पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि उत्तराखंड की अलखनंदा और भागीरथी जल विद्युत परियोजनाओं के कारण गंगा नदी में जल प्रवाह घट रहा है। इस मामले में तत्काल ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार ने नदी की अविरल धारा बनाए रखने तथा 2020 तक नदी को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त बनाने के मकसद से मंगलवार को विश्व बैंक के साथ करीब एक अरब डॉलर (4600 करोड़ रुपये) का कर्ज हासिल करने के लिए समझौता किया है। इस धनराशि से उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल को गंगा नदी के संरक्षण के लिए धनराशि मुहैया कराई जाएगी। जयराम रमेश ने मंगलवार को नई दिल्ली में विश्व बैंक के निदेशक (भारत) रॉबर्टो जागा के साथ इस संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस मौके पर रमेश ने कहा, गंगा नदी के संबंध में आइआइटी रुड़की के एक अध्ययन रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी है, जिसके मुताबिक, अलखनंदा और भागीरथी पनबिजली परियोजनाओं के कारण गंगा नदी के जल प्रवाह पर असर पड़ रहा है। अध्ययन रिपोर्ट से साबित होता है कि भागीरथी और अलकनंदा नदी के भराव क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं। अगर इन दोनों नदियों में पानी नहीं होगा तो गंगा नदी में भी जल प्रवाह काफी कम हो जाएगा। गंगा में अविरल धारा बनाए रखने के लिए दोनों परियोजनाओं के तहत न्यूनतम जल प्रवाह निर्धारित करना होगा। हमने यह सिफारिश स्वीकार कर ली है और अब इस संबंध में कदम उठाए जाएंगे। रमेश ने विश्व बैंक के साथ हुए समझौते के विवरण देते हुए कहा, 2020 तक हमें गंगा को गंदे पानी और उद्योगों के प्रदूषण से मुक्त बनाना है। इसके लिए विश्व बैंक की मदद से पांच वर्ष की अवधि में राशि खर्च की जाएगी। राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण इस परियोजना का कार्यान्वयन करेगा। विश्व बैंक से मिलने वाले कर्ज की राशि को मिलाकर यह परियोजना कुल सात हजार करोड़ रुपए की है। उन्होंने कहा, उनके मंत्रालय ने गंगा नदी के तटीय क्षेत्रों में चल रही 60 इकाइयों को उनके द्वारा प्रदूषण फैलाने पर कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। इनमें से अधिकतर इकाइयां कन्नौज से वाराणसी के बीच के 500 किलोमीटर क्षेत्र में हैं। सरकार ने विश्व बैंक के साथ दो और समझौते किए हैं। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनयापन के सोत्रों को मजबूत करने के लिए 1.56 करोड़ डॉलर और जैव विविधता संरक्षण के लिए 81.4 लाख डॉलर का कर्ज मिलेगा।
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