज कुछ नहीं, इंसान हो या जानवर संतान सुख का भाव सबमें एक है। मगर इंसान में मची विकास की होड़ से विनाश की कगार पर पहुंच चुके वन मानुष जिंदगी की आस छोड़ चुके हैं। इस असुरक्षा के भाव ने ही उन्हें अपनी ही संतान की जान का दुश्मन बन गया। वनमानुषों के व्यवहार में आए इस परिवर्तन का असर उनकी प्रजनन दर पर भी पड़ा है। देहरादून स्थित प्राणि विज्ञान सर्वेक्षण विभाग (जेडएसआइ) की टीम हूलॉक गिब्बन पर शोध कर रही है। शोध में जुटे जेडएसआइ के प्राणी विज्ञानी जगदीश प्रसाद सती बताते हैं कि हाल ही में मेघालय के जंगलों में किए जा रहे अध्ययन के निष्कर्ष से साफ है कि तेजी से कट रहे जंगलों से वनमानुषों का रहन-सहन भी प्रभावित हो रहा है। हूलॉक गिब्बन की प्रजनन की रफ्तार घटने से उनके अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए हैं। यहां तक कि वे अपने बच्चों के कातिल बन बैठे हैं। जन्म लेते ही नर नवजात की पटक कर हत्या कर देता है। वर्ष 1990 में असम में इनकी संख्या लगभग 130 थी, जबकि आज यह घटकर 80 हो गई है। मेघालय सहित नॉर्थ ईस्ट के अन्य राज्यों 25 साल पहले करीब 70 हजार के आसपास वनमानुष थे, जो आज सिर्फ तकरीबन 600 रह गए हैं।


चीनी मिल के पानी से जहरीली हुई कृष्णा नदी


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में चीनी मिलों ने जीवनदायिनी नदियों को जहरीला बना गया दिया है। जिले के नानौता ब्लाक के भनेड़ा खेमचंदपुर के लिए तो कृष्णा नदी काल बन चुकी है। क्षेत्र में स्थित चीनी मिल से निकलने वाले कैमिकलयुक्त अपशिष्ट ने कृष्णा नदी के पानी को काली कर दिया है। यही वजह है कि गांव का भूमिगत जल भी प्रदूषित हो चुका है। अब तक तीस ग्रामीण असमय काल के गाल में समा चुके हैं। हैंडपंपों से निकलने वाले दूषित जल को पीकर गांव के लोग कैंसर, टीबी और त्वचा के रोगी हो रहे हैं। विकट होते हालात के मद्देनजर, बड़ी आबादी गांव से पलायन भी कर चुकी है। इतना सब होने के बावजूद, शासन प्रशासन ने गांव की ओर झांकने की जहमत तक नहीं उठाई है। जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर नानौता ब्लाक के भनेड़ा खेमचंदपुर गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है। ग्राम प्रधान सुदेश राणा को राष्ट्रपति ने पुरस्कृत किया लेकिन कृष्णा नदी से अभिशप्त इस गांव की हकीकत निर्मलता को तार-तार कर रही है। तीन हजार की आबादी वाले गांव से सटी कृष्णा नदी का जल इतना निर्मल था कि लोग नदी के ही पानी को पीते थे। 1975 में नानौता में सरकारी शुगर मिल लगने के बाद ही इस गांव के दुर्दिन शुरू हो गए। शुगर मिल का केमिकल और शीरे से युक्त अपशिष्ट नदी में डाला जाने लगा और वर्तमान में हालत यह हो गई है कि नदी का पानी जहरीला हो गया है। यही विषैला जल जमीन में पहुंच जाने से सरकारी व निजी हैंडपंप भी बदबूदार पीला पानी उगल रहे हैं। विषैले जल का सेवन करने के कारण ग्रामीण कैंसर, टीबी, पेट, आंत और चर्म रोगों की चपेट में आ गए। तकरीबन 30 लोगों की तो मौत हो चुकी है, जबकि 50 से ज्यादा लोग जिंदगी मौत से जूझ रहे हैं। इसी के चलते लोग कृष्णा नदी को अब मौत की नदी के नाम से पुकारते हैं। दिन पर दिन खराब होते हालात के कारण ही चंद वर्षो में दर्जनों परिवार गांव से पलायन कर चुके हैं। पशु भी होने लगे बांझ : दूषित जल ने गांव के सैकड़ों पशुओं को बांझ बना दिया है। बीमारी के भय से यहां युवाओं को विवाह के लिए कोई लड़की देने को तैयार नहीं। विषैला पानी पीने के कारण ही 50 वर्ष से ज्यादा कोई व्यक्ति जी ही नहीं पाता। इस गांव में विधवाओं की संख्या 50 से ज्यादा है। यूं तो यह मौत रूपी नदी अन्य गांव से गुजरती है पर आबादी इससे दूर निवास करने के चलते वहां इतना असर नहीं। मामले की शिकायत मुख्यमंत्री मायावती से लेकर कांग्रेस मुखिया सोनिया गांधी तक पहुंची। कांग्रेसी नेता अशोक गहलौत ने आठ अगस्त 2006 को तत्कालीन डीएम को कार्रवाई के निर्देश भी दिए थे, पर कोई समाधान नहीं हुआ। इस बारे में बात करने पर जिलाधिकारी चौब सिंह वर्मा ने स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि वह इसे गंभीरता से लेंगे। गांव में टीम भेजकर सुधार की मुहिम चलाई जाएगी।