Saturday, March 26, 2011

परमाणु खतरे की राह पर न चले देश


भारत के परमाणु विज्ञानियों ने 400 मेगावाट के संयंत्र को बनाया, जो कि सफलतापूर्वक काम कर रहा है। लेकिन अरेवा जैसी कम्पनी के संयंत्र का अब तक टेस्ट नहीं हुआ है। ऊपर से इस इकाई की उत्पादन क्षमता 1,600 मेगावाट होगी। यानी सीधे चार गुणा। इस तरह के 6 रिएक्टर लगाने पर एकाएक बोझ बढ़ेगा। इसलिए आधारभूत ढांचे की सुरक्षा की जांच- पड़ताल जरूरी है

11 मार्च को पूरे जापान ने 9 रिक्टर की तीवता के भूकम्प के झटके को झेला। यह बात दीगर है कि उस दिन के बाद से अब तक हर दिन जापान के किसी न किसी इलाके में 5 रिक्टर से ज्यादा के भूकम्प के झटके आ रहे हैं। बहरहाल, भूकम्प की तबाही को जापान जैसा मुल्क कमोबेश बर्दाश्त कर सकता था क्योंकि दुनिया में उसकी पहचान आर्थिक शक्ति के तौर पर है और वैसे भी जापान को भूकम्प प्रभावित इलाकों में गिना जाता है। इसलिए यहां की इमारतों से लेकर तमाम संयंत्र भूकम्परोधी हैं। लेकिन इस तबाही को सुनामी ने और बढ़ा दिया। नतीजतन भूकम्प और सुनामी दोनों के प्रकोप को एक बार में ही झेलने में जापान असक्षम रहा।
रेडिएशन का खतरा
मीडिया रिपोटरे के मुताबिक 10 हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। बाकी कितनों के घर उजड़े, कितने बह गए, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन इसके बाद जो तीसरी तबाही की आशंका पनपी है, उसका क्षणिक अनुमान भी किसी देश को मिटाने के लिए काफी है। वह है परमाणु रेडिएशन का ख़्ातरा। जैसा कि हम सब जानते हैं कि जापान में जलजले के बाद फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के 6 रिएक्टरों में से 4 में विस्फोट हुआ और इसमें मेल्ट डाउन की स्थिति आई। काफी मात्रा में रेडिएशन हुआ है। हालांकि अब तक जापान सरकार की ओर से आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। वैसे, जापान की राजधानी टोक्यो और फुकुशिमा के आसपास के गांवों में नल के पानी को पीने पर पाबंदी लगा दी है, क्योंकि इसमें रेडियोएक्टिव आयोडीन की मात्रा बढ़ गई है। यानी जापान हादसों को झेलने के बाद भी ख़्ातरों के सुनामी पर अटका हुआ। अगर जल्द तमाम हालात पर काबू नहीं पाए जाते हैं तो जापान ही नहीं वरन दुनिया के कई देशों के लिए यह रेडिएशन चिंता का सबब बन सकता है।
सवाल सुरक्षा का
यह चेतावनी भारत जैसे मुल्क पर भी लागू होती है, जहां भारत-अमेरिका करार के तहत कई परमाणु संयंत्रों की स्थापना प्रस्तावित है। वैसे, जनअसंतोष की बात को दूर रखें तो भी सवाल परमाणु रिएक्टर की सुरक्षा, प्रस्तावित जगहों के भौगोलिक हालात, एटॉमिक उत्तरदायित्व और ऊर्जा उत्पादन पर लागत जैसे गहन मसलों से जुड़ा है। कहा जा सकता है कि एटमी करार के प्रति वचनबद्ध और ऊर्जा के लिए लालायित मुल्क परमाणु ख़्ातरों से खेलने के लिए तैयार बैठा है। वैसे अब तक हमारे यहां बड़ा परमाणु हादसा नहीं हुआ है। लेकिन अगर ऐसी नौबत आती है तो इसके लिए हम तैयार भी नहीं हैं।
हादसों से लें सबक
1987 में तमिलनाडु के कलपक्कम रिएक्टर में हादसा हुआ। इससे रिएक्टर का आंतरिक भाग क्षतिग्रस्त हो गया। दो साल तक मरम्मत चली। इसके बाद 1992 में तारापुर संयंत्र में रेडियोधर्मी रिसाव के मामले सामने आए। 1999 में फिर कलपक्कम रिएक्टर में रेडियोधर्मी रिसाव के चलते कई कर्मचारी बीमार पड़े। 2009 में भी कर्नाटक के कैगा में ट्रिटियम के रिसाव के चलते 50 कर्मचारियों की हालत बिगड़ी। जैसा कि हम सब जानते हैं कि ये सारे हादसे बड़े नहीं थे। लेकिन इसका व्यापक असर जरूर पड़ा। रेडियोधर्मी रिसाव क्या बला है, इसका अंदाजा तो दिल्ली विश्वविद्यालय से हटाए गए कोबाल्ट-60 के प्रकोप से चल ही गया। अब ऐसे में जबकि अमेरिका, फ्रांस, रूस के सहयोग से भारत अपनी मौजूदा परमाणु क्षमता 4,780 मेगावाट को बढ़ाकर 63 हज़ार मेगावाट करने की तैयारी में है, तो सुरक्षा मानकों और एहतियातों का खयाल तो रखना ही होगा।
खतरनाक क्षेत्रों में क्यों
हालांकि चिंता की बात यह है कि ज्यादातर प्रस्तावित इलाके भूकम्प आशंकित क्षेत्रों में आते हैं। मसलन, एक इलाका महाराष्ट्र का जैतापुर भी है, जहां के लोग इसका काफी विरोध कर रहे हैं। फ्रांस की कम्पनी अरेवा यहां परमाणु संयंत्र बिठाएगी। लेकिन पिछले 20 सालों में यहां भूकम्प के सौ से ज्यादा झटके आ चुके हैं। कई की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6 महसूस की गई, जो कि खतरनाक माना जाता है। सौराष्ट्र के मिथी वर्दी इलाके में भी संयंत्र की स्थापना होगी। इस इलाके ने 2001 में भयंकर भूकम्प को झेला था। इस तरह के ख़्ातरों के बावजूद इन इलाकों में परमाणु संयंत्र की स्थापना को मंज़ूरी कैसे मिली, यह यक्ष प्रश्न हैै
बुनियादी ढांचे को परखा जाए
जहां तक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से ऊर्जा उत्पादन की बात है, भारत के परमाणु विज्ञानियों ने 400 मेगावाट के संयंत्र को बनाया, जो कि सफलतापूर्वक काम कर रहा है। लेकिन अरेवा जैसी कम्पनी के संयंत्र का अब तक टेस्ट नहीं हुआ है। ऊपर से इस इकाई की उत्पादन क्षमता 1,600 मेगावाट होगी। यानी सीधे चार गुणा। इस तरह के 6 रिएक्टर लगाने पर एकाएक बोझ बढ़ेगा। इसलिए आधारभूत ढांचे की सुरक्षा की जांच-पड़ताल जरूरी है।



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