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Saturday, April 16, 2011

बर्फबारी ने रोकी गोमुख की राह


 लगातार बारिश और बर्फबारी के चलते इस बार गोमुख की राह काफी कठिन हो गई है। हालांकि गंगोत्री नेशनल पार्क से ट्रैक के लिए अनुमति लेने का सिलसिला कायम है, लेकिन अभी एक ही ट्रैकर गोमुख पहुंच सका है। मौसम का मिजाज इस बार पिछले कुछ वर्षो से हटकर है। बीते वर्ष अप्रैल के पहले पखवाड़े तक 52 ट्रैकर गोमुख तक चहलकदमी कर लौट आए थे, लेकिन इस बार स्थितियां विपरीत हैं। गंगोत्री नेशनल पार्क क्षेत्र के वार्डन डॉ.आईपी सिंह ने बताया कि गोमुख ट्रैक की अनुमति तो दी जा रही है, लेकिन मौसम साथ नहीं दे रहा है। सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पर्यटकों की सुविधा के लिए अब गंगोत्री में भी परमिट जारी करने की व्यवस्था की जा रही है। गोमुख ट्रैक पर सोनगाड के बाद भारी बर्फ है। भोजवासा तथा चीड़वासा जैसे पड़ाव भी बर्फ से ढके हैं। बीते वर्ष तक अप्रैल में चीड़वासा के बाद ही ट्रैक पर कुछ बर्फ थी। इस बार मार्च में सेना का एक अभियान दल गंगोत्री से कुछ आगे चलकर ही लौट आया था। एक अप्रैल से गोमुख ट्रैक खोल दिए जाने से गंगोत्री नेशनल पार्क के कर्मचारी भी कनखू बैरियर पर तैनात हैं। भोजवासा-चीड़वासा तक कर्मियों को पहुंचना है, लेकिन हालत यह है कि अप्रैल की शुरुआत से ही करीब आधा दर्जन ट्रैकिंग दल ट्रैक बीच में छोड़कर लौट चुके हैं। अभी एक विदेशी पर्यटक ही गोमुख तक पहुंचने में सफल हो सका है, जबकि अप्रैल के लिए अभी तक 24 परमिट जारी किए जा चुके हैं। इनमें अधिकांश विदेशी पर्यटक हैं। मई में स्थितियां ठीक होने पर ट्रैकरों की भीड़ बढ़ने की उम्मीद है। चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद गोमुख ट्रैक पर श्रद्धालुओं की चहलकदमी बढ़ जाएगी, पर मौसम को देखते हुए अप्रैल अंत तक ट्रैक के मुश्किल बने रहने के आसार हैं। गंगोत्री नेशनल पार्क की ओर से इस बार ट्रैकरों सहित ट्रैक से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए कर्मियों को वाकी-टाकी सेट दिए जा रहे हैं। अब तक इस क्षेत्र में संवाद के अभाव में समस्याएं पैदा होती रही हैं। सही समय पर सूचना न मिलने से दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है|

झारखंड में जी का जंजाल बना जैविक कचरा


अस्पतालों का खतरनाक जैविक कचरा झारखंड शासन के लिए जी का जंजाल बन गया है। जैविक कचरे के निष्पादन के लिए राज्य में पांच कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसलिटी (सीबीडब्ल्यूटीएफ) का निर्माण होना है। इसे ही लेकर शासन में असमंजस बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देश पर झारखंड में पांच सीबीडब्ल्यूटीएफ बनाए जाने हैं। निजी भागीदारी से बनने वाले इस प्लांटों के लिए कुछ कंपनियों ने आवेदन भी दे रखा है। इसके लिए दो बार निविदा निकाली जा चुकी है, लेकिन कोई परिणाम सामने नहीं आया। हाल ही में निकाली गई निविदा में एक कंपनी ने कम रेट कोट किया, जिसके कारण राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड असमंजस में है। नियमत: सबसे कम रेट कोट करने वाले के पक्ष में निविदा दी की जाती है। एक करोड़ की लागत वाले इन प्लांट में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से 50 फीसदी अनुदान होने के कारण बोर्ड सतर्कता बरत रहा है। इस बारे में फैसला लेने के लिए बोर्ड की बैठक होने वाली है। सूत्रों के मुताबिक, धनबाद और जमशेदपुर में दो प्लांट बनकर तैयार हैं लेकिन मानकों के अनुरूप न होने के कारण बोर्ड इन्हें मंजूरी नहीं दे रहा है। निजी भागीदारी से बनने वाले प्लांट बीआओ (बिल्ड, ऑपरेट एंड ओन) पर आधारित होंगे। दस हजार बेड पर एक प्लांट : केंद्रीय बोर्ड के निर्देशानुसार विभिन्न अस्पतालों और निजी नर्सिंग होम के दस हजार बेड अथवा 150 वर्ग किमी में एक सीबीडब्ल्यूटीएफ की स्थापना की जानी है। इस लिहाज से राज्य में कम से कम पांच प्लांट की आवश्यकता है। निजी कंपनियां प्रति बेड अस्पतालों से 3 रुपये की दर से अपशिष्ट निस्तारण का शुल्क वसूलेंगी। वे प्रति बेड एक रुपया परिवहन के मद में भी लेंगी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सीआर सहाय ने कहा कि जैविक अपशिष्ट के निस्तारण को कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना के लिए टेंडर निकाला गया है। बैठक में टेंडर पर निर्णय लिया जाएगा|