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Saturday, June 18, 2011
Wednesday, June 15, 2011
Saturday, May 7, 2011
पर्यावरण की कीमत पर समझौते भी करने पड़े
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बड़ी साफगोई से स्वीकार किया है कि कई बार उन्हें पर्यावरण संबंधी नियमों के उल्लंघन के मामले में समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा है। आदर्श हाउसिंग सोसायटी को गिराने के पर्यावरण मंत्रालय के आदेश का जिक्र करते हुए रमेश ने कहा कि हमें एक संकेत देना होगा कि कानून का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। रमेश ने कहा कि वह अवैध इमारतों के नियमितीकरण के एकदम खिलाफ हैं। यहां एक कार्यक्रम में रमेश ने कहा कि मुंबई में आदर्श सोसायटी को गिराने के फैसले का मकसद भ्रष्टाचारियों को कठोर संकेत देना है। उन्होंने कहा कि अवैध कामकाज का नियमन अनोखी भारतीय विशेषता है। यह ढर्रा बन गया है कि पहले आप कानून बनाओ और फिर उसे तोड़ो। पर्यावरण मंत्री ने कहा कि उनके पास आदर्श को पूरी तरह गिराने की सिफारिश ही विकल्प था। हालांकि उन्होंने कहा कि आदर्श के सिलसिले में मामला अदालत में है और वह ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे। रमेश ने स्वीकार किया कि दुर्भाग्य से कई बार उन्हें भी नियमन करने को बाध्य होना पड़ता है, क्योंकि उस समय विकल्प नहीं होता खासकर जब कोई रिफाइनरी बनाई गई होती है या इस्पात संयंत्र बनाया जाता है। रमेश ने पर्यावरण संबंधी उल्लंघन के कुछ मामलों में खुद को दोषी माना। रमेश के मुताबिक कुछ मौकों पर उन्होंने समझौता नहीं किया जबकि कुछ मौकों पर उन्हें झुकना पड़ा। बंदरगाहों, सीमेंट फैक्टरियों और विद्युत परियोजनाओं के निर्माण कार्य में कानूनों के उल्लंघन का जिक्र करते हुए रमेश ने कहा कि ऐसे मामलों में बहुत खर्च होता है और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होता है। हालांकि रमेश ने कहा कि कुछ मौकों पर यह संकेत देना होता है कि कानून का मतलब कानून होता है और उन्हें तोड़ा नहीं जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर कानून तोड़ना एक परंपरा का रूप ले लेती है।
Monday, April 11, 2011
जापान में रेडिएशन प्रभावित पानी को हटाने में देरी
जापान में 11 मार्च के विनाशकारी भूकंप और प्रलयंकारी सुनामी में क्षतिग्रस्त फुकुशिमा संयंत्र के परिसर में मौजूद रेडियोधर्मिता वाले पानी को वहां से हटाने का सुचारू ढंग से नहीं हो रहा है, क्योंकि उसकी तैयारी में काफी समय लग रहा है। इस आपदा में मरने वालों या लापता लोगों की तादाद करीब 28,000 हो गई है। जापानी समाचार एजेंसी एजेंसी एनएचके के अनुसार टर्बाइन इमारतों और कंकरीट की सुरंगों में मौजूद उच्च रेडियोधर्मिता वाले जल की मौजूदगी रिएक्टरों के कूलिंग सिस्टम शुरू करने के काम में रुकावट डाल रहे हैं। वहां ऐसे पानी की मात्रा करीब 50,000 लीटर है। संयंत्र की संचालक कम्पनी टोक्यो इलेक्टि्रक पॉवर कंपनी (टेप्को) इस जल को परिशोधन सुविधा और टर्बाइन कंडेसर में भरना चाहती है। इसके लिए वह टर्बाइन इमारतों और सुविधा के बीच पाइप बिछाने में जुटी है। इमारतों की दीवारों पर सुराख किए जा चुके हैं लेकिन अब तक पाइप नहीं बिछाए जा सके हैं। इतना ही नहीं इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले इस निपटान सुविधा की सही ढंग से पड़ताल किया जाना जरूरी है। दूसरी ओर जापान की राष्ट्रीय पुलिस एजेंसी ने रविवार सुबह घोषणा की कि इस आपदा में अब तक 12,985 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 14,809 अब तक लापता हैं। मृतकों के इस आंकड़े में गत गुरुवार के भूकंप की चपेट में आकर मरे लोगों को भी शामिल किया गया है। सबसे ज्यादा 7929 लोग मियागी में मारे गए, जबकि आइवेट में 3783 और फुकुशिमा में 1211 लोगों की मौत हो चुकी है। कुछ इलाके इतने ज्यादा तबाह हुए हैं कि वहां मरने वालों की संख्या का अंदाज नहीं लगाया जा सका है। मरने वालों और लापता लोगों की संख्या में और ज्यादा होने की आशंका है। जापान के स्व-रक्षाबल और अमेरिकी सेना लापता लोगों की तलाश जारी रखे हुए है। जापान सरकार रेडियोधर्मी विकिरण के खतरों से बचाव को लेकर आने वाले दिनों में स्कूली बच्चों के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगी। फुकुशिमा प्रशासन के अनुरोध पर जापान के शिक्षा मंत्रालय ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करने में जुटा है। समाचार एजेंसी एनएचके के अनुसार अधिकारियों ने बताया कि दिशा-निर्देश विभिन्न स्कूलों और स्कूल परिसर की मिट्टी में विकिरण के स्तर को लेकर हुए सर्वेक्षण पर आधारित हैं। इसके मुताबिक निर्धारित स्तर से अधिक विकिरण पाए जाने पर स्कूलों को कक्षाएं तथा बाहर ट्यूशन बंद करने होंगे और छात्रों को मुंह पर मास्क पहनना भी सुनश्चित करना होगा। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार दिशा-निर्देश को अंतिम रूप देने से पहले परमाणु सुरक्षा आयोग से तकनीकी सलाह ली जाएगी। आयोग ने शनिवार को संवाददाताओं से बताया कि प्रभावित क्षेत्रों में स्कूलों से कक्षाएं शुरू करने से पहले कुछ शर्तो का पालन करने के लिए कहा जाएगा। फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से टकराई थीं 48 फीट ऊंची लहरें जापान में 11 मार्च को आए विनाशकारी भूकंप और सुनामी में फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र से टकराने वाली लहर समुद्र के सामान्य स्तर से 48 फुट ऊंची थी। संयंत्र के एक कर्मचारी द्वारा लिए गए संक्षिप्त वीडियो में यह दृश्य दिखाया गया है। वीडियों में दिखाया गया है कि भूकंप के बाद आई सुनामी की विशाल लहर संयत्र से टकराती है और उसे ढक लेती है। लहर की ऊंचाई छह संयंत्रों की इमारत से ज्यादा है। परमाणु संयंत्र की संचालक टोक्यो इलेक्टि्रक पॉवर ने कहा समुद्र के सामान्य स्तर से 14 से 15 मीटर ऊंची लहर संयंत्र की पांच मीटर की दीवार को आसानी से ढंक लेती है|
Wednesday, April 6, 2011
समुद्र के जल में रेडियोधर्मी प्रदूषण का स्तर और बढ़ा
फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में मौजूद रेडियोधर्मी जल को प्रशांत महासागर में बहाया जा रहा है। इस कारण जापान के समुद्र जल में विकिरण का स्तर और बढ़ गया है। हालांकि जापानी अधिकारी इसे स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा नहीं मान रहे हैं। जापान के सरकारी प्रवक्ता ने मंगलवार को राष्ट्रीय टेलीविजन नेटवर्क पर कहा, समुद्र जल में रेडियोधर्मी आयोडीन का स्तर सामान्य से लाखों गुना अधिक पाया गया है। मीडिया रिपोर्टो के अनुसार, पिछले सप्ताह रिएक्टर नंबर दो में दरार पड़ने के कारण संयंत्र की संचालन कंपनी टोक्यो इलेक्टि्रक पावर कंपनी (टेपको) ने पानी के नमूनों में प्रदूषण का स्तर 75 लाख गुना अधिक पाया था। जापान की परमाणु एवं औद्योगिक सुरक्षा एजेंसी ने कहा, समुद्र में प्रदूषण का कारण संयंत्र से बहाया जा रहा पानी ही है। उसके मुताबिक अब तक लगभग 60 हजार टन प्रदूषित जल समुद्र में बहाया जा चुका है। सोमवार को टेपको द्वारा साढ़े ग्यारह हजार टन निम्न स्तर का प्रदूषित जल समुद्र में बहाया गया। टेपको के मुताबिक अब तक लगभग साढ़े तीन हजार टन प्रदूषित जल समुद्र में बहाया जा चुका है। औद्योगिक मंत्री बानरी काइदा ने कहा, समुद्र जल में प्रदूषण का स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन लोगों की बढ़ रही चिंताओं का हमें खेद है। काइदा ने कहा, हम निम्न स्तरीय प्रदूषित जल को समुद्र में नहीं बहाए जाने की कोशिश करेंगे। पाक ने भी संयंत्रों की सुरक्षा समीक्षा के आदेश दिए इस्लामाबाद : जापान में परमाणु संयंत्र से हो रहे रिसाव के बाद पाकिस्तान भी सजग हो गया है। यहां की शीर्ष परमाणु नियामक संस्था ने अधिकारियों को कराची और चश्मा स्थित परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के सुरक्षा पहलुओं की समीक्षा करने को कहा है। परमाणु नियामक संस्थान (पीएनआरए) ने परमाणु ऊर्जा आयोग (पीएईसी) से परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा प्रणाली, ऑपरेटरों के प्रशिक्षण, आपातकालीन विद्युत प्रणालियों और आपातकालीन तैयारियों की समीक्षा करने को कहा है। वहां के परमाणु संयंत्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं। इससे इंसानों या पर्यावरण को विकिरण का खतरा नहीं है। पीएनआरए के मुताबिक उसने पीएईसी से प्राकृतिक आपदा और दुर्घटनाओं से निपटने के लिए खुद तैयारी करने की सलाह दी है। पीएनआरए फुकुशिमा संयंत्र से हो रहे रेडियोधर्मी रिसाव व जापानी अधिकारियों की प्रतिक्रिया का अध्ययन करता रहेगा। पीएनआरए 21वीं सदी के लिए परमाणु सुरक्षा और सुरक्षा चुनौतियों विषय पर दो दिवसीय (21 से 23 अप्रैल) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन इस्लामाबाद में करने जा रहा है। इसमें परमाणु उद्योग से जुड़े विशेषज्ञ, ऑपरेटर, डिजाइनर और निर्माता हिस्सा लेंगे|
Tuesday, April 5, 2011
रेडियोधर्मी रिसाव का पता लगाने में जुटे वैज्ञानिक
फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से रेडियोधर्मी रिसाव की समस्या से जूझ रहे जापानी इंजीनियरों ने सोमवार को डाई (रंजक) का इस्तेमाल कर रिसाव के स्रोत का पता लगाने की कोशिश की। संयंत्र का संचालन करने वाली टोक्यो इलेक्टि्रक पॉवर कंपनी (टेपको) ने घोषणा की है कि संयंत्र से 11,500 टन दूषित पानी समुद्र में छोड़े जाने की योजना है। जापानी समाचार एजेंसी क्योदो के मुताबिक टेपको ने 13 किलोग्राम सफेद डाई एक भूमिगत गर्त में डाली है, ताकि प्रशांत महासागर में हो रहे रेडियोधर्मी रिसाव के स्रोत का पता लगाया जा सके। टेपको अधिकारियों का कहना है कि रेडियोधर्मी पानी संयंत्र के दूसरे रिएक्टर की टर्बाइन इमारत के बेसमेंट और इससे जुडे़ सुरंगनुमा गर्त में भर गया है। गर्त में डाई डालने का कदम दूसरे रिएक्टर के क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत करने में सफलता मिलने के बाद उठाया गया। सफेद डाई स्थानीय समयानुसार सुबह 7.30 बजे गर्त में छोड़ी गई। टेपको उस प्रभावित इलाके के आस-पास बाड़ लगाने पर विचार कर रही है, जहां से रेडियोधर्मी रिसाव की संभावना जताई जा रही है। सरकारी प्रवक्ता यूकियो इदेनो ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि यही एकमात्र विकल्प है। भूकंप और सुनामी से क्षतिग्रस्त परमाणु संयंत्र को विशेषज्ञ पिछले तीन हफ्ते से नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। इंडोनेशिया में भूकंप और सुनामी की चेतावनी : इंडोनेशिया के जावा द्वीप के दक्षिणी हिस्से में सोमवार तड़के भूकम्प आने के बाद जारी की गई सुनामी की चेतावनी वापस ले ली गई है। रिक्टर पैमाने पर 7.1 की तीव्रता वाले भूकम्प के बाद यह चेतावनी जारी की गई थी। वेबसाइट बीबीसी डॉट को डॉट यूके के अनुसार इंडोनेशिया की मौसम विज्ञान एवं भूभौतिकी एजेंसी (बीएमकेजी) ने सुनामी की चेतावनी को वापस ले लिया है। भूकंप का मुख्य केंद्र सिलाकैप से लगभग 300 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में 10 किलोमीटर की गहराई पर केंद्रित था। इंडोनेशियाई रेडियो के मुताबिक भूकंप के बाद हजारों लोग अपने घरों से बाहर निकल आए और उंचे स्थानों पर शरण लेने के प्रयास में इधर-उधर भागने लगे|
Monday, April 4, 2011
जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में दो कर्मियों के शव मिले
विनाशकारी भूकंप और भयावह सुनामी में क्षतिग्रस्त हुए जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से दो कर्मचारियों के शव मिले हैं, जबकि रेडियोधर्मी पदार्थो युक्त पानी को समुद्र में मिलने से रोकने के प्रयास जारी हैं। बताया जा रहा है कि दोनों कर्मियों की मौत 11 मार्च को आई सुनामी से हुई थी, लेकिन सवाल बना हुआ है? दूसरी ओर संयंत्र में आई दरार को पाटने के लिए पॉलीमर का इस्तेमाल किया जा रहा है। वेबसाइट बीबीसी डॉट को डॉट यूके के मुताबिक टोक्यो इलेक्टि्रक पॉवर कंपनी (टेप्को) ने कहा कि संयंत्र के दो लापता कर्मचारियों के शव रिएक्टर संख्या चार की टर्बाइन इमारत के भूतल में मिले हैं। इन कर्मचारियों के नाम काजूहिको कोकूबो और योशिहिकी तेराशिमा हैं। समाचार एजेंसी क्योदो के अनुसार इनकी मौत सिर चोट लगने से हुई। ये दोनों शव बुधवार को मिले। दूसरी ओर जापान सरकार और फुकुशिमा के क्षतिग्रस्त परमाणु संयंत्र की संचालक कंपनी ने संयंत्र के 20 किलोमीटर के दायरे की हवा में रेडियोधर्मी पदार्थो के स्तर का आकलन करना प्रारंभ कर दिया है। प्रधानमंत्री के सलाहकार ने कहा कि संयंत्र से रेडियोधर्मी पदार्थो का रिसाव रोकने के लिए सभी संभव उपाय किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि कुछ महीनों में रिसाव पूरी तरह रोक लिया जाएगा। जापान की समाचार एजेंसी एनएचके के मुताबिक जापान सरकार और टेप्को संयंत्र के आसपास के 20 किलोमीटर के दायरे में पहले से ही हवा में फैले रेडियोधर्मी पदार्थो की मात्रा माप रही हैं, लेकिन इस संबंध में अभी तक कोई विस्तृत आकलन नहीं किया गया है। इस इलाके में रहने वाले सभी लोगों को हटाया जा चुका है। जापान और अमेरिकी के परमाणु विशेषज्ञों की बैठक में अमेरिकी विशेषज्ञों ने कहा कि वातावरण में रेडियोधर्मी पदार्थों के फैलने का स्तर जानने के लिए और ज्यादा परीक्षणों की आवश्यकता है। बैठक के बाद जापान सरकार और टेप्को ने खाली कराए जा चुके इलाके के 30 स्थानों पर हवा में रेडियाधर्मी पदार्थो का स्तर जानने के लिए विस्तृत अध्ययन शुरू कर दिया। अब तक मिले परिणामों के मुताबिक हवा में प्रति घंटा एक माइक्रोसीवर्ट से कम से लेकर 50 माइक्रोसीवर्ट तक का रेडियोधर्मी विकिरण पाया गया है। जापान में 11 मार्च को आए रिक्टर पैमाने पर 9 तीव्रता के भूकंप और सुनामी लहरों से मरने वाले लोगों की सख्या 12,000 से ज्यादा हो गई है और 15,500 से ज्यादा लोग अब भी लापता हैं। जापान के प्रधानमंत्री नाओतो कान के सलाहकार घोषी होसोनो ने रविवार को पत्रकारों से कहा कि क्षतिग्रस्त संयंत्र से रेडियोधर्मी पदार्थो से युक्त पानी का समुद्र के पानी में रिसाव बेहद गंभीर बात है और सरकार इसे रोकने के लिए सभी संभव उपाए करेगी। होसोनो ने कहा कि इस रिसाव के असर की जांच करना जरूरी है। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस जांच के परिणाम जल्दी ही सार्वजनिक किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि रिएक्टर संख्या दो के निचले तल पर जमा पानी को जल्द से जल्द हटाया जाएगा। उन्होंने कहा कि लोगों की सबसे बड़ी चिंता संयंत्र से हो रहे रेडियोधर्मी पदार्थो के रिसाव को रोकने की है। उन्होंने कहा संयंत्र में संकट अभी भी जारी है, लेकिन हालात अब स्थिर हैं। दूसरी ओर जी-7 संगठन में शामिल विकसित देशों के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर अगले सप्ताह जापान त्रासदी से हुए नुकसान से इस देश को उबारने के उपायों पर चर्चा करेंगे। यह बैठक 14 अप्रैल को वॉशिंगटन में होगी। जापान में भूकंप की त्रासदी होने के बाद से जी-7 की यह पहली बैठक होगी। इससे पहले 18 मार्च को विकसित देशों के वित्त मंत्रियों ने जापान की मदद के लिए इसकी मुद्रा येन में मजबूती रोकने के लिए मौद्रिक हस्तक्षेप करने का फैसला किया था। जापान त्रासदी से विश्वभर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। अमेरिका और अन्य देशों में कई संयंत्रों में उत्पादन स्थगित करना पड़ा है, क्योंकि जापान से उपकरणों की आपूर्ति बंद हो गई है|
Friday, April 1, 2011
Wednesday, March 30, 2011
जापान के पास संयंत्र को नष्ट करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं
फुकुशिमा में परमाणु रिएक्टर से निकल रहे विकिरण पर काबू पाने में असफल जापान सरकार ने मंगलवार को कहा कि देश परमाणु खतरे के उच्चतम बिंदु पर है। यहां की जमीन में प्लूटोनियम मिल चुका है, जबकि उच्च रेडियोधर्मी पदार्थ संयंत्र से निकल कर पानी में मिल रहा है। जापान के प्रधानमंत्री नाओतो कान ने संसद में कहा, वर्तमान भूकंप, सुनामी और परमाणु विकिरण कई दशकों में जापान के लिए सबसे बड़ा संकट है। उन्होंने कहा, परमाणु संयंत्रों की स्थिति का अनुमान लगाना काफी मुश्किल है। ऐसा हो सकता है कि छह रिएक्टर वाले फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को अंतत: समाप्त कर दिया जाए। मुख्य कैबिनेट सचिव युकियो एडानो ने मिट्टी में प्लूटोनियम पाए जाने पर गहरी चिंता जताते हुए कहा, स्थिति काफी चिंताजनक है। हालांकि संयंत्र का संचालन करने वाली टोक्यो इलेक्टि्रक पावर कंपनी (टेपको) ने सोमवार को कहा कि मिट्टी में पाए गए प्लूटोनियम की मात्रा से मानव स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा नहीं है। टेपको के उपाध्यक्ष सकाइ म्यूतो ने कहा, प्लूटोनियम कितनी दूर तक फैल चुका है इसकी जांच करना सरल नहीं है। रिएक्टर नंबर दो के बाहर पानी में भी विकिरण का स्तर 1000 मिली सिएवटर््स प्रति घंटा (सिएवटर््स विकिरण मापने की इकाई को कहते है) से अधिक पाया गया है। इस मात्रा के चार घंटे या उससे अधिक समय तक मानव शरीर के संपर्क में रहने से शरीर में श्वेत रक्त कोशिकाओं में कमी आने लगती है और एक महीने में व्यकित की मौत हो सकती है। रविवार को रिएक्टर नंबर दो में विकिरण की सबसे उच्च स्तर का पता चला है। हवा में विकिरण का स्तर 200-300 मिली सिएवटर््स पाया गया। पानी में विकिरण का स्तर सामान्य से एक लाख गुना अधिक पाया गया है। जापान के परमाणु एवं औधोगिक सुरक्षा एजेंसी के प्रवक्ता हीदेहीको नीशियामा ने कहा, रिएक्टर नंबर एक का तापमान 320 डिग्री सेल्सियस के ऊपर पहुंच गया है। एजेंसी ने कहा, फिलहाल टेपको रिएक्टर से निकलने वाले पानी को समुद्र या दूसरी जगहों पर जाने से रोकने के प्रयास में जुटा है। एडानो ने कहा, हमें रिएक्टर को ठंडा करने और प्रदूषित पानी को बहने से रोकने में काफी परेशानी हो रहा है|
कनाडा तक पहुंचा परमाणु विकिरण
जापान के क्षतिग्रस्त फुकुशिमा परमाणु रिएक्टर का विकिरण यहां से 7,000 किलोमीटर से भी अधिक दूर कनाडा के पश्चिमी तट तक पहुंच गया है। वैंकूवर स्थित सिमोन फ्रेजर विश्वविद्यालय के अनुसार फुकुशिमा देइची परमाणु बिजली संयंत्र से निकलने वाले विकिरण का असर कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के पश्चिमी तट तक पहुंच गया है। ज्ञात हो कि जापान में 11 मार्च को आए भीषण भूकम्प और सुनामी से मची तबाही में यह परमाणु संयंत्र क्षतिग्रस्त हो गया था। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा है कि वैंकूवर के लोवर मैनलैंड इलाके से 19, 20 और 25 मार्च को लिए गए नमूनों में आयोडीन-131 की मात्रा पाई गई है। स्थानीय समाचार पत्र वैंकूवर सन के अनुसार विश्वविद्यालय के परमाणु वैज्ञानिक क्रिस स्तारोस्ता ने कहा कि फुकुशिमा परमाणु संयंत्र क्षतिग्रस्त होने की वजह से ही आयोडीन-131 की मात्रा यहां दर्ज की गई है। क्रिस ने कहा, विकिरण स्तर की जानकारी हासिल करने के लिए पूर्व की परमाणु घटनाओं के दौरान एकत्र की गई जानकारियों का सहारा लिया जा रहा है। हम जांच कर रहें हैं और अभी तक हम यह कह सकते हैं कि यह खतरे के स्तर तक नहीं पहुंचा है। उन्होंने कहा कि आयोडीन-131 के स्तर पर लगातार निगरानी रखी जा रही है। जापान में 11 मार्च को आई भीषण त्रासदी में 27,000 से अधिक लोगों के मारे जाने या उनके लापता होने की सूचना है। जापान में फिर आया भूकंप : जापान के पूर्वोत्तर इलाके में मंगलवार को भूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 6.4 मापी गई। समाचार एजेंसी डीपीए ने मौसम विज्ञान एजेंसी के हवाले से बताया कि भूकंप से जान अथवा माल के नुकसान होने की अभी कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है। एजेंसी ने भूकम्प के बाद सुनामी की चेतावनी जारी नहीं की है। एजेंसी के मुताबिक शाम 7.54 बजे आए इस भूकंप का केंद्र फुकुशिमा प्रांत से दूर था। भूकंप से पहले से क्षतिग्रस्त फुकुशिमा परमाणु विद्युत संयंत्र संख्या-1 में किसी तरह के नुकसान के बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है|
Thursday, March 24, 2011
जापान के विकिरणग्रस्त क्षेत्रों में सब्जी, दूध की बिक्री पर रोक
जापान के अधिकारियों ने बुधवार को पेयजल में विकिरण स्तर बढ़ा हुआ मिलने के बाद टोक्यो के नलों में आ रहे पानी को बच्चों के लिए हानिकारक घोषित कर दिया। जबकि अमेरिका विकिरण संकट के बाद जापान से खाद्य पदार्थो का आयात प्रतिबंधित करने वाला पहला देश बन गया है। जापानी अधिकारियों ने कहा कि एक करोड़ तीस लाख की आबादी वाले टोक्यो के जल शुद्धिकरण संयंत्र में पानी में सामान्य से दोगुना रेडियोएक्टिव आयोडिन पाया गया है। उन्होंने कहा, निश्चित रूप से यह फुकुशिमा संयंत्र के कारण है। बच्चों के लिए यह खतरनाक है। खास तौर पर साल भर से कम के शिशुओं को इसे कतई नहीं पिलाया जाना चाहिए। इस बीच अमेरिका ने जापानी खाने-पीने की चीजों में विकिरण के खतरे को देखते हुए उसके खाद्य पदार्थो का आयात रोक दिया है। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने कहा, जापान के फुकुशीमा और टोचीगी जैसे क्षेत्रों से खाने-पीने की चीजों का आयात रोक दिया गया है। इसमें सब्जी, फल और दुग्ध उत्पाद शामिल है। एफडीए के अनुसार, वहां से कोई भी सामान अमेरिका तभी आएगा जब जापान सुनिश्चित कर दे कि ये प्रभावित क्षेत्रों से नहीं है। इसके अलावा हम भी जापान से आ चुकी सभी खेपों की विकिरण जांच उपकरण द्वारा जांच करेंगे। अमेरिकी घोषणा के बाद जापान के प्रधानमंत्री नाओतो कान ने भी देशवासियों से फुकुशिमा प्रांत में उगाई गई सब्जियों का इस्तेमाल न करने को कहा है। दूसरी ओर भूकंप और सुनामी की विनाशलीला में जापान के मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अधिकारियों के अनुसार मृतक संख्या 9,199 हो चुकी है। जबकि 13,786 लोग अब तक लापता हैं। खबरें हैं कि भूकंप और सुनामी से बचे दर्जनों लोग, जिनमें ज्यादातर बुजुर्ग हैं, अस्पतालों या राहत केंद्रों में दम तोड़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण इलाज का अभाव और कड़ाके की ठंड है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा के कारण अब तक हुए नुकसान का आंकड़ा अब 300 अरब डॉलर बताया जा रहा है। जापान सरकार ने बुधवार को कहा कि 11 मार्च के विनाशकारी भूकंप और सुनामी से देश को पहुंचा नुकसान 309 अरब डॉलर का हो सकता है। सरकार ने कहा कि 160 से 250 खरब येन की कीमत के मकानों, फैक्टि्रयों और सामाजिक आधारभूत संरचना के प्रत्यक्ष नुकसान का अनुमान है। देश में हुआ यह नुकसान वर्ष 1995 में पश्चिमी जापान में कोबे में आए भूकंप से हुए 96 खरब येन के नुकसान से कही ज्यादा है। इस भूकंप में 6,400 लोग मारे गए थे और सुनामी नहीं आई थी। इसके अलावा सरकार का अनुमान है कि देश की अर्थव्यवस्था को 0.5 प्रतिशत तक का नुकसान होगा। बुधवार को अंतरराष्ट्रीय समय के मुताबिक तीन बजे नेशनल पुलिस एजेंसी द्वारा जारी किए गए बयान के मुताबिक भूकंप से मरने वाले लोगों की संख्या 9,408 हो गई है और 14,716 लोग अब भी लापता हैं। भूकंप और सुनामी से 1,450 सड़कें और 51 पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं और 120 जगहों पर भूस्खलन हुआ है|
Thursday, February 17, 2011
उत्तर प्रदेश में सरकारी सुस्ती का शिकार हुई पर्यावरण नीति
एक अच्छी पहल किस तरह सरकारी सुस्ती का शिकार होती है इसका उदाहरण है उत्तर प्रदेश की पर्यावरण नीति। आठ वर्षो में सरकार बदल गई, पर्यावरण के हालात खराब होते गए, लेकिन इस दौरान राज्य की पहली पर्यावरण नीति का मसौदा कानून का रूप न अख्तियार कर पाया। राज्य की विकास योजनाओं में बिना बाधा डाले पर्यावरण संरक्षण के लिए पहले वर्ष 2006 फिर 2010 में पर्यावरण नीति का व्यापक मसौदा बनाया गया। परंतु इच्छाशक्ति के अभाव में इस अहम् नीति को लागू कराने की कोशिश ही नहीं की गई। पर्यावरण नीति का ड्राफ्ट एक वर्ष से वेबसाइट पर है ताकि इस बारे में आम आदमी के सुझाव व आपत्तियां प्राप्त की जा सकें, लेकिन इस प्रयास में भी कोई सफलता हासिल नहीं हुई। नतीजा उत्तर प्रदेश राज्य पर्यावरण नीति का मसौदा राज्य सरकार की मंजूरी न मिलने से लटका हुआ है। राज्य पर्यावरण नीति लागू करने की जरूरत इसलिए मानी जा रही है ताकि भिन्न-भिन्न पर्यावरणीय समस्याओं से घिरे प्रदेश की तमाम योजनाओं को पर्यावरण संगत बनाया जा सके। साथ ही नीति के प्रावधानों के आधार पर विभिन्न विभागों द्वारा पर्यावरण संरक्षण की ठोस कार्ययोजनाएं तैयार की जा सके। अगर प्रदेश के पर्यावरणीय हालातों पर नजर डाली जाए तो लगभग 22 जिले पर्यावरण अपघटन व प्रदूषण से जुड़ी बदहाली से जूझ रहे हैं। वास्तविकता यह है कि अनियोजित औद्योगिकीकरण व शहरीकरण, वाहनों की बेलगाम संख्या, वन संपदा व भूजल संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, कूड़ा-कचरा, वायु प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय चुनौतियां प्रदेश को चौतरफा घेरे हुए हैं। इस पर्यावरणीय हकीकत से निपटने की मंशा फिलहाल नजर नहीं आ रही है। महत्वपूर्ण यह भी है कि केंद्र ने राष्ट्रीय पर्यावरण नीति वर्ष 2006 में ही लागू कर दी है, जबकि प्रदेश में पृथक राज्य पर्यावरण नीति को मूर्त कराने के लिए अलग बजट का प्रावधान करना पड़ेगा। क्यों जरूरी है पर्यावरण संरक्षण : विश्व बैंक केअनुसार प्रदूषण के कारण सूबे में हर साल 94 लाख मानव वर्षों की क्षति का होती है जिसकी अनुमानित लागत 6170 करोड़ है। दूषित पर्यावरण के कारण लोगों की सेहत दांव पर लगी है।
Friday, January 7, 2011
वन कानून का चेहरा बदलने की कवायद, प्रस्ताव अगले सत्र में
वन क्षेत्रों में जनजातीय आबादी की परेशानी का सबब बनने वाले वन कानून को सरकार अब बदलने की तैयारी कर रही है। आजादी से पहले के इस कानून में सुधार की सुध लेते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने संशोधन का एक प्रस्ताव केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेजा है। सब कुछ ठीक चला तो भारतीय वन कानून 1927 में संशोधन संसद के आगामी सत्र में पेश कर दिया जाएगा। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के अनुसार सरकार की मंशा इस कानून को अधिक मानवीय बनाने की है ताकि आदिवासियों के खिलाफ मामलों का बोझ कम किया जा सके। इस संबंध में केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया का कहना था कि कानूनी खामियों के कारण कई बार आदिवासियों को झाड़ू बनाने के लिए कुछ पत्ते तोड़ने और शहद जमा करने के लिए थोड़ा धुंआ करने पर भी तीन महीने की सजा भुगतनी पड़ती है। उनके मुताबिक इस तरह के मामले नक्सल हिंसा को सींचने में भी मददगार बनते हैं। जनजातीय इलाकों में वन प्रबंधन की व्यवस्था दुरुस्त बनाने के लिए वन अधिकार कानून में सुधार के लिए गठित एनसी सक्सेना समिति ने भी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। बीस सदस्यों वाली इस समिति ने 17 राज्यों का दौरा कर देश में वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन की समीक्षा की। समिति ने 2006 में लागू वन अधिकार कानून के खराब क्रियान्वयन का हवाला देते हुए इस दिशा में कई सुधार करने की सिफारिश की है। रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि सरकार की योजना देश में वन प्रबंधन तीन स्तरीय बनाने की है। इसके तहत देश की सात करोड़ हैक्टेयर वन भूमि के प्रबंधन में सरकार के अलावा सामुदायिक जिम्मेदारियों को भी जगह दी जाएगी। रमेश ने कहा कि देश का 60 फीसदी वन क्षेत्र 180 जिलों में स्थित है और करीब 25 करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं।
Saturday, January 1, 2011
कृष्णा विवाद : कोई खुश तो कोई नाराज
कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण ने गुरुवार को इस नदी के अधिकतम जल का हिस्सा आंध्र प्रदेश को आवंटित किया, जिसपर इस फैसले से प्रभावित होने वाले राज्यों ने मिश्रित प्रतिक्रिया जाहिर की है। न्यायाधिकरण ने नदी का 1001 टीएमसी फुट जल आंध्रप्रदेश को, 911 कर्नाटक को और 666 महाराष्ट्र को आवंटित किया। वर्ष 2004 में गठित किए गए इस न्यायाधिरकण ने 43 साल पुराने इस विवाद का हल करने की कोशिश करते हुए जल की निर्भरता पर इन तीनों राज्यों के लिए कुछ शर्ते भी लगाई हैं। गौरतलब है कि अब तक आंध्रप्रदेश को 811 टीएमसी फुट, कर्नाटक को 734 टीएमसी फुट और महाराष्ट्र को 585 टीएमसी फुट जल मिलता था। गुरुवार के फैसले से प्रभावित होने वाले तीनों ही राज्यों इस फैसले में कुछ सकारात्मक पहलू पाए हैं। साथ ही, उन्होंने इस फैसले के कुछ हिस्से को लेकर नाराजगी भी जाहिर की है। कर्नाटक ने अलमाटी बांध के मुद्दे पर इस फैसले को अपने रूख की पुष्टि करने वाला बताते हुए इसे एक ऐतिहासिक दिन बताया, जबकि महाराष्ट्र ने कहा है कि वह 100 टीएएमसी फुट अधिक जल प्राप्त कर खुश है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि इस फैसले के जरिए कर्नाटक में अलमाटी बांध की ऊंचाई को बढ़ाने की इजाजत दिया जाना चिंता का विषय है। हालांकि इस फैसले से राज्य के लिए कुछ सकरात्मक पहलू भी जुड़ा हुआ है। महाराष्ट्र ने इस बांध की ऊंचाई बढ़ाने का इस आधार पर विरोध किया था कि इससे कृष्णा के किनारे स्थित सांगली, सतारा और कोल्हापुर जैसे शहरों में बाढ़ आ सकती है। उधर, आंध्र प्रदेश सरकार ने भी मिश्रित प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि यह फैसला आंशिक रूप से फायदेमंद और आंशिक रूप से नुकसानदेह है। वहीं राज्य के विपक्ष ने इस मुद्दे पर राज्य के हितों के बचाव करने में राज्य सरकार पर नाकामी का आरोप लगाते हुए उसकी आलोचना की। न्यायमूर्ति बृजेश कुमार की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने कर्नाटक के अलमाटी बांध में और अधिक जल संग्रह को भी अनुमति दे दी। जल के बंटवारे के लिए केंद्र सरकार तीन महीने बाद कृष्णा वाटर इंप्लीमेंटेशन बोर्ड का गठन करेगी। इस आदेश के साथ ही बांध के 524 मीटर ऊंचाई का उपयोग कृष्णा नदी के जल का संग्रह करने में किया जाएगा। इससे पहले बांध की ऊंचाई 519 मीटर थी। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, जल बंटवारे को लेकर जो भी राज्य समीक्षा या मांग आवेदन दायर करना चाहता है वह तीन महीने के अंदर ऐसा कर सकता है।
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