Tuesday, March 22, 2011

परमाणु खतरा


भूकंप और सुनामी से प्रभावित जापान के फुकुशीमा स्थित परमाणु रिएक्टरों से रेडिएशन का रिसाव जारी है और मानव स्वास्थ्य पर रेडिएशन के प्रभावों को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न हो गई हैं। फुकुशीमा के रिएक्टरों को सामान्य स्थिति में लाने की चेष्टा कर रहे जांबाज टेक्निशियनों के अलावा प्लांट से 12 से 50 मील के दायरे में रहने वाले लोगों और मलबे की साफ-सफाई में जुटे कर्मचारियों के स्वास्थ्य को सर्वाधिक खतरा है। इन लोगों को आने वाले वषरें और दशकों में थायराइड संबंधी समस्याओं और कैंसर का सामना करना पड़ सकता है। चिंता की बात यह है कि रेडियोएक्टिव पदाथरें ने फूड चेन को प्रदूषित कर दिया है। प्लांट से 90 मील दूर तक फार्मों से लिए गए दूध और पालक के नमूनों में रेडियो-एक्टिविटी का स्तर सामान्य से अधिक पाया गया है। प्लांट से 170 मील दूर टोक्यो में लिए गए पानी के नमूनों में भी अल्प मात्रा में रेडियो-एक्टिविटी पाई गई है। परमाणु रिएक्टरों और परमाणु बमों से निकलने वाला रेडिएशन आयोनाइजिंग रेडिएशन होता है। यह मानव शरीर के डीएनए को प्रभावित करता है। इससे कोशिकाएं इतनी ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं कि वे अंतत: नष्ट होने लगती हैं अथवा उनमें परिवर्तन या म्युटेशन होने लगते हैं, जो आगे चल कर कैंसर को जन्म दे सकते हैं। न्यूक्लियर रेडिएशन इतना ज्यादा ऊर्जावान होता है कि यह परमाणुओं से उनके इलेक्ट्रोंस को अलग करके उन्हें आयोनाइज कर देता है। यह आयोनाइजिंग रेडिएशन या तो परमाणुओं के बीच के जोड़ को तोड़ कर डीएनए मॉलिक्युल्स को प्रभावित करता है या पानी के मालिक्युल्स को आयोनाइज करके फ्री रेडिकल्स उत्पन्न करता है जो कि रासायनिक रूप से अत्यधिक रिएक्टिव होते हैं। यह रेडिएशन आसपास के मालिक्युल्स के जोड़ों को भी छिन्न-भिन्न कर देता है। मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विकिरण सुरक्षा समिति के सदस्य पीटर डेडोन के अनुसार रेडियोएक्टिव तत्वों के केन्द्रक या न्यूक्लियस में क्षय होता रहता है। इसमें से अत्यधिक ऊर्जा वाले कण निकलते रहते हैं। यदि आप इन ऊर्जा-कणों के सामने आ जाते हैं तो ये आपके शरीर की कोशिकाओं के साथ प्रतिक्रिया करेंगे। एक तरह से आपकी कोशिकाओं और टिशुओं के भीतर ये ऊर्जा-कण विचरने लगेंगे। यदि रेडिएशन से डीएनए मालिक्युल्स में ज्यादा परिवर्तन हो जाता है तो कोशिकाएं विभाजित होना बंद कर देंगी और नष्ट होने लगेंगी। इससे उबकाई, सूजन और बालों का झड़ना जैसे लक्षणों के रूप में रेडिएशन सिकनेस सामने आएगी। जो कोशिकाएं कम क्षतिग्रस्त हुई हैं, वे जीवित रह कर विभाजित हो सकती हैं, लेकिन उनके डीएनए में होने वाला ढांचागत परिवर्तन कोशिकाओं की सामान्य प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है। इनमें वे मैकेनिजम भी शामिल हैं, जो यह तय करते हैं कि कोशिकाओं को कब और कैसे विभाजित होना चाहिए। जो कोशिकाएं अपने विभाजन को नियंत्रित नहीं कर पातीं, वे बेकाबू हो कर कैंसरकारक हो जाती हैं। शरीर में दाखिल होने वाले कुछ ऊर्जा-कण खास नुकसान किए बगैर ही शरीर से बाहर हो सकते हैं, लेकिन कुछ शरीर में बने रहते हैं। मसलन रेडियो-एक्टिव आयोडीन-131 सबसे ज्यादा खतरा उत्पन्न करती है क्योंकि थायराइड ग्लैंड तेजी से उसे सोख लेती है। आयोडीन-131 लंबे समय तक थायराइड में बनी रहती है। रेडियोएक्टिव आयोडीन का प्रभाव कितना गंभीर होता है, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उक्रेन में चेर्नोबिल परमाणु हादसे के 25 साल बाद भी लोग थायराइड कैंसर के बढ़े हुए खतरे से जूझ रहे हैं। इन लोगो ने दुर्घटना के कई हफ्तों बाद जिस दूध और दुग्ध पदाथरें का सेवन किया था, उनमें रेडियोएक्टिव आयोडीन का असर था। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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