पानी की समस्या हमारे देश के लिए ही नहीं, समूचे विश्व के लिए दिनोंदिन गंभीर हो रही है। जीवन के लिए जरूरी जल का संकट ही आने वाले समय की सबसे बड़ी चुनौती है, जिस पर गौर करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। आने वाले दिनों की संभावित स्थिति पर गौर करें तो इसका मुकाबला कर पाने की सामर्थ्य जुटा पाना बेहद मुश्किल जरूर होगा। ऐसे में तमाम संभावित जल-प्रबंधन के उपायों पर ध्यान दिया जाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
जल विशेषज्ञों की राय में कि वर्षा जल संरक्षण को बढ़ावा देकर गिरते भू-जल स्तर को रोका जा सकता है। यही टिकाऊ विकास का आधार भी हो सकता है। भू-जल पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है और पृथ्वी पर होने वाली जलापूर्ति अधिकतर भू-जल पर ही निर्भर है, लेकिन आज इसका जिस कदर दहन हो रहा है उसने पूरी स्थिति को बेहद चुनौतीपूर्ण बना दिया है। हमारे सामने भू-जल के लगातार गिरते स्तर के साथ-साथ वातावरण के असंतुलन की भी गंभीर स्थिति है।
जलवायु परिवर्तन के इस दौर में कब कहां तापमान अचानक बढ़ जाए, कब कहां बे-मौसम पानी बरस जाए और कब कहां अचानक लोग ठहरने लगे, इस बारें में सारे मौसमी अनुमान जब चाहे झूठे पड़ने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, अवध व ब्रजक्षेत्र के आगरा कानपुर और यहों तक कि दिल्ली और पंजाब तक के बदलते मौसम इसकी गवाही देते हैं।
यह तो संकेत मात्र है कि भविष्य में हालात कितना विकराल रूप धारण कर सकते हैं। भूगर्भ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं भू-जल के अत्याधिक दोहन की वजह से सामने आ रही हैं। वे कहते हैं कि जब-जब पानी का अत्याधिक दोहन होता है, तब जमीन के अंदर के पानी का उत्प्लावन बल कम होने या खत्म होने पर जमीन धंस जाती है और उसमें दरारें पड़ जाती हैं। इस स्थिति से उबरना तभी संभव है, जब ग्रामीण और शहरी दोनों जगह पानी का दोहन व्यापक ढंग से नियंत्रित किया जाए। जल का समुचित संरक्षण और भंडारण हो, ताकि वह जमीन के भीतर उत्पन्न पानी की कमी को भी दूर कर सके।
योजना आयोग के अनुसार भू-जल का 8 फीसदी उपयोग तो हमारे कृषि क्षेत्र द्वारा किया जाता है। आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश है कि ऐसे उपाय अपनाए जाएं कि किसान भू-जल का उचित उपयोग करें। विश्व बैंक की मानें तो भूजल का सर्वाधिक 92 फीसदी और सतही जल का 89 फीसदी उपयोग कृषि में होता है। 5 फीसदी भूजल व 2 फीसदी सतही जल उद्योग में, 3 फीसदी भूजल व 9 फीसदी सतही जल घरेलू उपयोग में लाया जाता है।
आजादी के समय देश में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता पांच हजार क्यूबिक मीटर थी, जबकि उस समय आबादी चार सौ मिलियन थी। यह उपलब्धता कम होकर नए आंकड़े के मुताबिक दो हजार क्यूबिक मीटर रह गई और आबादी एक अरब पार कर गयी। अनुमान है 2025 तक यह घटकर 15 क्यूबिक मीटर रह जाएगी, जबकि आबादी 1.39 अरब हो जाएगी।
योजना आयोग के मुताबिक देश का 29 फीसदी इलाका पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। भले ही जल संकट की ज्यादा जिम्मेदारी कृषि क्षेत्र पर डाली जाए, लेकिन हकीकत है कि जल संकट गहराने में उद्योगों की भी अहम भूमिका है। अधिकाधिक पानी का दोहन फैक्ट्रियां भी कर रही हैं। विश्व बैंक के मुताबिक कई बार फैक्ट्रियां एक ही बार में उतना पानी जमीन से खींच लेती हैं, जितना एक गांव पूरे महीने में भी नहीं खींचता।
सवाल यह है कि जिस देश में भू-जल व सतही विभिन्न साधनों के माध्यम से पानी की उपलब्धता 23 अरब घनमीटर हो और जहां नदियों का जाल बिछा हो और सालाना औसत वर्षा सौ सेंटी मीटर से भी अधिक है, वहां पानी का अकाल क्यों? असल में वर्षा जल में 47 फीसदी नदियों में चला जाता है, जो भंडारण-संरक्षण के अभाव में समुद्र में जाकर बेकार हो रहा है। इसे बचाने के तात्कालिक और कारगर उपायों की फौरी जरूरत है।
यह तभी संभव है, जब जोहड़ों, तालाबों के निर्माण की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। पुराने तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए। खेतों में सिंचाई हेतु पक्की नालियों का निर्माण हो या पीवीसी पाइप उपयोग में लो जाएं। बहाव क्षेत्र में बांध बनाकर पानी को इकट्ठा किया जाए, ताकि वह समुद्र में जा कर बेकार न हो।
बोरिंग-टय़ूबवैल पर नियंत्रण रखा जाए ताकि पानी बर्बाद न हो। जरूरी यह कि पानी की उपलब्धता के गणित को शासन व समाज समङो। यह आमजन की जागरूकता-सहभागिता से ही संभव है। भू-जल संरक्षण के लिए देशव्यापी अभियान चलाए जाने की जरूरत है, ताकि भूजल का समुचित संरक्षण हो सके।
यह भी सच है कि इस चुनौती का सामना हर आम और खास आदमी के सहयोग से ही संभव होगा। जल-संरक्षण के लिए समाज के हर तबके को आगे आना होगा। देश में कम बारिश होना जितनी बड़ी समस्या है उससे कहीं बड़ी समस्या है ज्यादा बारिश होना। इसके बावजूद पानी के प्रबंधन के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए। यही कारण है कि किसान आज भी मानसून के भरोसे हैं।
जरा पानी कम बरसा तो हाहाकार मच जाता है, और ज्यादा बरसे तो भी। यह जल कुप्रबंधन का ही नतीजा है कि हर दो तीन वर्षों में मानसून सरकार के छक्के छुड़ा देता है। लेकिन किसी सरकार ने इससे सबक लेने की जरूरत नहीं समझे।
देश में करीब साढ़े पांच लाख किसान ऐसे हैं, जो मानसून पर निर्भर हैं। इस साल के मानसून सीजन में बहुत कम बारिश हुई, नतीजतन देश के करीब 604 जिले सूखे से प्रभावित रहे और इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
जल विशेषज्ञों की राय में कि वर्षा जल संरक्षण को बढ़ावा देकर गिरते भू-जल स्तर को रोका जा सकता है। यही टिकाऊ विकास का आधार भी हो सकता है। भू-जल पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है और पृथ्वी पर होने वाली जलापूर्ति अधिकतर भू-जल पर ही निर्भर है, लेकिन आज इसका जिस कदर दहन हो रहा है उसने पूरी स्थिति को बेहद चुनौतीपूर्ण बना दिया है। हमारे सामने भू-जल के लगातार गिरते स्तर के साथ-साथ वातावरण के असंतुलन की भी गंभीर स्थिति है।
जलवायु परिवर्तन के इस दौर में कब कहां तापमान अचानक बढ़ जाए, कब कहां बे-मौसम पानी बरस जाए और कब कहां अचानक लोग ठहरने लगे, इस बारें में सारे मौसमी अनुमान जब चाहे झूठे पड़ने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, अवध व ब्रजक्षेत्र के आगरा कानपुर और यहों तक कि दिल्ली और पंजाब तक के बदलते मौसम इसकी गवाही देते हैं।
यह तो संकेत मात्र है कि भविष्य में हालात कितना विकराल रूप धारण कर सकते हैं। भूगर्भ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं भू-जल के अत्याधिक दोहन की वजह से सामने आ रही हैं। वे कहते हैं कि जब-जब पानी का अत्याधिक दोहन होता है, तब जमीन के अंदर के पानी का उत्प्लावन बल कम होने या खत्म होने पर जमीन धंस जाती है और उसमें दरारें पड़ जाती हैं। इस स्थिति से उबरना तभी संभव है, जब ग्रामीण और शहरी दोनों जगह पानी का दोहन व्यापक ढंग से नियंत्रित किया जाए। जल का समुचित संरक्षण और भंडारण हो, ताकि वह जमीन के भीतर उत्पन्न पानी की कमी को भी दूर कर सके।
योजना आयोग के अनुसार भू-जल का 8 फीसदी उपयोग तो हमारे कृषि क्षेत्र द्वारा किया जाता है। आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश है कि ऐसे उपाय अपनाए जाएं कि किसान भू-जल का उचित उपयोग करें। विश्व बैंक की मानें तो भूजल का सर्वाधिक 92 फीसदी और सतही जल का 89 फीसदी उपयोग कृषि में होता है। 5 फीसदी भूजल व 2 फीसदी सतही जल उद्योग में, 3 फीसदी भूजल व 9 फीसदी सतही जल घरेलू उपयोग में लाया जाता है।
आजादी के समय देश में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता पांच हजार क्यूबिक मीटर थी, जबकि उस समय आबादी चार सौ मिलियन थी। यह उपलब्धता कम होकर नए आंकड़े के मुताबिक दो हजार क्यूबिक मीटर रह गई और आबादी एक अरब पार कर गयी। अनुमान है 2025 तक यह घटकर 15 क्यूबिक मीटर रह जाएगी, जबकि आबादी 1.39 अरब हो जाएगी।
योजना आयोग के मुताबिक देश का 29 फीसदी इलाका पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। भले ही जल संकट की ज्यादा जिम्मेदारी कृषि क्षेत्र पर डाली जाए, लेकिन हकीकत है कि जल संकट गहराने में उद्योगों की भी अहम भूमिका है। अधिकाधिक पानी का दोहन फैक्ट्रियां भी कर रही हैं। विश्व बैंक के मुताबिक कई बार फैक्ट्रियां एक ही बार में उतना पानी जमीन से खींच लेती हैं, जितना एक गांव पूरे महीने में भी नहीं खींचता।
सवाल यह है कि जिस देश में भू-जल व सतही विभिन्न साधनों के माध्यम से पानी की उपलब्धता 23 अरब घनमीटर हो और जहां नदियों का जाल बिछा हो और सालाना औसत वर्षा सौ सेंटी मीटर से भी अधिक है, वहां पानी का अकाल क्यों? असल में वर्षा जल में 47 फीसदी नदियों में चला जाता है, जो भंडारण-संरक्षण के अभाव में समुद्र में जाकर बेकार हो रहा है। इसे बचाने के तात्कालिक और कारगर उपायों की फौरी जरूरत है।
यह तभी संभव है, जब जोहड़ों, तालाबों के निर्माण की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। पुराने तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए। खेतों में सिंचाई हेतु पक्की नालियों का निर्माण हो या पीवीसी पाइप उपयोग में लो जाएं। बहाव क्षेत्र में बांध बनाकर पानी को इकट्ठा किया जाए, ताकि वह समुद्र में जा कर बेकार न हो।
बोरिंग-टय़ूबवैल पर नियंत्रण रखा जाए ताकि पानी बर्बाद न हो। जरूरी यह कि पानी की उपलब्धता के गणित को शासन व समाज समङो। यह आमजन की जागरूकता-सहभागिता से ही संभव है। भू-जल संरक्षण के लिए देशव्यापी अभियान चलाए जाने की जरूरत है, ताकि भूजल का समुचित संरक्षण हो सके।
यह भी सच है कि इस चुनौती का सामना हर आम और खास आदमी के सहयोग से ही संभव होगा। जल-संरक्षण के लिए समाज के हर तबके को आगे आना होगा। देश में कम बारिश होना जितनी बड़ी समस्या है उससे कहीं बड़ी समस्या है ज्यादा बारिश होना। इसके बावजूद पानी के प्रबंधन के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए। यही कारण है कि किसान आज भी मानसून के भरोसे हैं।
जरा पानी कम बरसा तो हाहाकार मच जाता है, और ज्यादा बरसे तो भी। यह जल कुप्रबंधन का ही नतीजा है कि हर दो तीन वर्षों में मानसून सरकार के छक्के छुड़ा देता है। लेकिन किसी सरकार ने इससे सबक लेने की जरूरत नहीं समझे।
देश में करीब साढ़े पांच लाख किसान ऐसे हैं, जो मानसून पर निर्भर हैं। इस साल के मानसून सीजन में बहुत कम बारिश हुई, नतीजतन देश के करीब 604 जिले सूखे से प्रभावित रहे और इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
जरूरत प्रबंधन की
पानी के कुप्रबंधन की समस्या से अगर भारत जल्द न निपटा तो भविष्य में स्थितियां और भयावह होती जाएंगी। पानी के प्रबंधन में भारत की जनसंख्या और गरीबी बड़ी चुनौतियां हैं। पानी को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के बीच विवाद इस समस्या को और गहरा सकती है। सरकार को निश्चित ही इस दिशा में गंभीरता पूर्वक कदम उठाने होंगे।
धरती पर कितना पानी ?
व एक जानकारी के अनुसार धरती पर 2,94,000,000 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है, पृथ्वी पर पानी अधिकतर तरल अवस्था में उपलब्ध होता है, क्योंकि हमारी धरती (सौर व्यवस्था) सोलर सिस्टम की सीध में स्थित है, अत: यहाँ तापमान न तो इतना अधिक होता है कि पानी उबलने लगे न ही तापमान इतना कम होता है कि वह बर्फ में बदल जाए। जब पानी जमता है तब वह विस्तारित होता है यानी फैलता है, जबकि ठोस बर्फ तरल पानी में तैरती है। जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्र में पाया जाता है।
पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत धरातल पानी से आच्छादित है परंतु अलवणीय जल कुल जल का केवल लगभग 3 प्रतिशत ही है। वास्तव में अलवणीय जल का एक बहुत छोटा भाग ही मानव उपयोग के लायक है। अलवणीय जल की उपलब्धिता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है। इस दुर्लभ संसाधन के आवंटन और नियंत्रण पर तनाव और लड़ाई झगड़े, संप्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के बीच विवाद का विषय बनते रहते हैं।
जल की माँग और उपयोग
भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था की जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई भाग खेती पर निर्भर है। वास्तव में, देश की वर्तमान जल की माँग, सिंचाई की आवश्यकताओं के लिए ही अधिक है। इसमें धरातलीय जल का 89 प्रतिशत और भौम जल का 92 प्रतिशत जल उपयोग किया जाता है। कुल जल उपयोग में कृषि सेक्टर का भाग दूसरे सेक्टरों से अधिक है। फिर भी, भविष्य में विकास के साथ-साथ देश में औद्योगिक और घरेलू सेक्टरों में जल का उपयोग बढ़ने की संभावना है।
भारत का जल संसाधन
भारत में विश्व के धरातलीय क्षेत्र का लगभग 2.45 प्रतिशत, जल संसाधनों का 4 प्रतिशत, जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत भाग पाया जाता है। देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जल की मात्र लगभग 4,000 घन कि.मी. है। धरातलीय जल और पुन: पूर्तियोग भौम जल से 1,869 घन किमी जल उपलब्ध है। इसमें से केवल 60 प्रतिशत जल का लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1,122 घन कि.मी. है।
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