धरती के वातावरण में बीसवीं शताब्दी से लेकर अब तक धूल दोगुनी हो चुकी है। इससे पूरी दुनिया के वातावरण, मौसम और पर्यावरण संतुलन पर बहुत ही नाटकीय असर पड़ा है। यह अध्ययन ऐसा पहला है जिसने पूरी एक सदी के आंकड़ों पर आधारित यह निष्कर्ष गैर मानवीय कारकों पर आधारित हैं। यानी यह परिवर्तन मानव जनित नहीं बल्कि प्राकृतिक हैं। पृथ्वी और वातावरण विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर नटाले मोहोवाल्ड के अनुसार उन्होंने पूरी सदी के संदर्भ में रेगिस्तान की धूल और वातावरण में मिली धूल के उपलब्ध आंकड़ों और कंप्यूटर मॉडल के नतीजों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाले हैं। रेगिस्तान की धूल और वातावरण में मौजूद धूल कणों का आपस में गहरा संबंध है। यह दोनों ही वातावरण को और वातावरण इन्हें प्रभावित करते रहते हैं। धूल धरती पर पहुंचने वाले सौर विकरण को सीमित करती है। उदाहरण के तौर पर धूल के कारण धरती अत्यधिक ताप से बच जाती है जिससे कार्बन का उत्सर्जन कम होता है। धूल कण बादलों और उसकी गतिविधियों को भी प्रभावित करते हैं। यानी बादल कब और कहां बरसेंगे धूल कण इस पर भी असर डालते हैं। इस कारण सूखा भी पड़ता है और धूण कणों और बढ़ जाते हैं। धूल से महासागर का भी हिसाब-किताब तय होता है। धूल लौह धातु का प्रमुख स्रोत है, जो कि वातावरण से कार्बन को निकालने में मददगार साबित होता है। पूरी सदी में मूंगों, झील की तली और बर्फ के कोरों से धूल वाले रेगिस्तानों की उथल-पुथल भी सामने आ गई।
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