यमुना नदी तीन दशकों में नाले में तब्दील हो चुकी है। प्रदूषण ने यम की बहन समझी जाने वाली यमुना नदी का गला घोंटकर रख दिया है। यमनोत्री से छोटी सी धारा के रूप में प्रकट हुई यमुना इलाहाबाद के संगम तक 1375 किलोमीटर का सफर तय करती है। दिल्ली आने से पहले स्वच्छ और निर्मल जल को अपने में समेटने वाली यह नदी दिल्ली के बाद प्रदूषित हो जाती है। यमुना को कभी राजधानी के जीवन रेखा के रूप में देखा जाता था। लेकिन यमुना के प्रदूषण में दिल्ली की भागीदारी 70 फीसदी है। यह हम नहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहता है। जिसके अनुसार दिल्ली में यमुना का 22 किलोमीटर भाग नदी का मात्र 2 फीसदी हिस्सा है। इस भाग में यह कुल प्रदूषण भार के 70 फीसदी हिस्से का योगदान करता है। अब यमुना सिर्फ और सिर्फ बारिश के मौसम में बहा करती है। शेष समय यह राजधानी के जहरीले रसायनों, गंदगी और प्रदूषित सामग्री की संवाहक बनकर रह गई है। यमुना में मुर्दो के अवशेष, कल कारखानों का जहरीला विष, अपशिष्ट, जलमल निकासी का गंदा पानी और हर साल लगभग तीन हजार प्रतिमाओं का विसर्जन इसमें किया जाता है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय का कहना है कि यमुना कार्य योजना सन् 1993 में आरंभ की गई थी। 2009 में इसकी सफाई का बजट 1356 करोड रुपये रखा था। हालात देखकर लगता है कि यह पैसा भी गंदे नाले में ही बह गया है। दो माह पहले इलाहाबाद के संगम से साधु संतों की यात्रा भी दिल्ली पहुंची। जिसमें लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इनकी मांग यमुना को राष्ट्रीय नदी घोषित करने, इसे प्रदूषण मुक्त रखने और यमुना बेसिन प्राधिकरण का गठन करने को लेकर थी। सरकार ने 2009 में कहा था कि यमुना एक्शन प्लान एक और दो के तहत 2800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। किंतु ठोस तकनीक न होने से वांछित परिणाम सामने नहीं आ सके। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इन्वायरमेंट साइंसेज में प्रो. एस. मुखर्जी कहते हैं कि यमुना एक बीमार नदी का रूप ले चुकी है। जिसका निदान सर्वेक्षण और सफाई अभियान से संभव है। जो कई स्तर पर किया जाना जरूरी है।
No comments:
Post a Comment