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Saturday, May 7, 2011
हरित अदालतें और पर्यावरणीय चिंता
सुरक्षित होंगे बाघ
राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण की दिशा में सफलता की दास्तां लिख रहे उत्तराखंड के लिए स्पेशल टाइगर प्रोटक्शन फोर्स की एक और यूनिट की सैद्धांतिक स्वीकृति निश्चित रूप से बड़ी उपलब्धि है। इससे बाघों का कुनबा बढ़ाने के साथ ही इनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात हो सकेंगे। यानी केंद्र इस मद में हरसंभव सहयोग देने को तैयार है, लेकिन कहीं न कहीं इस राह में प्रदेश सरकार की सुस्ती भी बाधक बन रही है। यह इससे भी साबित होता है कि पूर्व में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने बाघ संरक्षण के मद्देनजर विश्व प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क में स्पेशल टाइगर प्रोटक्शन फोर्स (एसटीपीएफ) की मंजूरी दी। 112 कर्मियों की यह यूनिट अभी तक आकार नहीं ले पाई है। पांच माह बाद अब जाकर इसकी सेवा नियमावली तय हो पाई है। कहा जा रहा है कि जल्द ही कार्बेट लैंडस्केप में इस फोर्स की तैनाती होगी। सरकार की यही सुस्ती चिंताजनक है। जो कार्य जल्द होने चाहिए, उनमें महीनों का वक्त लग जा रहा है। अब एनटीसीए ने उत्तराखंड में पूरे तराई लैंडस्कैप यानी राजाजी नेशनल पार्क से लेकर नेपाल सीमा तक बाघों की सुरक्षा को एसटीपीएफ की एक और यूनिट की सैद्धांतिक स्वीकृति दी है। मंशा साफ है कि इससे बाघों के संरक्षण को तो गति मिलेगी ही, वन अपराधों पर नकेल कसने में भी मदद मिलेगी। राज्य सरकार को अब इस सिलसिले में सिर्फ केंद्र को प्रस्ताव भेजना है और फिर एसटीपीएफ की दूसरी यूनिट अस्तित्व में आ जाएगी। ऐसे में गेंद अब प्रदेश सरकार के पाले हैं। उसे केंद्र से मदद के साथ ही बाघों के संरक्षण में तेजी लानी है तो उसे जल्द से जल्द प्रस्ताव भेजना चाहिए। इससे कम से कम 112 और लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे भी खुलेंगे।
पर्यावरण की कीमत पर समझौते भी करने पड़े
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बड़ी साफगोई से स्वीकार किया है कि कई बार उन्हें पर्यावरण संबंधी नियमों के उल्लंघन के मामले में समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा है। आदर्श हाउसिंग सोसायटी को गिराने के पर्यावरण मंत्रालय के आदेश का जिक्र करते हुए रमेश ने कहा कि हमें एक संकेत देना होगा कि कानून का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। रमेश ने कहा कि वह अवैध इमारतों के नियमितीकरण के एकदम खिलाफ हैं। यहां एक कार्यक्रम में रमेश ने कहा कि मुंबई में आदर्श सोसायटी को गिराने के फैसले का मकसद भ्रष्टाचारियों को कठोर संकेत देना है। उन्होंने कहा कि अवैध कामकाज का नियमन अनोखी भारतीय विशेषता है। यह ढर्रा बन गया है कि पहले आप कानून बनाओ और फिर उसे तोड़ो। पर्यावरण मंत्री ने कहा कि उनके पास आदर्श को पूरी तरह गिराने की सिफारिश ही विकल्प था। हालांकि उन्होंने कहा कि आदर्श के सिलसिले में मामला अदालत में है और वह ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे। रमेश ने स्वीकार किया कि दुर्भाग्य से कई बार उन्हें भी नियमन करने को बाध्य होना पड़ता है, क्योंकि उस समय विकल्प नहीं होता खासकर जब कोई रिफाइनरी बनाई गई होती है या इस्पात संयंत्र बनाया जाता है। रमेश ने पर्यावरण संबंधी उल्लंघन के कुछ मामलों में खुद को दोषी माना। रमेश के मुताबिक कुछ मौकों पर उन्होंने समझौता नहीं किया जबकि कुछ मौकों पर उन्हें झुकना पड़ा। बंदरगाहों, सीमेंट फैक्टरियों और विद्युत परियोजनाओं के निर्माण कार्य में कानूनों के उल्लंघन का जिक्र करते हुए रमेश ने कहा कि ऐसे मामलों में बहुत खर्च होता है और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होता है। हालांकि रमेश ने कहा कि कुछ मौकों पर यह संकेत देना होता है कि कानून का मतलब कानून होता है और उन्हें तोड़ा नहीं जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर कानून तोड़ना एक परंपरा का रूप ले लेती है।
हिमाचल प्रदेश में दिनों दिन बढ़ रही वन संपदा
देश में वनों की घटती संख्या और वृक्षों के अंधाधुंध कटान के बीच यह सुखद समाचार है कि हिमाचल प्रदेश में वन संपदा बढ़ रही है। राज्य के पास 11 साल पहले 1,06,666 करोड़ की वन संपदा थी, जिसके अब और बढ़ने के आसार हैं। हिमाचल प्रदेश के वन विभाग ने अपनी वन संपदा का आकलन करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट भोपाल को जिम्मा सौंपा है। टीम जुलाई में प्रदेश का दौरा करेगी। इससे पहले मई 2000 में फॉरेस्ट वेल्थ यानी वन संपदा का आकलन किया गया था।
लाहुल-स्पीति में सबसे अधिक वन क्षेत्र : हिमाचल प्रदेश में ताजा आंकड़ों के अनुसार राज्य का वन क्षेत्र 37033 वर्ग किलोमीटर है। वनों से ढका क्षेत्र 14668 वर्ग किलोमीटर है और घना वन क्षेत्र 3224 वर्ग किलोमीटर है। सबसे अधिक वन क्षेत्र लाहुल-स्पीति व सबसे कम वन क्षेत्र हमीरपुर का है। हिमाचल प्रदेश वन विभाग के चीफ कंजर्वेटर फॉरेस्ट (सीसीएफ) वर्किग प्लान तेजेंद्र सिंह का कहना है कि प्रदेश में वन संपदा का आकलन करने के लिए आइआइएफएम को प्रोजेक्ट दिया गया है। प्रारंभिक काम शुरू हो गया है। इस समय टीम सिक्किम के दौरे पर है। उसके बाद जुलाई में भोपाल संस्थान से टीम के हिमाचल आने की संभावना है। वन संपदा का आकलन करने के लिए विभिन्न मानक होते हैं। इनमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मानक शामिल हैं। वनों से हासिल होने वाली कुछ संपदा प्रत्यक्ष दिखाई देती है। इसमें लकड़ी, चारा, घास, पत्तियां आदि शामिल हैं। अप्रत्यक्ष पूंजी में भू-संरक्षण, मृदा संरक्षण, ऑक्सीजन के अलावा वनों पर आधारित पर्यटन आते हैं। हाल ही में इसमें नया कंसेप्ट कार्बन क्रेडिट का भी जुड़ा है। वन संपदा का आकलन करते समय पेड़ों के कारण मिट्टी की उर्वरक क्षमता, पानी, जैव विविधता व टिंबर का मूल्य भी देखा जाता है।
सियोग कैचमैंट एरिया का पानी सबसे शुद्ध : वन विभाग द्वारा कुछ अरसा पहले कराए गए अध्ययन में शिमला स्थित सियोग कैचमैंट एरिया के प्राकृतिक जलस्रोतों से मिलने वाला पानी शुद्धता के लिहाज से बहुत बेहतर क्वालिटी का पाया गया था। इसका कारण यहां मृदा क्षरण न होना और बहुतायत में पेड़ पाया जाना था। इसके अलावा प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के कारण भी यहां का पानी सेहत के लिए लाभदायक मिनरल वाला बताया गया था।
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