आज भले ही लोग पानी की बरबादी पर ध्यान नहीं दे रहे हों। मगर निकट भविष्य में उन्हें इसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार भी रहना चाहिए। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिग और जनसंख्या बढ़ोतरी के चलते आने वाले 20 सालों में पानी की मांग उसकी आपूर्ति से 40 फीसदी ज्यादा होगी। यानी 10 में से चार लोग पानी के लिए तरस जाएंगे। कनाडा में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय बैठक में एकत्रित हुए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि पानी की लगातार कमी के कारण कृषि, उद्योग और तमाम समुदायों पर संकट मंडराने लगा है, इसे देखते हुए पानी के बारे में नए सिरे से सोचना बेहद आवश्यक हो गया है। डेली मेल की खबर के अनुसार, उन्होंने चेतावनी दी कि अगले दो दशकों में दुनिया की एक तिहाई आबादी को अपनी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी जल का सिर्फ आधा हिस्सा ही मिल पाएगा। कृषि क्षेत्र, जिस पर जल की कुल आपूर्ति का 71 फीसदी खर्च होता है, सबसे बुरी तरह प्रभावित होगा। वैज्ञानिकों ने कहा कि इससे दुनियाभर के खाद्य उत्पादन पर असर पड़ जाएगा। वैज्ञानिकों ने जोड़ा कि अकेले आपूर्ति सुधारों के जरिए विश्वभर में जल की कमी के अंतर को पाटने के लिए 124 अरब पौंड (करीब नौ लाख करोड़ रुपये) खर्च करने होंगे। ओट्टावा में कनेडियन वाटर नेटवर्क (सीडब्लूएन) द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय बैठक में करीब 300 वैज्ञानिकों, नीति निर्धारकों और अर्थशास्ति्रयों ने हिस्सा लिया था। सीडब्लूएन के निदेशक और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ग्लोबल एजेंडा काउंसिल ऑन वाटर सिक्योरिटी के वाइस चेयरमैन डॉ. कैटले कार्लसन ने कहा कि इंसान के समक्ष आसानी से आने वाली और करीब खड़ी चुनौतियों के लिए हमें तैयार रहने की जरूरत है। इंटरनेशनल एनवायरोमेंटल टेक्नोलॉजी कंसलटेंट्स क्लीनटेक ग्रुप के चेयरमैन निकोलस पार्कर ने खेती और उद्योगों में भारी मात्रा में इस्तेमाल हो रहे वर्चुअल जल पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि वर्चुअल जल का मतलब उत्पादन प्रक्रिया में अंत:स्थापित पानी की मात्रा से है। उदाहरण के लिए, पार्कर ने कहा कि एक डेस्कटॉप कंप्यूटर को बनाने के लिए 1.5 टन या 1500 लीटर पानी की जरूरत होती है। डेनिम जींस का जोड़ा तैयार करने में एक टन जल की आवश्यकता पड़ती है जबकि एक किलो गेंहू उगाने के लिए भी इतने ही जल की जरूरत होती है। इसी तरह, एक किलो चिकन के लिए तीन से चार टन जल खर्च होता है। पार्कर ने जोड़ा कि अक्सर लोगों को अहसास नहीं होता है कि हर चीज जो हम बनाते या खरीदते हैं उसमें कितना जल खर्च होता है। यूएस एनवायरोमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के डॉ. निकोलस एशबोल्ट ने कहा कि जल संग्रहण के उपाय विकसित देशों में घरो में जल की मांग को आसानी से 70 फीसदी तक घटा सकते हैं। जल बचत करने के उदाहरणों में यूरीन सेपरेशन सिस्टम के साथ ड्राई कंपोस्टिंग टॉयलेट भी शामिल हैं जो बागीचे की खाद की तरह इस्तेमाल किए जा सकते हैं। ऐसे टॉयलेट से दूसरे मार्ग से निकले जल का खेती में पुन: इस्तेमाल हो सकता है जबकि शेष मल को मिट्टी उर्वर बनाने वाली आर्गेनिक खाद में बदला जा सकता है। डॉ. एशबोल्ट ने कहा कि इन तकनीकों का काफी सुरक्षात्मक तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है, यहां तक कि काफी घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में भी। बैठक में इस पर भी चर्चा हुई कि पर्यावरण परिवर्तन कैसे दुनिया के अंतिसंवेदनशील हिस्सों में बाढ़ के खतरे को बढ़ा रहा है|
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Thursday, March 3, 2011
बारूद से छलनी असी गंगा का आंचल
उत्तराखंड में कल्दीगाड और असीगंगा फेज-1 व फेज-2 जल विद्युत परियोजना के लिए किए जा रहे बारूदी विस्फोटों ने गंगा की बहन असी गंगा के आंचल को छलनी कर डाला है। मलबे को निश्चित जगह पर डंप न किए जाने से गंगा भागीरथी की इस सहायक नदी के खूबसूरत तट मलबे और बड़े-बड़े बोल्डरो के ढेर से बदसूरत हो गए हैं। ढेरों मलबे के बीच सिसकती नदी किसी तरह अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। मानकों की धज्जियां उड़ा कर किए जा रहे धमाकों से वन संपदा पर भी संकट है। उत्तरकाशी जिले के डोडीताल से निकलने वाली असी गंगा करीब 32 किलोमीटर की दूरी तय कर गंगोरी में भागीरथी से मिल जाती है। नदी का खूबसूरत तट सैलानियों को भी खूब भाता है। गंगोरी से कुछ दूरी पर नदी में दो हाइड्रो प्रोजेक्ट निर्माणाधीन हैं। इसके लिए आसपास की चट्टानों पर ब्लास्टिंग की जा रही है, लेकिन निर्माण एजेंसी मानकों की धज्जियां उड़ाने से नहीं चूक रही। मलबे की डंपिंग के लिये कोई नियत जगह न होने के कारण चट्टानों से निकला मलबा व भारी भरकम बोल्डर सीधे नदी की ओर लुढ़का दिये जा रहे हैं। जिससे वन्य संपदा को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंच रहा है। तट किनारे की पगडंडियों पर पहाड़ों में अटके बड़े बोल्डर दुर्घटना का सबब बन सकते हैं। जल विद्युत निगम के अधिशासी अभियंात बताते हैं कि निगम द्वारा कार्यदाई एजेंसी को को विस्फोटकों के प्रयोग व मलबा डंपिंग में जरूरी बातों को ध्यान में रखने को कहा जाता है। प्रभागीय वनाधिकारी डा. आईपी सिंह का कहना है कि निर्माण कार्य में वन संपदा को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिये। ऐसे में संबंधित लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। बीते वर्ष इसी आधार पर विभाग ने कंपनी को काम रोकने को कहा था|
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