टोकियो, एजेंसी : ग्लोबल वार्मिग के कारण धरती पर पड़ रहे दुष्प्रभावों से पूरी दुनिया चिंतित है। यह खबर अब इस चिंता को और भी बढ़ा सकती है। जापान के मौसम वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि इस साल पूरी दुनिया में जमीन और समुद्री सतह का वैश्विक तापमान वर्ष 1971 से 2000 के बीच के औसत तापमान से 0.36 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इस बढ़ोतरी के लिए ग्लोबल वार्मिग जिम्मदार है। इसी के साथ ही 1891 से उपलब्ध आंकड़ों की तुलना के हिसाब से यह अब तक की दूसरी सबसे बड़ी बढ़त है। यानी करीब 119 साल में दूसरी बार तापमान में इतनी वृद्धि हुई है। तापमान बढ़ने का मौजूद रिकॉर्ड 1998 में बना था। तब 0.37 डिग्री से. की वृद्धि दर्ज की गई थी। जापान की मौसम संबंधी एजेंसी ने यहां जारी अपनी प्राथमिक रिपोर्ट में कहा कि जमीन का वैश्विक तापमान 0.68 डिग्री से. बढ़ा है जो एक नई ऊंचाई है। जापान का औसत तापमान पिछले 30 सालों के औसत से 0.85 डिग्री से. बढ़ा है। वर्ष 1898 के बाद से यह चौथी सबसे बड़ी वृद्धि है। क्योडो न्यूज एजेंसी की खबर के अनुसार, मौसम विज्ञान ने इस साल जनवरी से लेकर नवंबर तक के आंकड़ों के आधार पर यह जानकारियां दी हैं। जापान मौसम विज्ञानियों ने औसत तापमान में इतनी उल्लेखनीय बढ़त का जिम्मेदार ग्लोबल वार्मिग को बताया है जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण लगातार बढ़ रही है। साथ ही समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि एल निनो प्रभाव के कारण हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौसम की ऐसी परिस्थितियां उत्तरी गोलार्ध में मध्य अक्षांश वाले क्षेत्रों में गर्म हवाएं चलने के कारण बनती हैं। कहा गया है कि पिछले 100 सालों में वैश्विक तापमान 0.68 डिग्री से. तक चढ़ चुका है जबकि जापान का तापमान पिछली शताब्दी के दौरान 1.15 डिग्री से. तक बढ़ा है। रिपोर्ट में कहा है कि 2010 में ग्रीनलैंड के कुछ हिस्सों और कनाडा के तापमान में 4 से 5 डिग्री से. तक वृद्धि दर्ज की गई है। इस साल जून से अगस्त तक की गर्मियों में जापान का औसत तापमान अब तक का सबसे ज्यादा रिकार्ड किया गया। मगर मार्च से मई के बीच का निम्न तापमान साल के औसत तापमान को नीचे ले आया। मौसम विभाग ने दुनियाभर के 1300 स्थलों से आंकड़ें जुटाकर जमीन के औसत वैश्रि्वक तापमान का आकलन किया है। वहीं जापान के तापमान का आकलन करने के लिए दक्षिण में ओकिनावा से लेकर उत्तर में होक्केदो तक 17 स्थलों के आंकड़े जुटाए गए हैं। इस बीच एजेंसी की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2010 में टाइफूनों में विकसित हुए तीव्र दबावों की संख्या 14 पर ही बने रहने की उम्मीद जताई गई है। 1951 से उपलब्ध आंकड़ों की तुलना करने पर पता चला कि उस साल के बाद यह सबसे छोटी संख्या (14) है। इससे पहले सबसे कम संख्या 1998 (16) में दर्ज की गई थी। वर्ष 1971 से 2000 के बीच की औसत संख्या 26.7 रही थी।
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