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Wednesday, March 23, 2011
वन कानून में सुधार को मंजूरी
वन क्षेत्रों में छोटे अपराधों और वसूली बड़ा सबब बनते रहे भारतीय वन कानून के कई पुराने प्रावधानों में सुधारों को सरकार ने मंजूरी दे दी है। प्रस्तावित संशोधनों के मुताबिक भारतीय वन कानून 1927 में वन अपराध के किसी मामले में दंड के फैसले से पहले ग्राम सभा की राय भी अनिवार्य होगी। प्रधानमंत्री की अगुआई में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के संशोधन प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। सूत्रों के मुताबिक वन कानून के सेक्शन 68 में बदलाव किए गए हैं। आजादी से पूर्व के इस कानून में दंड प्रावधानों को सुधारते हुए दंड की अधिकतम सीमा को 50 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये किया गया है। उल्लेखनीय है कि यह कानून रेंजर और उससे ऊंचे पद वाले वन अधिकारी को किसी भी व्यक्ति के खिलाफ वन अपराध के संदेह में दंड वसूलने का अधिकार देता है। संशोधन से पहले दंड की अधिकतम सीमा 50 रुपये थी और इसके कारण वन क्षेत्रों में छोटे अपराधों का ग्राफ बढ़ गया था। वहीं वसूली की शिकायतों में भी इजाफा हो गया था। पर्यावरण मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक प्रस्तावित संशोधन वन क्षेत्रों में रहने वालों के खिलाफ हो रहे 90 फीसदी से ज्यादा मामलों को हल करने में मददगार होगा जिसमें छोटे अपराध मामलों में अर्थदंड व जब्ती कर ली जाती थी। वहीं सेक्शन 68 के तहत वन अपराध के मामले में अर्थ दंड लगाने या जब्ती से पहले ग्राम सभा की राय अनिवार्य बनाने से सरकारी अमले की मनमानी पर अंकुश लगाने में भी मदद मिलेगी। इस बीच वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने बांस को भी लघु वन उत्पाद की श्रेणी में रख दिया है। गौरतलब है कि वन कानूनों के कारण वन क्षेत्रों में प्रताड़ना के बढ़ते मामलों को लेकर बीते दिनों जनजातीय कार्य मंत्रालय ने भी मामले को उठाया था। साथ ही पुराने कानूनी प्रावधानों के कारण नक्सल उग्रवाद की भी पानी मिल रहा था|
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