Wednesday, May 11, 2011

बजट नहीं इच्छाशक्ति चाहिए


गंगा और यमुना सदियों से हमारी आस्था का केंद्र रही हैं, पर आज इनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। पिछले 56 वर्षो में गंगा का पानी बीस फीसदी घटा है। यही हाल रहा तो अगले 50 सालों में गंगा नदी सूख जाएगी। यह निष्कर्ष विशेषज्ञों के एक दल ने निकाला है। हालांकि पिछले दिनों प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट की एक समिति ने गंगा के पुनर्उद्धार के लिए सात हजार करोड़ रुपये की धनराशि मंजूर की, लेकिन असल सवाल अब भी बरकरार है कि क्या यह राशि वास्तव में गंगा की रंगत वापस ला पाएगी? दरअसल मोक्षदायिनी गंगा की 27 धाराओं में से अब तक 11 धाराएं विलुप्त हो चुकी हैं और 11 धाराओं में जलस्तर में तेजी से कमी आ रही है। पर्यावरण की दृष्टि से यह स्थिति भयावह है। इसका कारण गंगोत्री ग्लेशियर का तेजी से पिघलना बताया गया है। गंगा के यदि हम धार्मिक महत्व को छोड़ दें तो भी गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक इसके किनारे बसी हुई तीस करोड़ से अधिक आबादी और तमाम जीव-जंतुओं, वनस्पतियों के जीवन का मूल आधार गंगा ही हैं। गंगा के बिना गंगा की घाटी में जीवन संभव नहीं है। इसलिए इसकी रक्षा, इसे निर्मल बनाए रखने की चिंता और प्रयास जो नहीं करता है, वह अपने साथ ही आत्मघात कर रहा है। वेदों से लेकर वेदव्यास तक, वाल्मीकि से लेकर आधुनिक कवियों और साहित्यकारों ने इसका गुणगान किया है। इसका भौगोलिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साथ-साथ अध्यात्मिक महत्व है। भगीरथ की जिस गंगा में कभी निर्मल जल की धारा बहती थी, आज वहां सड़ांध और दुर्गध के भभके उठते रहते हैं। कानपुर में तो इस नदी ने एक तरह से नाले का रूप ले लिया है और वह अपने स्थान से भी खिसक रही है। अपनी नदियों को प्रदूषण से बचाना हमारा कर्तव्य है, लेकिन गंगा और यमुना जैसी पावन नदियों को भी प्रदूषण से मुक्त कराने की चिंता अब शायद किसी को नहीं है। इसीलिए इसके लिए अदालतों को बार-बार पहल करनी पड़ती है। हालांकि सरकार गंगा सफाई अभियान और इसके लिए बजट की घोषणा करती है, लेकिन जब तक योजनाओं और घोषणाओं को पूरी इच्छाशक्ति से लागू नहीं किया जाएगा और लोगों को जागरूक नहीं किया जाएगा, तब तक हम गंगा-यमुना जैसी अपनी जीवनदायी नदियों को नहीं बचा सकते हैं। गंगा कोई साधारण नदी नही है। यह इस धरती पर सतत प्रवाहमयी चैतन्य की धारा है। गंगा की उत्पत्ति के अनुसार, इसके कई नाम हैं। यह विष्णु के चरण से निकली हैं, इसलिए विष्णुपदी, भगीरथ की तपस्या से उतरी हैं, इसलिए भागीरथी। पृथ्वी पर उतरी हैं, इसलिए गंगा कहलाती हैं। वह इस पृथ्वी पर पत्नी तथा माता के रूप में प्रसिद्ध हैं। वह शांतनु की पत्नी और भीष्म की माता भी हैं। पुराणों में गंगा को लोकमाता कहा गया है। भारतीयों के हृदय में गंगा के प्रति इतनी श्रद्धा है कि वे सभी नदियों में गंगा का ही दर्शन करते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी यह सिद्ध हो गया है कि दुनिया की नदियों में गंगा ही सबसे पवित्रतम नदी है। इसके जल में कीटाणुओं के उन्मूलन की क्षमता सबसे अधिक है। शरीर के विभिन्न अंगों के रोग इसके पवित्र जल से दूर हो जाते हैं। अनुसंधानों से यह भी पता चला है कि गंगा के जल में हैजे के कीटाणु तीन चार-घंटे में स्वत: मर जाते हैं। वैश्वीकरण की नीतियों को लागू किए जाने के बाद से भारत दुनिया के विकसित देशों का कूड़ाघर बनता जा रहा है। एक तरफ बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना कचरा यहां की नदियों में बहा रही हैं तो दूसरी तरफ भारत में विकसित देशों ने अपने औद्योगिक अपशिष्ट को बेचने की जो प्रक्ति्रया पिछले कई वर्षो से अपना रखी थी, उस पर भारत के उच्चतम न्यायालय ने जनहित में फैसला देते हुए 1997 में पूरी तरह रोक लगा दी थी, लेकिन इसके बावजूद पता नहीं किन अज्ञात संधियों और कूटनयिक समझौतों के तहत यह अत्यंत विषैला कचरा लगातार अलग-अलग माध्मयों से भारत में निरंतर आता रहा है। उच्चतम न्यायालय की रोक के बावजूद यह सिलसिला जारी है। भारी मात्रा में शीशे के अलावा परमाणु रिएक्टरों तथा परमाणु बमों में नियंत्रक तत्व के रूप में प्रयोग की जाने वाली कैडमियम धातु भी गंगाजल में बड़ी मात्रा में पाई जा रही है, लेकिन इसकी सफाई के लिए चलाई जा रही योजनाओं का अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है। इस चुनौती का मुकाबला किए बिना हमारा उद्धार गंगा नहीं कर सकती है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


No comments:

Post a Comment