Sunday, March 27, 2011

नाभिकीय संयंत्रों को सुनामी से बचाएगी मैंग्रूव


जापान में सुनामी के बाद उपजे नाभिकीय संकट ने दुनियाभर में जहां परमाणु संयंत्रों के सुरक्षा इंतजामों पर बहस खड़ी की है, वहीं ऐसे हादसों के खिलाफ प्राकृतिक उपाय मजबूत करने की बहस को भी जोर दिया है। ऐसी ही कोशिश में जानेमाने कृषि वैज्ञानिक, चिंतक व सांसद एमएस स्वामीनाथन ने सरकार से समुद्र किनारे स्थित कलपक्कम और कुडनगुलम नाभिकीय संयंत्र के नजदीक तटीय क्षेत्र में घने मैंग्रूव वन रोपण की सलाह दी है। केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को लिखे पत्र में स्वामीनाथन ने बड़े पैमाने पर खारे पानी वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली मैंग्रूव व गैर मैंग्रूव पादप प्रजातियों को लगाए जाने की सिफारिश की है। जापान के ओकिनावा स्थित इंटरनेशनल सोसाइटी फार मैंग्रूव ईकोसिस्टम्स के पूर्व अध्यक्ष डॉ. स्वामीनाथन का कहना है कि मैंग्रूव प्रजातियां तटीय इलाकों में तूफान और सुनामी जैसी स्थितियों में तट रेखा को नुकसान से बचा सकती हैं। विख्यात कृषि वैज्ञानिक ने नाभिकीय संयंत्रों से सटे तटीय इलाकों को अत्यंत संवेदनशील तटीय क्षेत्र की श्रेणी में घोषित करने की भी अपील की है। तमिलनाडु समेत भारत के दक्षिणी तट को प्रभावित करने वाली सुनामी में भी यह महसूस किया गया था कि घने मैंग्रूव जंगल वाले इलाकों में विनाशकारी लहरों का असर कम महसूस किया गया था। हालांकि इस सुनामी ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के इलाके में करीब 20 वर्ग किलोमीटर मैंगू्रव जंगल को लील लिया था। वैसे भारत दुनिया के उन कुछ चुनिंदा मुल्कों में है जहां मैंग्रूव के जंगलों को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। गुजरात क्षेत्र में तो मैंग्रूव जंगल का क्षेत्रफल 55 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक भारत में मैंग्रूव के जंगल करीब साढ़े चार हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हैं। हालांकि बीते एक दशक में 200 वर्ग किमी क्षेत्र से मैंग्रूव समाप्त हुए हैं।


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