हिमाचल प्रदेश में बिजली परियोजनाओं के नाम पर निजी कंपनियां और सरकारी तंत्र प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। नियम कायदों को दरकिनार कर पहाड़ों का मलबा नदियों के किनारे फेंका जा रहा है, जिससे तटीय क्षेत्र डंपिंग ग्राउंड में तब्दील होते जा रहे हैं। राज्य के उच्च पर्वतीय क्षेत्र किन्नौर की काशांग विद्युत परियोजनाओं के काम में जुटी कंपनियां और सरकारी तंत्र इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड काशांग स्टेज-एक के 65 मेगावाट प्रोजेक्ट के लिए लीज ही नहीं हुई है, लेकिन कार्य धड़ल्ले से चल रहा है। काशांग स्टेज-दो में किरंग खड्ड के पानी को छह किलोमीटर की भूमिगत सुरंग से काशांग में मिलाने की योजना है। काशांग स्टेज-तीन में किरंग खड्ड व काशांग के पानी को मिलाकर 195 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जाएगा। स्टेज-एक, दो, तीन व चार को पर्यावरण मंजूरी मिली है, लेकिन स्टेज दो, तीन व चार को न तो वन मंत्रालय से अभी तक स्वीकृति मिली है और न ही ग्राम सभाओं से अनापत्ति प्रमाणपत्र मिला है। इसके बावजूद एचपीसीएल अपने सब कांट्रेक्टर पटेल व एचसीसी कंपनी के माध्यम से मापदंडों को दाव पर रख कर कार्य कर रहा है। काशांग परियोजना का मलबा सतलुज नदी के सीने में फेंका जा रहा है। फील्ड जोन से दस मीटर ऊपर मलबा स्टोर करने के सभी नियम ताक पर रखे जा रहे हैं। कच्ची प्रोटेक्शन दीवारों से इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। स्टेज दो व तीन का काम सुरंगों के माध्यम से शुरू कर दिया गया है जिसका ग्राम पंचायत रारंग, जंगी, लिप्पा व आसरांग के ग्रामीणों ने विरोध किया है। उन्होंने इस बारे में डीएम से लिखित शिकायत करने के साथ ही काम रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सात हजार फुट से ऊपर के क्षेत्रों में प्रोजेक्ट न बनाया जाए। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। साथ ही चेतावनी दी है कि काम न रोका गया तो आंदोलन किया जाएगा.
Wednesday, June 1, 2011
जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर पहाड़ से खिलवाड़
हिमाचल प्रदेश में बिजली परियोजनाओं के नाम पर निजी कंपनियां और सरकारी तंत्र प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। नियम कायदों को दरकिनार कर पहाड़ों का मलबा नदियों के किनारे फेंका जा रहा है, जिससे तटीय क्षेत्र डंपिंग ग्राउंड में तब्दील होते जा रहे हैं। राज्य के उच्च पर्वतीय क्षेत्र किन्नौर की काशांग विद्युत परियोजनाओं के काम में जुटी कंपनियां और सरकारी तंत्र इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड काशांग स्टेज-एक के 65 मेगावाट प्रोजेक्ट के लिए लीज ही नहीं हुई है, लेकिन कार्य धड़ल्ले से चल रहा है। काशांग स्टेज-दो में किरंग खड्ड के पानी को छह किलोमीटर की भूमिगत सुरंग से काशांग में मिलाने की योजना है। काशांग स्टेज-तीन में किरंग खड्ड व काशांग के पानी को मिलाकर 195 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जाएगा। स्टेज-एक, दो, तीन व चार को पर्यावरण मंजूरी मिली है, लेकिन स्टेज दो, तीन व चार को न तो वन मंत्रालय से अभी तक स्वीकृति मिली है और न ही ग्राम सभाओं से अनापत्ति प्रमाणपत्र मिला है। इसके बावजूद एचपीसीएल अपने सब कांट्रेक्टर पटेल व एचसीसी कंपनी के माध्यम से मापदंडों को दाव पर रख कर कार्य कर रहा है। काशांग परियोजना का मलबा सतलुज नदी के सीने में फेंका जा रहा है। फील्ड जोन से दस मीटर ऊपर मलबा स्टोर करने के सभी नियम ताक पर रखे जा रहे हैं। कच्ची प्रोटेक्शन दीवारों से इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। स्टेज दो व तीन का काम सुरंगों के माध्यम से शुरू कर दिया गया है जिसका ग्राम पंचायत रारंग, जंगी, लिप्पा व आसरांग के ग्रामीणों ने विरोध किया है। उन्होंने इस बारे में डीएम से लिखित शिकायत करने के साथ ही काम रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सात हजार फुट से ऊपर के क्षेत्रों में प्रोजेक्ट न बनाया जाए। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। साथ ही चेतावनी दी है कि काम न रोका गया तो आंदोलन किया जाएगा.
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