लेखक विलोपन के छठे दौर के खतरे से आगाह कर रहे हैं…
पृथ्वी पर पिछले 54 करोड़ वर्षो के दौरान पांच बार जीव-जंतुओं का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ। विनाश के प्रत्येक दौर में तीन-चौथाई या उससे अधिक जीव-जंतुओं की प्रजातियों का सफाया हो गया था। अब वैज्ञानिकों ने चेताया है कि मेंढकों, मछलियों और शेरों सहित अनेक जीव-जंतुओं की आबादी में तेजी से गिरावट को देखते हुए पृथ्वी पर जीवों के विनाश का छठा दौर शुरू हो सकता है। यदि जीव-जंतुओं का व्यापक विलोपन होता है तो 300 वर्षो के भीतर दुनिया के 75 प्रतिशत से अधिक जीवों का नामोनिशान मिट जाएगा। यह प्रलय एस्ट्रायड या क्षुद्रग्रह से नहीं आएगी, जिसकी वजह से करीब 6.5 करोड़ वर्ष पहले धरती से डायनासोर साम्राच्य का सफाया हो गया था। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक मनुष्य जिस तरह से जमीन का इस्तेमाल कर रहा है और जिस तरह से जलवायु में परिवर्तन हो रहे हैं, उससे पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की बड़े पैमाने पर विलुप्ति का खतरा बहुत बढ़ गया है। बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के जीवाश्म-वैज्ञानिक टोनी बामोस्की के नेतृत्व में किए गए इस ताजा अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि आज हम विलोपन की रफ्तार को थामने में नाकाम रहे तो दुनिया में तीन से लेकर 22 शताब्दियों के बीच छठा महाविलोपन हो सकता है। बामोस्की का कहना है कि आज हमने जो खोजा है, वह अच्छा भी है और बुरा भी। अच्छी बात यह है कि अभी इतना विलोपन नहीं हुआ है कि हम अभी से उम्मीद छोड़ दें, खराब बात यह है कि विलोपन की दर पर अंकुश नहीं लगा तो पृथ्वी को छठे बड़े विलोपन से बचाना मुश्किल हो जाएगा। बामोस्की के मुताबिक महाविलोपन का सबसे बड़ा कारण मनुष्य की गतिविधियां हैं। हम जीव-जंतुओं के कुदरती आवास को उजाड़ रहे हैं, पर्यावरण-संतुलन बिगाड़ रहे हैं और प्रजातियों को एक जगह से हटा कर दूसरी जगह ले जा रहे है ताकि बाहरी आक्रामक प्रजातियां स्थानीय प्रजातियों पर हावी हो जाएं। आज जो जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उसका कारण भी मनुष्य ही है। और फिर धरती पर आबादी का बोझ भी बढ़ रहा है, जिसके चलते संसाधनों पर भी दबाव पड़ रहा है। पांचवें विलोपन के दौरान डायनासोर और दूसरी प्रजातियां नष्ट हो गई थीं। बाकी सभी चार महाविलोपन डायनासोरों के लुप्त होने से पहले हो चुके थे। इन विलोपनों ने समुद्री जीवों को प्रभावित किया था। इस वक्त चल रहे विलोपन के दौर से कोई भी जीव-जंतु सुरक्षित नहीं है। खतरे में पड़े जीव-जंतुओं की सूची में गैंडे, हाथी, पांडा, ेल, डोल्फिन, शेर, समुद्री कछुए और ट्रि कंगारू आदि शामिल हैं। पेड़-पौधों और जीव जंतुओं की प्राय: हर श्रेणी में कोई न कोई खतरे में है। जिन प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है, उनकी संख्या 20 से लेकर 50 प्रतिशत के बीच आंकी गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के जीवाश्म-वैज्ञानिक डेविड जब्लोंस्की का कहना है कि इस अध्ययन में पहली बार वर्तमान विलोपन की तुलना पिछले जीवाश्म-रिकार्ड के साथ की गई है। रिसर्चरों ने प्रजातियों के आधुनिक रिकार्ड के मौजूदा आंकड़ों और जीवाश्म-रिकार्ड का गणितीय विश्लेषण करके विलोपन की वर्तमान दर की तुलना अतीत में हुए विलोपनों से की। यह मुश्किल और जटिल कार्य है। पिछले 3.5 अरब वर्षो के दौरान पृथ्वी पर चार अरब प्रजातियां विकसित हुई थीं और इनमें से 99 प्रतिशत अब लुप्त हो चुकी हैं, दूसरी तरफ चिंता की बात यह है कि हम अपने ग्रह पर अपनी गतिविधियों से धीरे-धीरे महाविलोपन जैसी परिस्थितियां उत्पन्न कर रहे हैं, फिर भी लोगों के समक्ष सुधरने का एक अच्छा मौका है। यदि लोग अपनी आदतें बदल दें और संरक्षण के कारगर उपाय करें तो खतरे में पड़ी प्रजातियों को संकट से उबारा जा सकता है। अभी पृथ्वी पर काफी जैव-विविधता बची हुई है। इसके संरक्षण से हम छठे विलोपन को टाल सकते हैं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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