राजमार्गो का निर्माण और कृषि भूमि की अधिकता हरियाणा में राष्ट्रीय वन क्षेत्र के घटने की प्रमुख वजह है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति आम लोगों की उदासीनता और सरकारी प्रयासों की कमी को भी वन क्षेत्र में बढ़ोतरी न हो पाने का बड़ा कारण माना जा रहा है। अब जब पानी सिर से गुजरने लगा तो राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर दिखाई देने लगी है। इस कड़ी में जहां पर्यावरण संरक्षण के प्रति आम लोगों की जिम्मेदारी तय की जाएगी, वहीं राष्ट्रीय राजमार्गो के दोनों तरफ किसानों की खेती योग्य जमीनों में आमदनी वाले पौधे रोपित करना प्रस्तावित है। गौरतलब है कि राज्य का कृषि क्षेत्र 80 और वन क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्र का सिर्फ 6.80 फीसदी है। अगस्त 2010 में वन क्षेत्र को बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने का लक्ष्य तय किया गया था, लेकिन इसे हासिल करने में वन विभाग के पसीने छूटे हुए हैं। वन विभाग पिछले साल राज्य में पांच करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ा। दो करोड़ 65 लाख पौधे निशुल्क बांटे गए। 60 लाख पौधे किसानों की जमीन पर लगाने का मसौदा तैयार हुआ, लेकिन किसानों की नानुकूर, अधिकारियों की लापरवाही और आम लोगों की उदासीनता ने सब कुछ चौपट कर दिया। राज्य में गठित 5 हजार इको क्लब, 1700 ग्राम वन समितियों और 1607 स्वयं सहायता समूहों ने भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का ठीक ढंग से निर्वाह नहीं किया। सूबे में राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ पौधारोपण पर 8 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। वाहनों से फैलने वाले प्रदूषण को रोकने और राजमार्गो के विस्तार की वजह से कटे पेड़ों की कमी को पूरा करने के लिए यह योजना चलाई गई। इसके तहत वन विभाग आय वाले पौधे लगाकर तीन वर्ष तक देखभाल के बाद उन्हें किसानों को सौंप देगा। दिक्कत यह है कि किसान इसके लिए सहयोग देने को मानसिक तौर पर तैयार नहीं दिखते हैं। उन्हें अपनी जमीनों पर कब्जे का डर है। राज्य में 26 औद्योगिक उद्यान हैं। इनमें कई की हालत बेहद खराब है। पिछले साल योजना बनी थी कि इन औद्योगिक उद्यानों में पैदा होने वाली औषधियों की बिक्री के लिए निजी कंपनियों से बात की जाएगी, लेकिन इस पर कोई प्रगति नजर नहीं आई। अब इस योजना को आगे बढ़ाना इस साल की बड़ी चुनौती है। औद्योगिक प्रदूषण की अगर बात करें तो फरीदाबाद देश का आठवां सबसे अधिक प्रदूषित जिला है। पानीपत और सोनीपत की दशा भी अच्छी नहीं है। फैक्टरियों और अस्पतालों का कचरा खुले में छोड़ा जा रहा है। हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने इस प्रदूषण को रोकने की दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं किए हैं। पर्यावरण मंत्री कैप्टन अजय यादव का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति आम लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, तभी वन क्षेत्र को चरणबद्ध ढंग से 20 प्रतिशत तक ले जाया जा सकेगा। पौधारोपण के बाद उसकी देखभाल बेहद जरूरी है। बड़, पीपल व नीम के पौधे लगाने की प्रेरणा देते हुए कैप्टन ने कहा कि इस वर्ष स्कूल व कालेजों में युवाओं के बीच मजबूती के साथ जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने किसानों को भी प्रेरित करने की जरूरत पर जोर दिया है।
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Saturday, January 8, 2011
Friday, January 7, 2011
27 साल से मैला ही रहा यमुना का आंचल!
यमुना का मैलापन दूर करने की मुहिम में 27 साल बीत गए, पर नदी का आंचल आज तक साफ नहीं हो पाया। हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सरकारों के सहयोग से चलाई जा रही इस मुहिम पर केंद्र सरकार 841 करोड़ 88 लाख रुपये खर्च कर चुकी है। ज्यादातर धनराशि जापान सरकार से ब्याज पर ली गई है। यमुना एक्शन प्लान के दो चरणों के बावजूद अब यमुना में न केवल अमोनिया की मात्रा बढ़ गई है, बल्कि अन्य घातक रसायन भी पानी में जहर घोल रहे हैं। लोगों में जागरूकता के अभाव को इसका सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। यमुना के मैलेपन से चिंतित केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को आखिरकार यमुना के रखवाले राज्यों को पत्र लिखकर अपने आक्त्रोश का इजहार करना पड़ा है। इसकी शुरुआत उन्होंने हरियाणा को पत्र लिखकर की है। यमुना नदी हरियाणा के छह और उत्तर प्रदेश के आठ जिलों तथा दिल्ली से होकर बहती है। जयराम रमेश की नाराजगी के बाद यमुना से घिरे तीनों राज्यों की बढ़ी जिम्मेदारी से अब इनकार नहीं किया जा सकता है। दरअसल, यमुना के प्रदूषण को खत्म करने और पानी में सुधार के लिए अप्रैल 1993 में यमुना एक्शन प्लान आरंभ किया गया था। फरवरी 2003 तक चले इस प्लान के तहत हरियाणा के यमुनानगर-जगाधरी, करनाल, पलवल, पानीपत, रादौर, सोनीपत, गोहाना, गुड़गांव और इंद्री में सीवरेज ट्रीटमेंट लगाए गए। पहले चरण में सभी राज्यों के लिए 705.50 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए, जिसमें से 595.86 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। यमुना एक्शन प्लान का दूसरा चरण दिसंबर 2004 में आरंभ हुआ, जो अब भी जारी है। इसके तहत 647.86 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए, जिसमें से 284.76 करोड़ रुपये जारी हुए और 246.02 करोड़ रुपये का इस्तेमाल हो चुका है। हरियाणा में जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग, उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश जल बोर्ड तथा दिल्ली में दिल्ली जल निगम के सहयोग से यह प्लान संचालित किए गए हैं। नेशनल यूथ अफेयर आर्गेनाइजेश के अध्यक्ष रणबीर बतान की मानें तो यमुना एक्शन प्लान इसलिए कामयाब नहीं हो पाया, क्योंकि इसे लागू करने से पहले आम लोगों को विश्र्वास में नहीं लिया गया। रणबीर बतान यमुना एक्शन प्लान के लिए भी काम कर चुके हैं। उनके अनुसार सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के सीवर-पाइप छोटे रखे गए, जबकि पानी का बहाव अधिक था। लोगों ने पालीथीन भी सीवरेज में डालनी आरंभ कर दी। राज्यों में औद्योगिक फैक्टरियों पर भी कड़ा अंकुश नहीं लग पाया। उन्होंने दावा किया कि विभिन्न राज्यों के ज्यादातर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट अभी भी खराब पड़े हैं।
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