किसी दिन विश्व प्रसिद्ध वैली ऑफ फ्लावर से फूल गायब मिलें तो..। यकीन नहीं आता, लेकिन वैज्ञानिकों के 10 साल के शोध इसी ओर इशारा कर रहे हैं। पहले पहाड़ों से इंसान का ही पलायन हो रहा था, अब यह संक्रमण पेड़ पौधों में भी फैल गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि आदमी पहाड़ छोड़ मैदानों की ओर भाग रहा है और वनस्पतियां ऊंचाई की ओर। मसलन चीड़ के पेड़ अमूमन 3700 मीटर तक की ऊंचाई पर होते हैं, अब ये 700 मीटर का सफर कर साढ़े चार हजार मीटर तक जा पहुंचे हैं। वन पीपल और धूप घास भी इसी राह पर हैं। फूलों की घाटी का भी पलायन ऊंचाई की ओर जारी है। कुदरत के इस बदलाव से वैज्ञानिक चिंतित हैं। वनस्पति जगत में मची उथल-पुथल को अस्तित्व बचाने की जुगत के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल जो पेड़-पौधे कम तापमान पर फलने-फूलने के आदी हैं, वे अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट हो गए और उनका स्थान गर्म जलवायु के पेड़ पौधे लेने लगे। फूलों की घाटी में 10 साल से वनस्पतियों के विस्थापन पर नजर रख रहे हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ डॉ. एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि घाटी की वनस्पतियों के अनुक्रम में तेजी से परिवर्तन आया है। नई वनस्पति झुंड के रूप में पनपने लगी है। तापमान में आया बदलाव पौधों के पलायन का बड़ा कारण है। कम ऊंचाई पर मिलने वाले वन पीपल, चीड़ की पाइनस वेल्सेयाना प्रजाति, एरीनिरीया जैसी वनस्पतियां 3700 से 4440 मीटर की ऊंचाई में पनप रही हैं, जबकि पहले ये 3700 मीटर की ऊंचाई तक ही पाई जाती थीं। घाटी में 3700 मीटर तक उगने वाली धूप घास जैसी वनस्पतियां पुराने स्नो कवर एरिया तक उगती हैं। शोध को साइंस जनरल ने स्थान दिया.
Wednesday, June 29, 2011
पहाड़ों पर ऊपर चढ़ते जा रहे पौधे
किसी दिन विश्व प्रसिद्ध वैली ऑफ फ्लावर से फूल गायब मिलें तो..। यकीन नहीं आता, लेकिन वैज्ञानिकों के 10 साल के शोध इसी ओर इशारा कर रहे हैं। पहले पहाड़ों से इंसान का ही पलायन हो रहा था, अब यह संक्रमण पेड़ पौधों में भी फैल गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि आदमी पहाड़ छोड़ मैदानों की ओर भाग रहा है और वनस्पतियां ऊंचाई की ओर। मसलन चीड़ के पेड़ अमूमन 3700 मीटर तक की ऊंचाई पर होते हैं, अब ये 700 मीटर का सफर कर साढ़े चार हजार मीटर तक जा पहुंचे हैं। वन पीपल और धूप घास भी इसी राह पर हैं। फूलों की घाटी का भी पलायन ऊंचाई की ओर जारी है। कुदरत के इस बदलाव से वैज्ञानिक चिंतित हैं। वनस्पति जगत में मची उथल-पुथल को अस्तित्व बचाने की जुगत के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल जो पेड़-पौधे कम तापमान पर फलने-फूलने के आदी हैं, वे अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट हो गए और उनका स्थान गर्म जलवायु के पेड़ पौधे लेने लगे। फूलों की घाटी में 10 साल से वनस्पतियों के विस्थापन पर नजर रख रहे हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ डॉ. एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि घाटी की वनस्पतियों के अनुक्रम में तेजी से परिवर्तन आया है। नई वनस्पति झुंड के रूप में पनपने लगी है। तापमान में आया बदलाव पौधों के पलायन का बड़ा कारण है। कम ऊंचाई पर मिलने वाले वन पीपल, चीड़ की पाइनस वेल्सेयाना प्रजाति, एरीनिरीया जैसी वनस्पतियां 3700 से 4440 मीटर की ऊंचाई में पनप रही हैं, जबकि पहले ये 3700 मीटर की ऊंचाई तक ही पाई जाती थीं। घाटी में 3700 मीटर तक उगने वाली धूप घास जैसी वनस्पतियां पुराने स्नो कवर एरिया तक उगती हैं। शोध को साइंस जनरल ने स्थान दिया.
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