पंजाब और जम्मू-कश्मीर सरकार की उदासीनता से उपजा सीमा विवाद रावी नदी को कभी भी लाल कर सकता है। माधोपुर में दोनों राज्यों के बीच से गुजरने वाली इस नदी में हदबंदी की स्थायी बुर्जियां नहीं बनने से विवाद गहराता जा रहा है। इस वर्ष पंजाब की सीमा में खनन नीलामी के बाद नदी से पत्थर निकाले जाने पर जम्मू-कश्मीर की ओर विरोध हुआ। हालात इस कदर बिगड़े कि दोनों पक्षों ने बाजुएं तक चढ़ा लीं। पंजाब के खनन विभाग ने गत जून में जम्मू-कश्मीर के खनन विभाग को सूचित करने के बाद माधोपुर से लेकर कीड़ीया गड़माल तक रावी नदी पर 14 किमी सीमा पर अस्थायी पिलर लगा दिए। इसके बाद खनन की नीलामी की। ठेकेदारों के नदी से पत्थर निकलवाना शुरू करने पर जम्मू कश्मीर के लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। उनकी मांग है कि रावी की स्थायी हदबंदी की जाए, क्योंकि पंजाब के क्रेशर संचालक उनके क्षेत्र में पत्थर, दड़ा आदि उठाते हैं। खनन विभाग के जीएम सर्वजीत सिंह ने कहा, रावी की निशानदेही की गई थी और हदबंदी के बाद हुए उक्त खड्डों की नीलामी की गई थी। उन्होंने कहा, फंड की कमी के कारण रावी की हदबंदी पर बुर्जी नहीं लगाई जा सकी थी। उन्होंने कहा, रावी के साथ अन्य स्थानों पर भी निशानदेही के बाद भी खड्डों की नीलामी की गई थी।
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Wednesday, January 19, 2011
Friday, January 7, 2011
27 साल से मैला ही रहा यमुना का आंचल!
यमुना का मैलापन दूर करने की मुहिम में 27 साल बीत गए, पर नदी का आंचल आज तक साफ नहीं हो पाया। हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सरकारों के सहयोग से चलाई जा रही इस मुहिम पर केंद्र सरकार 841 करोड़ 88 लाख रुपये खर्च कर चुकी है। ज्यादातर धनराशि जापान सरकार से ब्याज पर ली गई है। यमुना एक्शन प्लान के दो चरणों के बावजूद अब यमुना में न केवल अमोनिया की मात्रा बढ़ गई है, बल्कि अन्य घातक रसायन भी पानी में जहर घोल रहे हैं। लोगों में जागरूकता के अभाव को इसका सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। यमुना के मैलेपन से चिंतित केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को आखिरकार यमुना के रखवाले राज्यों को पत्र लिखकर अपने आक्त्रोश का इजहार करना पड़ा है। इसकी शुरुआत उन्होंने हरियाणा को पत्र लिखकर की है। यमुना नदी हरियाणा के छह और उत्तर प्रदेश के आठ जिलों तथा दिल्ली से होकर बहती है। जयराम रमेश की नाराजगी के बाद यमुना से घिरे तीनों राज्यों की बढ़ी जिम्मेदारी से अब इनकार नहीं किया जा सकता है। दरअसल, यमुना के प्रदूषण को खत्म करने और पानी में सुधार के लिए अप्रैल 1993 में यमुना एक्शन प्लान आरंभ किया गया था। फरवरी 2003 तक चले इस प्लान के तहत हरियाणा के यमुनानगर-जगाधरी, करनाल, पलवल, पानीपत, रादौर, सोनीपत, गोहाना, गुड़गांव और इंद्री में सीवरेज ट्रीटमेंट लगाए गए। पहले चरण में सभी राज्यों के लिए 705.50 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए, जिसमें से 595.86 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। यमुना एक्शन प्लान का दूसरा चरण दिसंबर 2004 में आरंभ हुआ, जो अब भी जारी है। इसके तहत 647.86 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए, जिसमें से 284.76 करोड़ रुपये जारी हुए और 246.02 करोड़ रुपये का इस्तेमाल हो चुका है। हरियाणा में जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग, उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश जल बोर्ड तथा दिल्ली में दिल्ली जल निगम के सहयोग से यह प्लान संचालित किए गए हैं। नेशनल यूथ अफेयर आर्गेनाइजेश के अध्यक्ष रणबीर बतान की मानें तो यमुना एक्शन प्लान इसलिए कामयाब नहीं हो पाया, क्योंकि इसे लागू करने से पहले आम लोगों को विश्र्वास में नहीं लिया गया। रणबीर बतान यमुना एक्शन प्लान के लिए भी काम कर चुके हैं। उनके अनुसार सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के सीवर-पाइप छोटे रखे गए, जबकि पानी का बहाव अधिक था। लोगों ने पालीथीन भी सीवरेज में डालनी आरंभ कर दी। राज्यों में औद्योगिक फैक्टरियों पर भी कड़ा अंकुश नहीं लग पाया। उन्होंने दावा किया कि विभिन्न राज्यों के ज्यादातर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट अभी भी खराब पड़े हैं।
Saturday, January 1, 2011
मेहमान परिंदों के लिए बनेंगे आशियाने
मध्य एशिया और हिमालयी क्षेत्रों से आने वाले विदेशी पक्षी अब शाहजहांपुर के वन्यक्षेत्रों में जमकर मौज मस्ती करेंगे। मेहमान परिंदों को जल बिहार के लिए उपयुक्त वातावरण मिलेगा वहीं आराम के लिए मचान के इंतजाम भी किये जायेंगे। सैलानी भी अफगानिस्तान, तिब्बत, किरगिजस्तान, नेपाल, ईरान आदि देशों से आने वाले पक्षियों के कलरव का आनंद उठा सकेंगे। वन विभाग ने पक्षियों के प्रवास के लिए झील और झाबरों को प्राकृतिक वास स्थल के रूप में विकसित करने के लिए वेट लैंड पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया है। चार करोड़ 47 लाख के इस प्रोजेक्ट के प्रभावी होने से जिले में राष्ट्रीय उद्यान की झलक दिखाई देने लगेगी। वेटलैंड प्रोजेक्ट में पांच झील और झाबरों को विदेशी और स्वदेशी पक्षियों के प्रवास के अनुकूल बनाने की योजना बनाई गई है। प्रोजेक्ट में भावलखेड़ा ब्लाक के फकरगंज झाबर, सिमरई झाबर, सिंधौली ब्लाक में टिकरी झाबर, पुवायां में सांभर झील और शारदा नगर के पास बढेला झाबर को विकास व सुंदरीकरण के लिए शामिल किया गया है। रिलायंस बिजली परियोजना की स्थापना के बाद नित नये आयाम स्थापित करने को अग्रसर शाहजहांपुर जिले में वन विभाग ने भी पर्यावरण सरंक्षण, जल संरक्षण समेत विविध सरोकारों के लिए महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बनाकर नये साल पर उम्मीदों के पंख लगा दिये हैं। प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) पीपी सिंह के अनुसार वेट लैंड प्रोजेक्ट के प्रभावी होने से झाबर व झीलों से अतिक्त्रमण दूर होगा। पर्यावरण का संरक्षण होगा। जल संरक्षण के साथ वाटर लेबल मेंटेन रहेगा। पक्षियों का शिकार नियंत्रित होगा। क्या-क्या होगा द्य झील और झाबरों की सफाई कराने के साथ ही उन्हें गहरा किया जाएगा। चिडिय़ाघर और उद्यान का लुक देने को ट्रेकिंग पाथ वे बनेगा। द्य चारो ओर तारों की बाड़ लगाई जाएगी।
Thursday, December 30, 2010
कन्नौज से वाराणसी तक गंगा सबसे गंदी
नई दिल्ली गंगा को प्रदूषण मुक्त करने को कृत संकल्प केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) चलाने के लिए राज्य सरकारों को निर्बाध बिजली आपूर्ति का निर्देश दिया जाए ताकि उनमें 24 घंटे काम हो सके। सरकार ने कहा है कि गंगा की सबसे खराब स्थिति कन्नौज से वाराणसी के बीच है जहां का पानी नहाने लायक भी नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा है कि एसटीपी के रखरखाव एवं संचालन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। बिजली की नियमित आपूर्ति न होने से ज्यादातर एसटीपी और पंपिंग स्टेशन काम नहीं कर पाते हैं। उन्हें 24 घंटे चलाने के लिए राज्य सरकारों को निर्बाध बिजली देने का आदेश दिया जाए। केंद्र सरकार ने निर्बाध बिजली आपूर्ति की जरूरत के बाबत कोर्ट द्वारा पूछे गए सवाल पर अपने हलफनामे में यह बात कही है। केंद्र का कहना है कि रिवर बेसिन योजना के तहत बनाई गई संपत्तियों जैसे एसटीपी और पंपिंग स्टेशन के रखरखाव एवं संचालन में आने वाले खर्च को योजना आयोग से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 70 और 30 के अनुपात में बांटने का अनुरोध किया गया है। खर्च का यह बंटवारा पांच वर्षो के लिए होगा। तीन साल में इसकी समीक्षा की जाएगी। इसके अलावा एसटीपी का बेहतर रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों के बीच त्रिपक्षीय समझौते होंगे। समझौते की शर्ते और प्रारूप भी सरकार ने कोर्ट के सामने पेश किया है। केंद्र सरकार ने गंगा में प्रदूषण और वर्तमान चुनौतियों का विस्तृत ब्योरा पेश किया है। इसमें केंद्र ने स्वीकार किया है कि 73 शहरों में 1055 एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) की सीवेज शोधन क्षमता विकसित करने में 900 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन गंगा में प्रदूषण बढ़ता रहा। अपेक्षित नतीजे न पाने के कई कारण भी गिनाए गए हैं जिनमें योजनाओं का धीमा क्रियान्वयन, एसटीपी का क्षमता से कम उपयोग और क्रियान्वयन में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो का ढीला रवैया शामिल है। राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण की स्थापना के बाद जो लक्ष्य निर्धारित हुए हैं उनमें यहां सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। इसके अलावा पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों, शराब कंपनियों, पेपर मिलों और चमड़ा मिलों के प्रदूषण पर ध्यान केन्द्रित किया जायेगा.
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