पारिस्थितिकों संवेदनशील क्षेत्रों में परियोजनाओं को हरी झंडी देने को लेकर अपने ही मंत्रिमंडल सहयोगियों की आलोचना से केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश अविचलित हैं। उनके मुताबिक देश के वनों के लिए इस समय सबसे बड़ा खतरा विकासात्मक खतरा है।
फिक्की की ओर से आयोजित सेमिनार में पर्यावरण मंत्री ने कहा, ‘हमारे वन केवल अतिक्रमण के खतरे का सामना नहीं कर रहे। आज वनों के लिए जो सबसे बड़ा खतरा है, उसे मैं विकास संबंधी खतरा कहूंगा।’ इस संबंध में तादोबा अंधेरी टाइगर रिजर्व का उदाहरण दिया, जहां विभिन्न प्रोजेक्ट को मंजूरी देने से उन्होंने इनकार कर दिया था। रमेश ने कहा कि ऐसे ही कारणों से उनका नाम यूपीए सरकार के सहयोगी मंत्रियों के साथ विवादों में आता है। नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर एलिनोर ओस्ट्रॉम की मौजूदगी में पर्यावरण मंत्री ने कहा कि पर्यावरण संबंधी ये मुद्दे ऐसे समय उठ रहे हैं जब भारत उच्च विकास दर की ओर बढ़ रहा है। यह ऐसा वक्त है जब हमें विकास की राह पर भी खुद को बरकरार रखना है, लेकिन इसका पर्यावरण के साथ तालमेल भी बनाना है।
रमेश ने कहा कि देश के सात करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र में से करीब 40 फीसदी वन खुले क्षेत्र में है। एक अनुमान के मुताबिक, देश का करीब 21 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है। देश के वन क्षेत्र को घने वन, मध्यम तौर के वन और खुले वन, तीन वर्गों में बांटते हुए उन्होंने कहा कि जब आप वन में खड़े होकर ऊपर की ओर देखते हैं और यदि आपको सूरज दिखाई दिखाई नहीं दे तो यह घने वन हैं। यदि सूरज आधा-अधूरा सा दिखाई तो यह मध्यम रूप के वन है और यदि आपको केवल और कुछ नहीं केवल सूरज ही दिखाई दे तो यह खुले क्षेत्र के विकृत हो चुके वन हैं। यही वास्तविकता है। देश के 40 फीसदी वन क्षेत्र में आप खड़े होकर सूरज को देख सकते हैं। इसलिए हमें वन क्षेत्र की मात्रा के बजाय इसके गुणवत्ता पर ध्यान देने की दरकार है।
No comments:
Post a Comment