सामान्य तौर से गंदगी पानी की आक्सीजन छीन लेती है। गंदे पानी को वैज्ञानिक तरीके से शोधित कर उपयोग किया जाये तो आश्र्चयजनक नतीजे हासिल हो सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि शोध, अध्ययन और वैज्ञानिकों की राय पर अमल किया जाये। विशेषज्ञों की मानें तो कूड़ा भी बेकार नहीं होता। कूड़े को नया आकार-आयाम देकर उसका बेहतर उपयोग किया जा सकता है। गत दिनों चण्डीगढ़ के वरिष्ठ नागरिक ने कूड़े से उपयोगी वस्तुएं निकालकर एक पार्क को बड़े बेहतर ढंग से सजाया था। कूड़ा-कचरा व करकट का बेहतर उपयोग करने की आवश्यकता है। महानगरों में गाब्रेज (कूड़ा) डम्पिंग ग्राउण्ड की समस्या तेजी से बढ़ रही है। शहरों से जुड़े हाईवे के किनारे कूड़ा-कचरे के पहाड़ शहर के सौन्दर्य को नष्ट कर रहे हैं। कई जगह सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत कूड़े से खाद बनाने से लेकर बिजली तक की परियोजनाओं पर काम हो रहा है। जाहिर है कि गंदगी का भी जनहित में बेहतर उपयोग किया जा सकता है। बात चाहे कूड़े की हो, या फिर संड़ाध भरे पानी की, वैज्ञानिक तरीका अपनाकर उसका बेहतर उपयोग किया जा सकता। अमेरिका के शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों ने हाल ही में मल-मूत्र व अन्य गंदे पानी के उपयोग को सार्थक किया है। नाला-नालियों, पोखरों व नदियों में अरबों गैलन बह जाने वाले गंदे व बदबूदार पानी का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि साफ सुथरे पानी की तुलना में गंदे पानी से 20 प्रतिशत अधिक ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। सीवर के पानी का सर्वाधिक उपयोग अमेरिका में करके बिजली बनायी जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका में हर साल औसतन 14 ट्रिलियन गैलन गंदे पानी का उपयोग ऊर्जा बनाने के लिए किया जा रहा है। अमेरिकी शोधकर्ता एलिजाबेथ एस. हैड्रिक कहती हैं ‘गंदे पानी का उपयोग ऊर्जा बनाने में बेहतर साबित हुआ है।’ अमेरिका में बिजली की कुल खपत में करीब डेढ़ प्रतिशत सीवर व अन्य गंदे पानी से बन रही बिजली से पूर्त की जा रही है। शोध व अध्ययन केातीजे बताते हैं, एक गैलन गंदे व बेकार पानी से पांच मिनट तक सौ वॉट का बल्ब आसानी से जलाया जा सकता है। इतना ही नहीं, सीवरेज व गंदे पानी में मौजूद कार्बनिक अणुओं को ईधन में भी बदला जा सकता है जिसका उपयोग अन्य कई क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह शोध देश दुनिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। आज भी अरबों गैलन सीवरेज व अन्य गंदा पानी नाला-नालियों, तालाबों व नदियों में बहाया जाता है क्योंकि इसे व्यर्थ समझा जाता है। गंदे जल के शुद्धीकरण में वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग होने से नदियों का प्रदूषण भी काफी हद तक कम हो सकता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा। इसके लिए सरकार, सामाजिक संस्थाओं व वैज्ञानिकों को सार्थक पहल करनी होगी ताकि घरेलू गंदे पानी का उपयोग बिजली बनाने व अन्य उपयोग के लिए किया जा सके। अपने देश में केवल दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार व पश्चिम बंगाल को ही देखें तो अरबों गैलन सीवरेज हर दिन सीधे गंगा व यमुना नदियों में गिरता है जिससे इन नदियों का प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। गंदे जल का शोधन किया जाये तो गंगा-यमुना जैसी नदियों का प्रदूषण ता रोका ही जा सकता है, इससे अरबों की धनराशि बचेगी।
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