Friday, March 4, 2011

विनाश के करीब पहुंच रही है हमारी धरती


 अगर वैज्ञानिकों की मानें तो धरती छठी बार विनाश का सामना करने वाली है। उनके मुताबिक पिछले पांच बार के मुकाबले इस बार के प्रलय की तीव्रता बहुत कम होगी। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के अनुसंधानकर्ताओं ने इस बात का मूल्यांकन किया कि स्तनधारी और अन्य प्रजातियां संभावित विलुप्ति के मामले में 54 करोड़ वर्ष पहले की तुलना में आज किस स्थिति में हैं। शोध साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एंटनी बार्नोस्की ने कहा,अगर आप विलुप्त होने के कगार पर पहंुचे स्तनधारियों को ही केवल देखें, तो वे एक हजार वर्षो में विलुप्त हो जाएंगे। यह हमें बताता है कि हम सर्वनाश की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, फिलहाल खतरे में पड़ी प्रजातियों की विलुप्त होने की यह दर जारी रही तो छठा सर्वनाश आगामी तीन से 22 शताब्दियों के बीच में हो सकता है। उन्होंने कहा अभी भी देर नहीं हुई है। इन लुप्तप्राय होते स्तनधारियों और अन्य प्रजातियों को बचाया जा सकता है। बार्नोस्की ने कहा फिलहाल सभी प्रजातियां की एक से दो प्रतिशत प्राणी विलुप्त हो चुके हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है हम प्रलय से ज्यादा दूर नहीं हैं। हमारे पास पृथ्वी को बचाने के लिए पर्याप्त समय है। उन्होंने कहा, प्रजातियों के बचाव के लिए कानूनी विधेयक और संसाधन की बहुत आवश्यकता है। शोध के लिए बार्नोस्की और उनके दल ने जीवाश्म रिकॉर्ड से जनविलुप्ति की दर का पता लगाया। फिर उसकी तुलना वर्तमान दर से की। शुरुआती दौर में उन्होंने स्तनधारी को चुना क्योंकि आजकल इन पर गहन अध्ययन हो रहा है। साथ ही उनका 65 लाख साल पुराना जीवाश्म रिकॉर्ड भी मौजूद है। उनके मुताबिक 50 करोड़ साल में 5570 स्तनधारी में 80 विलुप्त हो गए। उन्होंने पाया कि स्तनधारी के औसत विलुप्त होने की दर हर दस लाख साल में दो रही, यह मौजूदा स्तनधारी की विलुप्त होती दर से काफी कम है। बार्नोस्की ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक दौर में विलुप्ती की दर महाविलुप्ति के समान है, वह भी तक जब महाविलुप्ति के लिए काफी ऊंची सीमा तय की गई है। आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर) की संकटग्रस्ट प्रजातियों की सूची देखने के बाद, वैज्ञानिक दल ने निष्कर्ष निकाला कि सभी स्तनधारियों को संकटग्रस्त सूची में डाल दें जो अब विलुप्त होने की ओर हैं। चाहे इसमें कुछ सौ साल लगें या हजार साल, धरती पर वास्तविक महाविलुप्ति होनी है|

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