Sunday, January 9, 2011

नदी कटान से त्रस्त गांव

आपने कभी किसी व्यक्ति को अपने आवास की नींव को स्वयं उजाड़ते देखा है?
यह दर्दनाक दृश्य पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराईच जिले के उन गांवों में बेहद आम हो चुका है जहां नदी का कटान तेजी से हो रहा है। जिस परिवार का आवास कटान की चपेट में आ रहा होता है वह स्वयं मजबूरी में अपने आवास को तोड़ता है ताकि कम से कम इंट-पत्थर ले जाकर कहीं स्थाई आवास बना सके।
यहां नदी के कटान से अनेक परिवार बेघर हो चुके हैं और तटबंध पर शरण लिए हुए हैं। खेती की जमीन उजड़ गई, घर भी न बचा तो जीवन कैसे बिताएं। बच्चे कहते हैं कि हमें यहां नहीं रहना, घर जाना है, तो मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं। घर बचा ही नहीं तो किस घर में जाएं। यह दर्दनाक कहानी केवल बहराईच की ही नहीं, लखीमपुर खीरी जैसे नदी कटान से प्रभावित अन्य जिलों की भी है।
कहारनपुरवा, गोलगंज पंचायत, फखरपुर ब्लाक के लोगों ने बताया कि 75 प्रतिशत कृषि भूमि का कटान हुआ है पर क्षतिपूर्ति कुछ भी नहीं हुई है। इस वर्ष की बाढ़ में लगभग पूरी फसल नष्ट हो गई पर क्षतिपूर्ति किसी भी किसान को नहीं मिली। पिछले वर्ष भी खेती की बहुत बर्बादी होने पर कोई क्षतिपूर्ति नहीं मिली थी। दो वर्ष पहले मामूली राशि का सहायता चेक मिला था। कुछ वर्ष पहले आवास नष्ट होने पर 800 रुपए का चेक मिला था। यहां अपने-अपने पुरवे से आए गोलगंज पंचायत के अन्य किसानों की भी ऐसी ही स्थिति है। इस समय कहारनपुरवा के लोगों के पास बहुत कम अनाज है। वे भूख, कुपोषण, गर्म कपड़ों के अभाव, कर्ज व शीत लहर से त्रस्त हैं। सिलौटा गांव, फखरपुर ब्लाक के लोगों ने बताया कि उनका गांव कटान से बहुत बुरी तरह तबाह हुआ है व लोगों के घर व कृषि भूमि कटान से नष्ट हो गए हैं। अब वे तटबंध पर बहुत अभाव की स्थिति में रह रहे हैं। भूख, कुपोषण, अभाव व शीत लहर से त्रस्त हैं। घाघरा नदी ने हाल में कुछ मार्ग बदल कर उनकी पहले वाली भूमि को छोड़ा है। यहां के लोगों को उम्मीद है कि वे फिर इस पर खेती कर सकेंगें। इसलिए वे चाहते हैं कि इस जमीन की पैमाइश कर दी जाए। किसान अपनी जमीन के नजदीक बने रहना चाहते हैं। हालांकि प्रशासन द्वारा ऊंचे आश्रय स्थलों पर बनाए गए हैडपंप व शौचालय अच्छा प्रयास है, लेकिन स्थानीय लोगों का दर्द है कि भूमि कटान का कोई मुआवजा उन्हें अभी तक नहीं मिला है।
अटोडर पंचायत, फखरपुर ब्लाक के लोगों की कृषि भूमि व आवास बाढ़ तथा कटाव में बुरी तरह नष्ट हो गए. लोगों ने बहुत अभाव की स्थिति में तटबंधों पर शरण ली। अपने दुख-दर्द, भूख, अभाव की स्थिति बताते हुए महिलाओं की आंखों में आंसू आ गए। अब प्रशासन उनसे तटबंध से भी हटने को कहता है, ऐसे में वे कहां जाएंगे। महिलाओं के लिए शौचालय, स्नानघर आदि की कोई सुविधा नहीं है जिससे उन्हें बहुत कठिनाई होती है। भूमि कटान व फसल की क्षति का कोई मुआवजा अभी तक नहीं मिला है, पर आवास क्षति का कुछ मुआवजा मिला है। यहां व सिलौटा तथा गोलगंज में लोगों ने बताया कि कुछ स्वयंसेवी संगठनों से उन्हें जरूर अच्छी सहायता मिली है। मुन्सारी गांव, ब्लाक महसी पूरी तरह कटान की चपेट में आ गया है। इस तरह यह खुशहाल गांव तबाह हो गया व यहां के लोग अब महसी ब्लाक के कोढ़वा गांव में बसे हुए हैं. यहां के अधिकांश परिवार कटान के कारण तीन बार विस्थापित हुए हैं। अब वर्तमान स्थान कोढ़वा में भी कटान जारी है। इस वर्ष लगभग 50 परिवार फिर कटान से प्रभावित हुए। कटान के कारण यह स्थान भी खतरे में है। लोगों में भीषण अभाव व कर्ज है। अत: इन लोगों ने एक प्रस्ताव यह रखा है कि गैर आबाद हो चुके उनके पुराने मुन्सारी गांव में उन्हें फिर बसा दिया जाए। मनरेगा के अन्तर्गत उन्हें उजड़े खेतों को नए सिरे से तैयार करने का काम मिल सकता है। सिंचाई, बोरिंग व आवास के लिए भी कुछ सहायता की बेहद दरकार है। लोगों ने कहा कि अब मुन्सारी की मूल बस्ती को घाघरा से खतरा नहीं है। अत: उन्हें यहां फिर बसा देना चाहिए।
कटान से बुरी तरह प्रभावित मुरौवा गांव, ब्लाक महसी के दो-तिहाई परिवार अपनी मूल बस्ती को छोड़ चुके हैं। इनमें से अनेक परिवार अब करहना पंचायत व कुछ परिवार फलेपुरवा पंचायत में रह रहे हैं। यह सब गांव महसी ब्लाक में ही स्थित हैं। भीषण कटान के बावजूद इन सब परिवारों को कटान की मुआवजा राशि नहीं मिली है।
कटान से बुरी तरह प्रभावित लोगों की मांग है कि उनके सरकारी कर्ज माफ कर दिया जाएं तथा उन सब को गरीबी की रेखा से नीचे मान कर उन्हें बीपीएल/अंत्योदय कार्ड तथा इससे जुड़े लाभ दिए जायें क्योंकि जमीन कटने के बाद उनका सबकुछ बर्बाद हो गया है। उन्हें जमीन कटने की क्षतिपूर्ति राशि शीघ्र से शीघ्र मिलनी चाहिए।
यहां के लोगों के विकट अभाव की स्थिति को देखते हुए शीतलहर का प्रकोप कम करने के लिए तुरंत विशेष राहत व सहायता अभियान चलाना जरूरी है

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