केंद्र और राज्य सरकार की खींचतान के चलते पीलीभीत टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट पिछले तीन साल से लटका पड़ा है। ऐसे में यह सवाल फिर जोर पकड़ने लगा है कि टाइगर रिजर्व कब बनेगा। हालांकि केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकृत करने की पूरी तैयारी कर ली है, लेकिन प्रदेश के अफसर इस मामले में बोलने से कतरा रहे हैं। पीलीभीत जिले में 2007 में व्यापक पैमाने पर बाघों के हमलों के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने वन विभाग और स्थानीय प्रशासन से पीलीभीत टाइगर रिजर्व बनाने के लिए प्रस्ताव मांगा था। तत्कालीन जिला वन अधिकारी (डीएफओ) प्रमोद गुप्ता ने इस बाबत प्रस्ताव तैयार किया। राज्य सरकार ने प्रस्ताव केंद्र को भेजा दिया। केंद्रीय बाघ संरक्षण समिति ने प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान कर दी, लेकिन कुछ संशोधन करने के सुझाव के साथ प्रस्ताव राज्य को भेज दिया था । राज्य ने आपत्तियों का निराकरण प्रस्ताव को नये सिरे से केंद्र को भेजा। उसके बाद से मामला लटका हुआ है। शहर विधायक हाजी रियाज अहमद ने राज्य विधानसभा में यह मामला उठाया था। प्रदेश के वन मंत्री ने यह आश्वासन दिया था, यदि केंद्र का प्रस्ताव मिलता है तो राज्य सरकार भी प्रस्ताव को पारित करने में देरी नहीं लगायेगी। केंद्र ने स्वीकृति प्रदान कर दी तो एक बार फिर से विधायक ने मंत्री को किया हुआ वादा याद दिलाया। अधिसूचना जारी करने के लिए मामला विधि विभाग को भेजा गया। वहीं इसकी पत्रावली अभी तक पड़ी है। केंद्रीय बाघ संरक्षण समिति के सदस्य सचिव डा.राजेश गोपाल ने तो पीलीभीत के जंगल को दुधवा राष्ट्रीय उद्यान से जोड़े जाने की बात की थी, लेकिन राज्य सरकार ने उनके प्रस्ताव पर विचार करने की बात कह कर उसे टाल दिया। उल्लेखनीय है कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व का पहली बार प्रस्ताव 1989 में तैयार किया गया था, जब स्थानीय सांसद मेनका गांधी केंद्र में पर्यावरण राज्य मंत्री थी, लेकिन उस समय राज्य सरकार ने प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया।
Wednesday, January 26, 2011
फिर उठी मांग कब बनेगा टाइगर रिजर्व
केंद्र और राज्य सरकार की खींचतान के चलते पीलीभीत टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट पिछले तीन साल से लटका पड़ा है। ऐसे में यह सवाल फिर जोर पकड़ने लगा है कि टाइगर रिजर्व कब बनेगा। हालांकि केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकृत करने की पूरी तैयारी कर ली है, लेकिन प्रदेश के अफसर इस मामले में बोलने से कतरा रहे हैं। पीलीभीत जिले में 2007 में व्यापक पैमाने पर बाघों के हमलों के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने वन विभाग और स्थानीय प्रशासन से पीलीभीत टाइगर रिजर्व बनाने के लिए प्रस्ताव मांगा था। तत्कालीन जिला वन अधिकारी (डीएफओ) प्रमोद गुप्ता ने इस बाबत प्रस्ताव तैयार किया। राज्य सरकार ने प्रस्ताव केंद्र को भेजा दिया। केंद्रीय बाघ संरक्षण समिति ने प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान कर दी, लेकिन कुछ संशोधन करने के सुझाव के साथ प्रस्ताव राज्य को भेज दिया था । राज्य ने आपत्तियों का निराकरण प्रस्ताव को नये सिरे से केंद्र को भेजा। उसके बाद से मामला लटका हुआ है। शहर विधायक हाजी रियाज अहमद ने राज्य विधानसभा में यह मामला उठाया था। प्रदेश के वन मंत्री ने यह आश्वासन दिया था, यदि केंद्र का प्रस्ताव मिलता है तो राज्य सरकार भी प्रस्ताव को पारित करने में देरी नहीं लगायेगी। केंद्र ने स्वीकृति प्रदान कर दी तो एक बार फिर से विधायक ने मंत्री को किया हुआ वादा याद दिलाया। अधिसूचना जारी करने के लिए मामला विधि विभाग को भेजा गया। वहीं इसकी पत्रावली अभी तक पड़ी है। केंद्रीय बाघ संरक्षण समिति के सदस्य सचिव डा.राजेश गोपाल ने तो पीलीभीत के जंगल को दुधवा राष्ट्रीय उद्यान से जोड़े जाने की बात की थी, लेकिन राज्य सरकार ने उनके प्रस्ताव पर विचार करने की बात कह कर उसे टाल दिया। उल्लेखनीय है कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व का पहली बार प्रस्ताव 1989 में तैयार किया गया था, जब स्थानीय सांसद मेनका गांधी केंद्र में पर्यावरण राज्य मंत्री थी, लेकिन उस समय राज्य सरकार ने प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया।
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