Monday, December 20, 2010

भूकंप का भी खतरा बरकरार

महाराष्ट्र के रत्नागिरी जनपद में खरबों रुपयों की लागत से लगने जा रहे दुनिया के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के लिए भारत सरकार अपने ही बनाए मानकों व पर्यावरण निरीक्षण समितियों की सिफारिशों की अनदेखी कर रही है। ये समितियां एवं पर्यावरणविद् जैतापुर परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के क्षेत्र को गहरी भूकंपीय संभावनावाला क्षेत्र मान रहे हैं। महाराष्ट्र का सबसे अधिक भूकंपीय क्षेत्र कोयना प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा प्रकल्प से मात्र 60 किमी की आकाशीय दूरी पर है इसलिए कोकण का रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग जनपद भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेदनशील माने जाते हैं। इन क्षेत्रों में 1985 से 1995 के बीच भूकंप के 95 झटके लगे हैं। इसमें रिक्टर स्केल पर 6.3 की तीव्रता का धक्का भी शामिल है जबकि पिछले दो वर्षो में ही कोयना क्षेत्र में 17 बार झटके महसूस किए गए हैं, जिनमें से पांच झटकों की तीव्रता रिक्टर स्केल पर चार से अधिक रही है। 1992-93 में महाराष्ट्र के किल्लारी व लातूर में आए भूकंप के बाद इसके कारणों की जांच के लिए बनी समिति के मुखिया रहे डॉ. एमके प्रभु का मानना है कि कोकण का उक्त क्षेत्र भूकंप की गहरी फाल्ट लाइन में आता है। इस क्षेत्र में भूस्खलन एवं पहाड़ धसकने की घटनाओं के कारण अब तक जान व माल का काफी नुकसान भी हो चुका है। इसमें कोकण रेलवे का भी नुकसान शामिल है। इसलिए डॉ. प्रभु का कहना है कि इस क्षेत्र में कोई भी बड़ा औद्योगिक कदम उठाने से पहले भलीभांति विचार किया जाना चाहिए। कोकण क्षेत्र के पर्यावरण पर गहरी निगाह रखने वाले पर्यावरणविद् एडवोकेट गिरीश राऊत बताते हैं कि इस क्षेत्र में कई बार जमीनों में बड़ी और चौड़ी दरारें पड़ती देखी गई हैं। जिनकी गहराई पांच फुट से 25 फुट तक एवं लंबाई कई सौ मीटर तक नापी गई है। भूकंप के लिए मानक संस्था ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स ने महाराष्ट्र के रत्नागिरी, कोल्हापुर, सातारा, पुणे और रायगढ़ जिलों को भूकंपीय संभावना के जोन-4 में रखा है, जो भूकंपीय मानकों में काफी खतरनाक स्थिति मानी जाती है पर उक्त प्रकल्प की योजना बनाते वक्त सरकार ने अपनी मानक संस्थाओं द्वारा दिए गए इन तथ्यों की अनदेखी की है। राऊत बताते हैं कि कोकण से लेकर गुजरात के बड़ौदा तक सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में गरम पानी के कई स्त्रोते पाए जाते हैं जोकि भूकंपीय गतिविधियों का ही पूर्व संकेत माने जाते हैं। इस प्रकल्प के कारण एक बड़ा ख़तरा सागर की पटाई को लेकर भी देखा जा रहा है।

No comments:

Post a Comment