राजधानी में धड़ल्ले से हो रहा अवैध निर्माण हम सबके लिए खतरे की घंटी है। ऐसा नहीं कि जो लोग अवैध रूप से बने मकानों में रह रहे हैं वही कभी भुक्तभोगी बनेंगे, बल्कि हम सबको इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा। विशेषज्ञों की मानें तो धड़ल्ले से हो रहा अवैध निर्माण भी राजधानी के भूजल स्तर कम होने का प्रमुख कारण तो है ही, इसके चलते मिट्टी की शक्ति कमजोर हो रही है। भूकंप, बाढ़ समेत किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में ताश की पत्ते की तरह इमारतों के गिरने में देर नहीं लगेगी। इतना ही नहीं अंधाधुंध शहरीकरण हो या फिर भूगर्भीय परिवर्तन के चलते दिल्ली भूकंपीय खतरों के लिहाज से और संवेदनशील होती जा रही है। गत वर्ष केंद्र सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन में भी बताया गया था कि राजधानी भूकंपीय चुनौती के लिहाज से संवेदनशील समझे जाने वाले जोन चार से निकल अति संवेदनशील जोन पांच की तरफ बढ़ रही है। इस प्रक्रिया की एक बड़ी वजह है कि दिल्ली की मिट्टी की लगातार कमजोर होती पकड़। यह हालात दिल्ली के बाद असम के कामरूप जिले की है। अध्ययन में देश के करीब 40 शहरों के बारे में बताया गया था। इससे साफ है कि सरकार से लेकर स्थानीय एजेंसी तक वस्तुस्थिति से पूरी तरह अवगत है। बावजूद धड़ल्ले से हो रहा है अवैध निर्माण। भूकंप जैसी आपदा की स्थिति में पूर्वी दिल्ली जैसी घनी आबादी वाले इलाकों में तत्काल राहत पहुंचा पाना ही संकट होगा। भूकंप की स्थिति में यमुना पर बने पुलों के धराशायी होने की सूरत में यमुनापार के इलाकों से संपर्क कैसे होगा यह सवाल चिंता पैदा करता है। मदद न पहुंचा पाने का कुछ ऐसा ही संकट घनी आबादी और तंग गलियों वाली पुरानी दिल्ली में भी होगा। वरिष्ठ आर्किटेक्ट कुलदीप सिंह भी राजधानी में अंधाधुंध शहरीकरण, ताबड़तोड़ निर्माण कार्यो व तेजी से गिरते भू जल स्तर को भूंकपीय खतरे के बढ़ते खतरे की एक बड़ी वजह भी बताते हैं। भूकंपीय खतरे की बढ़ती चुनौती के बीच शहरी नियोजन की स्थिति और आपदा प्रबंधन से निपटने की तैयारियों की मौजूदा स्थिति कहीं से भी विश्वास नहीं पैदा करती। राजधानी के संदर्भ में एक खतरनाक सच्चाई यह है कि यहां की मिट्टी की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो रही है। लगातार झीजते भू जल स्तर और भारी पैमाने पर निर्माण कार्यो के चलते मिट्टी ढीली हो रही है। मिट्टी ढीली होने की यह प्रक्रिया पूर्वी दिल्ली सहित यमुना के किनारे के दूसरे हिस्सों में ज्यादा है। इतना ही नहीं अवैध निर्माण के चलते पुरानी दिल्ली, सदर बाजार, करोलबाग इलाकों में भी यही स्थिति है। दिल्ली की भूकंपीय संवेदनशीलता के संदर्भ में अध्ययन करने वाले प्रो. मनीष कुमार के मुताबिक यमुना बेसिन की भूमि की संरचना में एक बड़ा हिस्सा बालू का है। यहां अंधाधुंध निर्माण (जिनमें भूमिगत निर्माण और भी घातक हैं) और भूजल स्तर में खतरनाक स्तर तक गिरावट ने बालुवाई मिट्टी की कमजोर पकड़ का खतरा और भी बढ़ा दिया है। तेजी से गिरते भू जल स्तर के बाबत केंद्रीय भूजल बोर्ड भी कई बार चेता चुका है। इसको देखते हुए अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने वाली एजेंसी को सख्ती से काम करना चाहिए। सरकार भी यह सुनिश्चित करे कि किसी भी सूरत में अवैध निर्माण न होने पाए।
No comments:
Post a Comment