जापान में भूकंप और इसके बाद सुनामी के कहर ने एक बार फिर यह सािबत कर दिया है कि तमान वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के बावजूद प्रकृति पर विजय नहीं पाई जा सकती है। प्रकृति पर जीत हासिल करते हुए मनुष्य जो चाहता है, वह सब पा लेता है, लेकिन इसके साथ ही उससे ऐसे परिणाम भी पैदा होते हैं, जो उसे प्रकृति की अपराजेय शक्ति का भी एहसास करा जाते हैं और उसकी उपलब्धियों पर पानी फेर जाते हैं। जापान में आए शक्तिशाली भूकंप और उसके बाद आई विनाशकारी सुनामी ने भारी तबाही मचाई है। इससे भारी धन-जन की हानि हुई है। जापान के पिछले 140 साल के दौरान यह सबसे भीषण भूकंप है। इसके असर से समुद्र में 33 फीट से ज्यादा ऊंची लहरें उठीं। इन लहरों में मकान, जहाज, कारें और बस खिलौनों की तरह बहने लगे। जापान के पूर्वी तट से लगे दर्जनों शहरों और गांवों में सुनामी की विनाशकारी लहरों ने प्रलय ला दिया। कई इमारतों में आग लग गई। एक परमाणु बिजली घर में विस्फोट हो गया और दूसरा क्षतिग्रस्त हुआ हैं। बिजली, रेल और हवाई सेवाएं भी ठप हो गई। अभी तक जन-धन की क्षति का पूरा अनुमान भी नहीं लगाया जा सका है। सैदाई शहर को भारी क्षति हुई है। इस भूकंप की तीव्रता रिएक्टर पैमाने पर 8.9 मापी गई है। इससे पहले इंडोनेशिया के सुमात्रा में आए भूकंप से भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में भारी तबाही हुई थी। प्राकृतिक आपदाओं पर लगाम लगाना हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। विज्ञान और तकनीक की सहायता से बाढ़, सूखे, चक्रवात आदि पर नियंत्रण पाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन भूकंप अभी तक एक जटिल पहेली ही बना हुआ है। फिलहाल चेतावनी व्यवस्था को विकसित करके हम मानवीय क्षति को कम तो कर ही सकते हैं। आज भूकंपों के उत्पाद और उनकी विनाश लीला के बारे में वैज्ञानिकों को बहुत कुछ पता चल चुका है, लेकिन क्या किसी ढंग से अपेक्षित भावी भूकंप को रोका जा सकता है? अथवा इसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है? अभी तक यह संभव नहीं हो सका है। भूकंप के बारे में केवल पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और लोगों को पहले सचेत किया जा सकता है। भूगर्भ वैज्ञानिकों की खोज से आज आने वाले भूकंप की भविष्यवाणी बहुत हद तक संभव हो गई है, लेकिन अभी केवल मोटे तौर पर अनुमान लगाना ही संभव हो सका है। जापान में भूकंप की आशंका तो पहले से थी, लेकिन इतना बड़ा भूकंप आएगा, इसका अनुमान किसी को नहीं था। जापान का 16,654 मील का समुद्र तट गहरा और कटा-फटा है। याकोहामा, कोबे, नगोचा और ओसाका यहां के महत्वपूर्ण बंदरगाह हैं। जापान की अधिसंख्य आबादी समुद्र के किनारे बसे भीड़ भरे शहरों में निवास करती है। इस भूकंप से सैदाई शहर तबाह हो गया है। हमारी धरती को प्रतिदिन दो हजार से भी अधिक भूकंप हिलाते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश भूकंप के झटके इतने कमजोर होते हैं कि उन्हें संवेदनशील भूकंपमापी भी दर्ज नहीं कर पाते हैं। वर्ष में औसतन 15 बार भयंकर झटके आते हैं। कभी-कभी तो धरती की परतों को बेहद झकझोर डालते हैं। ऐसे भूकंपों से जान-माल की भी बरबादी होती है। 19 सितंबर, 1985 को मैक्सिको में आए भूकंप से जन और धन की भारी हानि हुई। इस भूकंप में 10 हजार से भी अधिक लोग मारे गए थे। हजारों लोग बेघरबार हो गये। ज्ञात इतिहास में सबसे बड़ा भूकंप वर्ष 1556 में चीन में आया था। इसमें 8,30,000 लोग मारे गए थे। वर्ष 1737 में भारत में आए भूकंप में भी तीन लाख से अधिक लोगों की जानें गई थीं। पिछली सदी का सबसे बड़ा भूकंप 1976 में चीन के तांगशान प्रदेश में आया था। इसमें लगभग 7,50,000 व्यक्तियों की मृत्यु हुई और करीब आठ लाख लोग घायल हो गए। भारत में वर्ष 1905 में कांगड़ा, वर्ष 1934 में बिहार तथा वर्ष 1950 में असम में विनाशकारी भूकंप आए थे। 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज और अहमदाबाद सहित छह जिलों में भूकंप से कई हजार लोग काल का ग्रास बन गए और लाखों बेघर हो गए। संसार में अभी तक भूकंपों से बचने का उपाय नहीं खोजा जा सका है। भूगर्भ शास्त्र के जानकारों के अनुसार, कुछ भूकंप ज्वालामुखी फटने से आते हैं, लेकिन अधिकतम भूकंप चट्टानों की संरचना में परिवर्तन होने के फलस्वरूप आते हैं। सवाल यह है कि परिवर्तन आखिर क्यों होता है? रूस के भू-रसायन एवं विश्लेषणात्मक रसायन शास्त्र संस्थान के निदेशक प्रो. वरसूकोव का कथन है कि इस सारी खुराफात की जड़ उत्तरी ध्रुव है, जो उत्तर अमेरिका की ओर 11 सेंटीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से भाग रहा है। भूगर्भ विज्ञान के अनुसार यह गति बहुत तेज है। अनुमान है कि भविष्य में भूकंपों की संख्या और ज्यादा बढ़ेगी। विज्ञान की भाषा में भूकंप पृथ्वी की ऊपरी परतों के वे कंपन होते हैं, जो धरती की सतह को कंपा देते हैं और उसे आगे-पीछे हिलाते हैं। ये कंपन किसी शांत तालाब में फेंके गए पत्थर से उठी लहरों की तरह होते हैं। भूकंप के साथ-साथ पृथ्वी की सतह में ऐंठन भी होने लगती है। जापान में भूकंप के बाद जो सुनामी आई, उसकी लहरें शहरों के ऊपर से जाती हुई साफ-साफ दिखाई पड़ रही थी। ऐसी लहरों के चढ़ाव और उतार लगभग तीस से चालीस फुट तक का होता है। इस चढ़ाव और उतार के कारण धरती फट जाती है और दरादों में मिट्टी, बालू, पानी और कभी-कभी गैसें भी बड़ी तेजी से निकलने लगती हैं। धरती पर आए सभी भूकंप के विवरण यदि मौजूद होते तो शायद ही कोई स्थान बचता, जहां कभी न कभी भूकंप न आया हो। वैज्ञानिक मानते हैं कि हर तीन मिनट में एक भूकंप आता है। आधुनिक खोजों के अनुसार भूकंप क्षेत्र को दो वृत्ताकार कटिबंधों में बांटा गया है। इनमें से एक भूकंप क्षेत्र न्यूजीलैंड के पास दक्षिणी प्रशांत महासागर से शुरू होकर उत्तर प्रशांत की ओर होता हुआ चीन के पूर्वी भाग में आता है। यहां से उत्तर-पूर्व की ओर मुड़कर जापान होता हुआ बोरिंग मुहाने को पार करता है और फिर दक्षिणी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम की ओर होता हुआ अमेरिका की पश्चिमी पर्वतमाला तक पहंुचता है। दूसरा क्षेत्र जो पहले की शाखा है, ईस्ट इंडीज द्वीपों से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी से होता हुआ वर्मा, हिमालय, तिब्बत और आल्पस को पर करता हुआ वेस्टइंडीज होता हुआ, मैक्सिको में पहले वाले भूकंप क्षेत्र में मिल जाता है। पहला भूकंप क्षेत्र प्रशांत परिधि पट्टी और दूसरा भूकंप क्षेत्र सागरीय पट्टी कहलाता है। पहले क्षेत्र में 68 प्रतिशत और दूसरे में 21 प्रतिशत भूकंप आते हैं। इन दोनों क्षेत्रों के अलावा चीन, मंचूरिया और मध्य अफ्रीका के साथ-साथ हिंद, अटलांटिक और आर्कटिक महासागरों में भी भूकंप क्षेत्र हैं। भूकंपों की भविष्यवाणी के मामले में चीन में भी काफी काम हुआ है। लगभग सात वर्ष पूर्व चीन की 31 भविष्यवाणियों में 18 सही, सात संदिग्ध और छह पूरी तरह गलत निकली। भूकंप की पूर्व चेतावनी में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि कोई भी भूकंप उससे पहले के भूकंप की तरह नहीं आता है। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि नए अनुसंधान और बेहतर भूकंपमापियों के द्वारा भूकंप के बारे में काफी अधिक विश्वसनीय भविष्यवाणी की जा सकेगी। अमेरिका के भूगर्भवेत्ताओं ने भी इस दिशा में काम दिया है। उनका कहना है कि अगले पांच वर्षो में भूकंप के विषय में उसी प्रकार ठीक-ठीक भविष्यवाणी के संबंध में वाशिंगटन और रूस की ताजिक विज्ञान अकादमी के भूकंप विज्ञान तथा भूकंप प्रतिरोधी संस्था के प्रयोगों से हाल में एक नतीजा निकाला गया है। किसी क्षेत्र में पिछले दो-तीन भूकंपों का समय पता हो तो दोबारा आने वाले भूकंपों का साल तय किया जा सकता है। कुर्वानोव के अनुसार, भूकंप आने से बहुत पहले पृथ्वी के अंदरूनी भाग में काफी हलचल होती है। पृथ्वी की ऊपरी सतह पर इसकी प्रतिक्रिया को देखा जा सकता है। गहरे कुओं के पानी में भी प्रतिक्रिया देखी जा सकती है। कुछ और संकेत भी हैं। उदाहरण के लिए सांप, मेढक, छिपकली और गिरगिट आदि के व्यवहार में भूकंप से पहले बड़ी बेचैनी आ जाती है। इन सभी संकेतों पर लगातार निगाह और उनके विश्लेषणों से भूकंप की भविष्यवाणी संभव हो जाती है। भूकंप की सही और सटीक भविष्यवाणी संभव हो जाने पर सरकारों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी। भूकंप से प्रभावित होने वाले स्थानों को खाली कराना भी देश की सरकारों का काम हो जाएगा। ऐसी भविष्यवाणियों की यदि कभी उपेक्षा की गई तो भारी जन और धन की हानि होगी, लेकिन अभी तक ऐसी कोई विधि नहीं खोजी जा सकी है, जिससे भूकंप को आने से रोका जा सके। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
No comments:
Post a Comment