नई दिल्ली बस दस साल और इंतजार कीजिए 2020 के बाद पतित पावनी गंगा मैली नहीं रहेगी। गंगा को स्वच्छ निर्मल बनाने की केंद्र सरकार की मिशन क्लीन गंगा में जो नई समय सीमा तय की गई है वह यही है। केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में दिये गये हलफनामे में कहा है कि मिशन क्लीन गंगा के तहत सुनिश्चित किया जाएगा कि 2020 के बाद गैर शोधित सीवर व औद्योगिक कचरा गंगा में न बहाया जाए। यह फैसला राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बैठक में लिया गया है। सरकार ने ये बात सुप्रीमकोर्ट के सवालों के जवाब में कही है। सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के मामले में कुछ बिंदुओं पर जवाब मांगा था। कोर्ट ने सवाल किया था कि 25 साल बीत गये बहुत सी कमेटियां और प्राधिकरण बने लेकिन कोई भी गंगा की प्रदूषण समस्या से प्रभावी ढंग से नहीं निपट सका। बेहतर होगा कि एक केंद्रीय उच्च अधिकार समिति बने जिसमें संबंधित राज्यों के भी प्रतिनिधि हो। गंगा सफाई परियोजना की जमीनी स्तर पर सफलता सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तर पर भी समितियां गठित की जाएं। इन समितियों में नौकरशाह, टेक्नोक्रेट जनप्रतिनिधि और अगर जरूरत लगे तो गैर सरकारी संगठनों को भी शामिल किया जाए। सोमवार को अतिरिक्त सालिसीटर जनरल मोहन जैन ने केन्द्र सरकार का हलफनामा कोर्ट में पेश किया। जिसे सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने रिकार्ड पर लिया। हलफनामे में सरकार ने कहा है कि गंगा की सफाई अभियान को केंद्र और राज्यों के सामूहिक प्रयत्न से सफल बनाने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण गठित किया गया है। इसमें संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री भी सदस्य हैं और दस विशेषज्ञों को भी सदस्य के तौर पर शामिल किया जा सकता है। प्राधिकरण गंगा की सफाई योजना, उसके खर्च, निगरानी और संयोजन का काम देखेगा। इसकी एक स्टैडिंग कमेटी भी है जो काम की प्रगति देखने के साथ योजना को अमली जामा पहनाने के लिए जरूरी निर्देश देती है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गंगा प्राधिकरण की गत वर्ष पांच अक्टूबर और अभी गत एक नवंबर को बैठक हुई थी जिसमें 2020 तक गंगा में गंदगी न बहाया जाना सुनिश्चित करने का निर्णय लिया गया है।
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