देश में वनों की घटती संख्या और वृक्षों के अंधाधुंध कटान के बीच यह सुखद समाचार है कि हिमाचल प्रदेश में वन संपदा बढ़ रही है। राज्य के पास 11 साल पहले 1,06,666 करोड़ की वन संपदा थी, जिसके अब और बढ़ने के आसार हैं। हिमाचल प्रदेश के वन विभाग ने अपनी वन संपदा का आकलन करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट भोपाल को जिम्मा सौंपा है। टीम जुलाई में प्रदेश का दौरा करेगी। इससे पहले मई 2000 में फॉरेस्ट वेल्थ यानी वन संपदा का आकलन किया गया था।
लाहुल-स्पीति में सबसे अधिक वन क्षेत्र : हिमाचल प्रदेश में ताजा आंकड़ों के अनुसार राज्य का वन क्षेत्र 37033 वर्ग किलोमीटर है। वनों से ढका क्षेत्र 14668 वर्ग किलोमीटर है और घना वन क्षेत्र 3224 वर्ग किलोमीटर है। सबसे अधिक वन क्षेत्र लाहुल-स्पीति व सबसे कम वन क्षेत्र हमीरपुर का है। हिमाचल प्रदेश वन विभाग के चीफ कंजर्वेटर फॉरेस्ट (सीसीएफ) वर्किग प्लान तेजेंद्र सिंह का कहना है कि प्रदेश में वन संपदा का आकलन करने के लिए आइआइएफएम को प्रोजेक्ट दिया गया है। प्रारंभिक काम शुरू हो गया है। इस समय टीम सिक्किम के दौरे पर है। उसके बाद जुलाई में भोपाल संस्थान से टीम के हिमाचल आने की संभावना है। वन संपदा का आकलन करने के लिए विभिन्न मानक होते हैं। इनमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मानक शामिल हैं। वनों से हासिल होने वाली कुछ संपदा प्रत्यक्ष दिखाई देती है। इसमें लकड़ी, चारा, घास, पत्तियां आदि शामिल हैं। अप्रत्यक्ष पूंजी में भू-संरक्षण, मृदा संरक्षण, ऑक्सीजन के अलावा वनों पर आधारित पर्यटन आते हैं। हाल ही में इसमें नया कंसेप्ट कार्बन क्रेडिट का भी जुड़ा है। वन संपदा का आकलन करते समय पेड़ों के कारण मिट्टी की उर्वरक क्षमता, पानी, जैव विविधता व टिंबर का मूल्य भी देखा जाता है।
सियोग कैचमैंट एरिया का पानी सबसे शुद्ध : वन विभाग द्वारा कुछ अरसा पहले कराए गए अध्ययन में शिमला स्थित सियोग कैचमैंट एरिया के प्राकृतिक जलस्रोतों से मिलने वाला पानी शुद्धता के लिहाज से बहुत बेहतर क्वालिटी का पाया गया था। इसका कारण यहां मृदा क्षरण न होना और बहुतायत में पेड़ पाया जाना था। इसके अलावा प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के कारण भी यहां का पानी सेहत के लिए लाभदायक मिनरल वाला बताया गया था।
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