Sunday, May 1, 2011

मोक्षदायिनी को जीवनदान की योजना


पतितपावनी गंगा नदी गंदगी ढोते-ढोते मैली हो चुकी है। उत्तराखंड सरकार ने सिसक रही मोक्षदायिनी के आंसू पोछने का जिम्मा उठाया है। सरकार की मंशा है कि गंगा राज्य की सीमा से पूरी तरह प्रदूषणमुक्त और निर्मल बहे। कोशिश कामयाब रही तो गंगा और उसकी सहायक नदियों में हर दिन 400 मिलियन लीटर गंदगी को घुलने से रोका जाएगा। इसके लिए 225 किमी नदी तटों और उससे सटे 17 नगरीय क्षेत्रों को प्रदूषण शून्य किया जाएगा। हालांकि, इसके लिए राज्य को 2644 करोड़ धनराशि की दरकार होगी। राज्य सरकार ने इसके लिए स्पर्श गंगा के जरिए जनजागरण की मुहिम छेड़ दी है। राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण को इस बाबत राज्य विस्तृत प्रोजेक्ट भेज चुका है। इसमें 2020 तक गंगा को प्रदूषण शून्य करने का लक्ष्य है। प्रोजेक्ट में गंगा को पूरी तरह सीवर की गंदगी से मुक्त करने पर जोर है। इसके लिए सीवर लाइन बिछाने को 880 करोड़, सीवरेज शोधन संयंत्रों के लिए 810 करोड़, सालिड वेस्ट मैनेजमेंट को 280 करोड़, सामुदायिक शौचालयों के लिए 41 करोड़, घाटों के विकास को 255 करोड़, कैचमेंट एरिया सुरक्षा और वनीकरण-सौंदर्यीकरण को क्रमश: 300 करोड़ और 64 करोड़ का प्रस्ताव प्राधिकरण को भेजा गया है। पहले फेज में राज्य ने 404 करोड़ मांगे हैं। राज्य की चिंता सीवर की गंदगी गंगा और सहायक नदियों में जाने से रोकने के साथ ही हर साल तकरीबन तीन करोड़ श्रद्धालुओं, यात्रियों और पर्यटकों की आमद से होने वाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने की है। इसके लिए विशेष रूप से यात्रा मार्गो पर जन सुविधाओं के विकास, सुलभ शौचालयों और कूड़े के निस्तारण पर जोर है। प्राधिकरण के माध्यम से सूबे को सितंबर, 2010 तक करीब 17 करोड़ और अब हाल ही में टिहरी जिले में ऋषिकेश से सटे तपोवन क्षेत्र में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट को 23 करोड़ की राशि मंजूर की गई है। इसमें 70 फीसदी राशि केंद्र और 30 फीसदी राज्य मुहैया कराएगा। इसकी पहली किस्त जारी की गई है। पेयजल एवं नियोजन मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि राज्य के भीतर गंगा और सहायक नदियों को प्रदूषण शून्य करने पर सरकार का विशेष फोकस है। सरकार ने अपने स्तर पर प्रयास शुरू किए हैं। प्राधिकरण का अपेक्षित सहयोग मिलने पर अभियान को समय से पहले पूरा करने पर विशेष जोर रहेगा।


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