Wednesday, March 2, 2011

अगले 100 साल में विलुप्त हो जाएंगे ध्रुवीय भालू


आर्कटिक क्षेत्र में रहने वाले सफेद ध्रुवीय भालू पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आवाज उठाने वालों के लिए लंबे समय से चिंता का सबब बने हुए हैं। पर्यावरणविद मौजूदा हालात को इस बात का संकेत मान रहे हैं कि पृथ्वी से कुछ समय में इस अत्यंत दुर्लभ प्राणी का अस्तित्व पूरी तरह खत्म होने वाला है। दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाली संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर’ (आईयूसीएन) ने अपनी एक रिपोर्ट में धुवीय भालू जैसे संकटग्रस्त जीवों के अस्तित्व के लिए ग्लोबल वार्मिंगको सबसे ज्यादा खतरनाक बताया है। आईयूसीएन की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग अगर मौजूदा स्तर से ही बढ़ती रही, तो अगले 100 साल में दुनिया में एक भी ध्रुवीय भालू नहीं बचेगा। पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाली संस्था धरा की सदस्य अनु तोमर बताती हैं, ‘ध्रुवीय भालू सबसे बड़े प्रकार के भालू माने जाते हैं, पर दुर्भाग्य की बात यह है कि मानवीय क्रि याकलापों के चलते अब ये गंभीर तौर पर संकटग्रस्त प्रजातियों में आ गए हैं। ध्रुवीय भालू की 19 प्रकार की जातियों में से आठ की संख्या गंभीर तौर पर गिर रही है और ये संकटग्रस्त हो चुकी हैं।
अनु ने कहा, ‘ध्रुवीय भालू बर्फीले स्थान पर रहते हैं और बर्फ ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातार पिघल रही है। जब बर्फ ही नहीं बचेगी, तो वहां रहने वाले प्राणी कब तक अपना अस्तित्व बचा पाएंगे। आईयूसीएन की रिपोर्ट सही ही है कि अगले 100 साल में एक भी ध्रुवीय भालू नहीं बचने वाला है।फरवरी माह के अंतिम दिन मनाए जाने वाले ध्रुवीय भालू दिवसके मौके पर जलीय प्राणियों की विशेषज्ञ डॉ. शैलजा कांबले इस दुर्लभ होते जा रहे प्राणी के अस्तित्व के लिए सीलों की घटती संख्या को भी खतरा बताती हैं। डॉ. शैलजा के मुताबिक, ‘ध्रुवीय भालू अपने भोजन के लिए सिर्फ सील पर निर्भर होते हैं। समुद्र में अब सीलों की संख्या भी लगातार घट रही है। जब ध्रुवीय भालू को खाने को नहीं मिलेगा, तो वह कब तक जीवित रह पाएगा।वह बताती हैं कि ध्रुवीय भालू को समुद्र में फैले जहरीले पदाथरें से भी खतरा पैदा हो रहा है। इसके अलावा आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ती मानवीय गतिविधियां भी इनके प्राकृतिक निवास को प्रदूषित कर रही हैं। र्वल्ड वाइल्डलाइफ फंड ने दो साल पहले की एक रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया था कि ध्रुवीय भालू आर्कटिक क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र का एक संकेतक है क्योंकि इस प्राणी की गतिविधियों से इस पूरे सुदूर क्षेत्र की गतिविधियों की जानकारी मिलती रहती है।


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