गंगा भागीरथी के अविरल प्रवाह को रोकने और अनावश्यक छेड़छाड़ के विरोध में बीते तीन सालों में हुए राष्ट्रीय आंदोलन से राज्य व केंद्र सरकार की अहम जल विद्युत परियोजनाएं रद हो गई, लेकिन इस पवित्र नदी के साथ मनमानी का सिलसिला थमा नहीं है। झूला पुल जैसे छोटे निर्माण के लिए नदी को बांधने की कोशिश और तटों पर खनन बदस्तूर जारी है। इससे गंगा रिजर्व बेसिन प्राधिकरण के अस्तित्व पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में केदारघाट झूला पुल निर्माण इसका जीता जागता उदाहरण है। जहां कार्यदाई संस्था ने नदी के प्रवाह को रेत और पत्थरों से रोक दिया। इसका उपयोग नदी के दूसरे तट से खनन और पत्थरों का चुगान कर उन्हें पुल के निर्माणाधीन एबेटमेंट तक पहुंचाया जा रहा है। प्रवाह को रोकने के लिये गंगा भागीरथी में कई बार भारी भरकम मशीनें उतारी गई। इन मशीनों के सहारे दोनों किनारों से रेत और पत्थर खोदकर पानी में डाला गया। हैरत है कि यह सब जिला प्रशासन की नाक के नीचे चल रहा है। इसके बावजूद इसे लगातार अनदेखा किया जा रहा है। इससे गंगा भागीरथी के दोनों तटों पर खनन और चुगान का दायरा काफी दूर तक फैल गया है। इस पुल निर्माण के अलावा स्टोन क्रशरों के लिये भी गंगा तटों से बड़े पैमाने पर खनन जारी है, जिसे रोकने के लिये प्रशासन की ओर से अभी तक कोई भी ठोस कार्रवाई सामने नहीं आ सकी है। जनसंगठन कर रहे विरोध : गंगा आह्वान समिति के दीपक ध्यानी, पानी पंचायत से जुड़े द्वारिका सेमवाल,म नमोद सहित विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े लोगों ने गंगा भागीरथी के साथ हो रही मनमानी को एकदम गलत बताया है। उन्होंने कहा कि भारी भरकम मशीनों को गंगा में उतारने व बड़े पैमाने पर मलबा डालने से इसमें जलीय जीवों के साथ ही गंगा के तटबंधों के लिये भी खतरा पैदा हो जाएगा। इस संबंध में बात करने पर एसडीएम सीएस धर्मशक्तू ने बताया कि वे जल्द ही इसका जायजा लेंगे। अगर अनियमित तरीके से कार्य किया जा रहा हो तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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