Monday, March 28, 2011

रिएक्टरों की नहीं, यूरेनियम की जरूरत है


नाभिकीय संयंत्रों की सुरक्षा के संदर्भ में जागरण के सवालों के जवाब दे रहे हैं केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश
बहस करना और बहस खड़ी करना, केंद्रीय वन और पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश की आदत भी है और जूनून भी। उनके हर फैसले से विवादों के बवंडर उठते हैं, लेकिन तकरें की धार मानने वाले पक्ष और विपक्ष, दोनों खेमों में है। जनआंदोलनों के बावजूद उन्होंने महाराष्ट्र के जैतापुर में दस हजार मेगावाट नाभिकीय ऊर्जा परियोजना को सशर्त पर्यावरण मंजूरी दी तो सवाल उठे, लेकिन फुकुशिमा हादसे के बाद अब जयराम रमेश ही जैतापुर में एक साथ इतनी बड़ी रिएक्टर क्षमता लगाने पर सवाल उठा रहे हैं। जापान में प्राकृतिक आपदा के बाद उपजे नाभिकीय विकिरण संकट के बाद दैनिक जागरण ने उनसे बात की तो एक नए विवाद की नींव रखते हुए रमेश ने देश की रिएक्टर आयात नीति पर ही सवाल खड़े किए और इसकी समीक्षा का मुद्दा उठाया है। प्रस्तुत है जयराम रमेश से दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता प्रणय उपाध्याय की बातचीत के अंश- फुकुशिमा में जारी नाभिकीय संकट ने भारत में भी परमाणु ऊर्जा के उपयोग और उसके पर्यावरण प्रभाव पर चिंताएं खड़ी कर दी है? आप इसे किस तरह देखते हैं? फुकुशिमा में जो हो रहा है वह गंभीर है, लेकिन इस विकिरण संकट के बाद नाभिकीय ऊर्जा के विकल्प को ही खारिज करना सरासर गलत होगा। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चिंताओं की नजर से देखें तो नाभिकीय ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प है। इसमें कोई ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन नहीं है और न ही कार्बन डाई आक्साइड निकलती है। साथ ही यह किफायती भी है। नाभिकीय ऊर्जा में खतरे है, लेकिन जापान में हुए हादसे के बाद नाभिकीय ऊर्जा के भविष्य पर ही विराम लगाने की बात गलत है। लिहाजा महत्वपूर्ण है कि इससे सबक लेते हुए हम हिफाजत और संरक्षा के अतिरिक्त इंतजामों को दुरुस्त करें। भारत में फुकुशिमा जैसे नाभिकीय हादसे की आशंका कितनी वाजिब है? भारत के पास मौजूद करीब 20 रिएक्टरों में हूबहू जापान के फुकुशिमा जैसे बॉयलिंग वाटर रिएक्टर तारापुर में हैं। इसलिए खास तौर पर तारापुर 1 और 2 में ध्यान देना होगा। परमाणु ऊर्जा आयोग और नाभिकीय ऊर्जा निगम इसकी जांच कर रहा है कि संरक्षा के और क्या इंतजाम जरूरी हैं। अगर जरूरत पड़ेगी तो इनमें संरक्षा उपाय पुख्ता करने के लिए अतिरिक्त व्यवस्थाएं की जाएंगी। जापान हादसे के बाद प्रधानमंत्री ने भी संसद में दिए बयान में यह भरोसा दिलाया है कि देश के नाभिकीय संयंत्रों की संरक्षा का ऑडिट होगा। परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड को संरक्षा इंतजामों की समीक्षा करने को कहा गया है। इस घटना ने भारत के नाभिकीय कार्यक्रम को क्या सबक दिए हैं? फुकुशिमा त्रासदी ने कई अहम सवाल खड़े किए हैं जिनके बारे में सोचने की जरूरत है और कई मौजूदा नीतियों की समीक्षा भी जरूरी हो गई है। इसमें सबसे अहम मुद्दा है देश की रिएक्टर आयात नीति का। भारत के पास इस समय अमेरिका, रूस और स्वदेश निर्मित रिएक्टर हैं, जबकि अगले कुछ सालों में हम अलग-अलग देशों से 36 नए रिएक्टर आयात करने जा रहे हैं जिनके सहारे करीब 30 हजार मेगावाट क्षमता विस्तार किया जाना है। जापान की नाभिकीय त्रासदी ने यह दिखा दिया है कि संरक्षा और सुरक्षा के उपाय कितने अहम हैं। इसलिए अलग-अलग तरह के रिएक्टर और उनके संरक्षा नियमन के लिए जरूरी तकनीकी विशेषज्ञता जुटाना भारत के नाभिकीय विस्तार कार्यक्रम के लिए एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में यह जरूरी है कि विदेशों से रिएक्टर खरीदने की नीति पर कुछ देर रुक कर विचार किया जाए। वैसे भी भारत को रिएक्टर की नहीं, बल्कि प्राकृतिक यूरेनियम की ज्यादा जरूरत है। .लेकिन फिर नाभिकीय ऊर्जा विस्तार लक्ष्य कैसे पूरे होंगे? साथ ही न्यूक्लियर डील का क्या होगा? जैसा मैंने पहले ही कहा भारत की जरूरत यूरेनियम है। नाभिकीय ऊर्जा विस्तार के लिए 700 मेगावाट क्षमता वाले स्वदेशी रिएक्टर के मानकीकरण पर ध्यान देने की जरूरत है। इसकी क्षमता को ही एक हजार या 1200 मेगावाट तक बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। ताकि देश में एक ही तरह के रिएक्टर हों और उनका बेहतर तरीके से नियमन हो सके। जहां तक न्यूक्लियर डील का सवाल है तो उसमें क्या है? यह मैं नहीं जानता। कुछ कूटनीति करनी होगी, क्योंकि यदि आयात की फेहरिस्त लंबी होती गई तो इनके लिए जरूरी विशेषज्ञ कहां से आएंगे। एइआरबी के पास भारतीय रिएक्टर में संरक्षा मानकों के लिए तो विशेषज्ञता है, लेकिन नाभिकीय विस्तार के साथ-साथ इसके सुरक्षित संचालन के लिए जरूरी मानव संसाधन जुटाना बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। भारत में नाभिकीय संयंत्रों की संरक्षा और नियमन की व्यवस्था पर सवाल उठाए जाते रहे हैं? मैंने यह मामला उठाया है कि नाभिकीय संयंत्रों में मौजूद सुरक्षा उपायों की पारदर्शी समीक्षा के लिए जरूरी है कि परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड को परमाणु ऊर्जा आयोग से निकालकर स्वतंत्र जांच संस्था के रूप में खड़ा किया जाए, जिससे जनता में यह भरोसा जगे कि नाभिकीय संयंत्रों के संरक्षा इंतजाम पारदर्शी हैं। फुकुशिमा दुर्घटना ने जैतापुर में प्रस्तावित नाभिकीय संयंत्र के विरोध को भी बढ़ाया है। इसे किस तरह देखते हैं? भारत को मौजूदा नाभिकीय रिएक्टर पार्ककी नीति को भी बदलने की जरूरत है। यदि इस तरह की घटना जापान में संभव है तो फिर भारत में ऐसे किसी हादसे की तीव्रता काफी गंभीर स्थिति पैदा कर सकती है। ऐसे में सोचना होगा कि जैतापुर में एक ही स्थान पर 10 हजार मेगावाट क्षमता स्थापित करना कितना मुनासिब होगा। अलग अलग स्थानों पर कम क्षमता के रिएक्टर स्थापित करने को मैं अच्छा विकल्प मानता हूं। बड़ी क्षमता के पीछे नाभिकीय रिएक्टरों के लिए खास जगह की जरूरत का तर्क दिया जाता है? यह सही है। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि नाभिकीय रिएक्टर बनाने के लिए जगह के चुनाव की कुछ खास जरूरतें होती हैं। इन्हें आबादी से दूर बनाना होता है। इन्हीं कारणों के मद्देनजर सीमित स्थानों पर ही नाभिकीय रिएक्टर बनाए जाते हैं और शायद यही वजह है कि जैतापुर में दस हजार मेगावाट नाभिकीय ऊर्जा पार्क बनाने का विचार बना, लेकिन अब इसकी समीक्षा जरूरी हो गई है। क्या जैतापुर को आपकी मेज से मिली सशर्त मंजूरी में सुनामी की चिंताओं को ध्यान में रखा गया? नहीं। जैतापुर के बारे में भूकंप संबंधी चिंताओं पर तो विचार किया गया, लेकिन सुनामी की प्राकृतिक आपदा पर कोई विचार नहीं हुआ। इसका कारण यह भी है कि जैतापुर से सटे अरब सागर में सुनामी का इतिहास काफी कमजोर है|

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