Friday, January 14, 2011

‘सरकार को गंगा से जल लेने का हक नहीं’

गंगा में हर समय उपलब्ध रहे पचास फीसदी जल :हाईकोर्ट

इलाहाबाद। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि गंगा में कम से कम पचास फीसदी जल की उपलब्धता हर समय बनाए रखी जाए। गंगा के जल को नहरों में खींचकर उसे पचास फीसदी से कम नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि अदालत का यह माना कि किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिलना जरूरी है मगर इसके लिए गंगा की मुख्य धारा में पानी कम करना उचित नहीं है। गंगा में जल का संतुलन बनाए रखने के लिए राज्य नरौरा से मिलने वाले जल का पचास फीसदी हिस्सा गंगा में बनाए रखे। याचिका पर अगली सुनवाई 19 जनवरी को होगी। इस दिन मुख्य सचिव को अदालत ने तलब किया है।
याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अरुण टंडन की खंडपीठ ने कहा कि क्या सरकार को गंगा से असीमित मात्रा में जल का दोहन करने का अधिकार है। पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है इसके लिए कोर्ट के आदेश की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदेश सरकार को पूर्व के आदेशों की अनुपालन रिपोर्ट पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। अपर महाधिवक्ता एसजी हसनैन ने कोर्ट को अवगत कराया कि पूर्व के निर्देश के अनुपालन में गंगा में हर दिन 1100 क्यूसिक जल छोड़ा जा रहा है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड से कम पानी मिलने के कारण समस्या हुई है।
एमिकस क्यूरी अरुण गुप्ता ने अदालत को अवगत कराया कि गंगा का काफी जल गाजियाबाद, नोएडा और दिल्ली आदि शहरों को दिया जा रहा है। पर्याप्त जल न होने के कारण इसका रंग भूरा पड़ गया है। गंगा जल पीने लायक भी नहीं रह गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी गंगा जल की गुणवत्ता रिपोर्ट अदालत में पेश की। इसमें बताया गया है कि गंगा जल मानक के अनुसार शुद्ध नहीं है।

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