Wednesday, June 29, 2011

वन पर्यटन से जुड़े निजी व्यापार पर लगेगा सेस


देश के किसी भी राज्य में वनभूमि पर अब पर्यटन सुविधाओं के विकास के नाम पर किसी भी प्रकार का नया निर्माण कार्य न होगा। यही नहीं, संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले इलाकों में पर्यटन से जुड़ी निजी क्षेत्र की गतिविधियों पर सेस लगाने की तैयारी है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा संरक्षित क्षेत्रों में इको टूरिज्म के नए दिशा निर्देश तो यही कहती है। पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश की ओर से संरक्षित क्षेत्रों में इकोटूरिज्म से संबंधित गाइडलाइन सभी राज्यों को जारी की गई है। इसके अनुसार, राज्य सरकारें 31 दिसंबर तक अपने यहां इकोटूरिज्म रणनीति तैयार करेंगे। हर राज्य में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में स्टेयरिंग कमेटी बनेगी, जो हर तीन माह में इको टूरिज्म की समीक्षा करेगी। गाइडलाइन में साफ कहा गया है कि संरक्षित क्षेत्रों में पहले ही बड़ी संख्या गेस्ट हाउस आदि हैं। इसलिए टूरिस्ट सुविधाओं के लिए कोई नया निर्माण न होगा। संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से पांच किमी की परिधि में निजी क्षेत्र की जितनी भी पर्यटन संबंधी गतिविधियां चल रही हैं, उनसेकुल टर्न ओवर का पांच फीसदी हिस्सा लोकल कंजर्वेशन सेस के रूप में लिया जाएगा। संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटकों से होने वाली आय को सरकार के खजाने की बजाए सुरक्षा, संरक्षण, आजीविका विकास से संबंधित गतिविधियों में खर्च करने की बात भी कही गई। अभी तक केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में ही ऐसी व्यवस्था है। केंद्र के दिशा-निर्देशों में वन विभाग को काफी ताकत दी गई है। पर्यटन योजनाओं और वन्यजीव संरक्षण के बीच विवाद की स्थिति में वन विभाग का मत लागू किया जाएगा। संरक्षित क्षेत्रों में इकोटूरिज्म की योजनाएं बनाने की जिम्मेदारी चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को दी गई है, जो राज्य सरकार से अनुमोदन लेंगे। मंत्रालय ने राज्यों से इस गाइडलाइन पर 30 जून तक सुझाव भी मांगे हैं। इस सिलसिले में मंगलवार को वन सचिव समेत वन विभाग के अन्य आला अफसर इस पर मंथन करेंगे।


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